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मौत की सज़ा के ख़िलाफ़ विशेष अनुमति याचिका को बिना कारण बताए ख़ारिज नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
24 Nov 2018 12:12 PM GMT
मौत की सज़ा के ख़िलाफ़ विशेष अनुमति याचिका को बिना कारण बताए ख़ारिज नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जिस मामले में मौत की सज़ा दी गई है उस मामले में दायर विशेष अनुमति याचिका को ख़ारिज करने का कारण बताना ज़रूरी है।

इस माह की 1 तारीख़ को न्यायमूर्ति एके सीकरी,न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने दो अलग-अलग मामलों में इस तरह के दो आदेशों को वापस ले लिया जिसमें आरोपी ने अपनी सज़ा के ख़िलाफ़ विशेष अनुमति याचिका दायर की थी।

“…अगर विशेष अनुमति याचिका को ख़ारिज कर मौत की सज़ा की पुष्टि की जानी है तो इस बारे में कम से कम सज़ा को लेकर जो आदेश दिया जाता है उसका कारण बताया जाना चाहिए,” कोर्ट ने कहा। पुनरीक्षणयाचिका डालने वाले व्यक्ति बाबासाहेब मारुति काम्बले की पैरवी करने वाले के वक़ील शेखर नफाड़े द्वारा उठाए गए मुद्दे पर कोर्ट ने यह बात कही। काम्बले की मौत की सज़ा की सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2015 में पुष्टिकी थी और उसकी विशेष अनुमति याचिका को ख़ारिज कर दिया था।

वरिष्ठ वक़ील ने मोहम्मद अजमल मोहम्मद आमिर कसाब ऊरफ अबू मुजाहिद बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में आए फ़ैसले पर भरोसा किया जिसमें कहा गया था कि अगर मामले में मौत की सज़ा दी जाती है तो इसबारे में विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई करते हुए भी अंतिम आदेश देने के समय कोर्ट को रेकर्ड की माँग कर उसकी जाँच करनी चाहिए।

पीठ ने कहा कि विशेषकर जब मौत की सज़ा अगर दी गई है तो इस अदालत को भी इस मामले की स्वतंत्र रूप से जाँच करनी चाहिए और निचली अदालत और हाईकोर्ट ने क्या फ़ैसला दिया है उससे उसे ख़ुद कोमुक्त रखना चाहि…कोर्ट ने कहा।

कोर्ट ने मोहम्मद आरिफ़ ऊरफ अश्फ़ाक बनाम रजिस्ट्रार, सुप्रीम कोर्ट मामले का भी हवाला दिया जिसमें पुनरीक्षण याचिका को बंद कमरे में सुने जाने के नियम से अलग हटते हुए इस नियम के अपवाद के रूप मेंकहा कि जब कोई पुनरीक्षण याचिका दायर की जाती है जिसमें मौत की सज़ा के फ़ैसले की समीक्षा की माँग की जाती है तो ऐसे मामले की सुनवाई कम से कम तीन जजों की पीठ द्वारा खुली अदालत में होनी चाहिए।

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