Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

अगर किसी महिला को उसके पति का घर उस पर हुए हमले और उत्पीड़न के कारण छोड़ना पड़ता है तो इसे पत्नी की उपेक्षा माना जाएगा : बॉम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
21 Nov 2018 4:48 PM GMT
अगर किसी महिला को उसके पति का घर उस पर हुए हमले और उत्पीड़न के कारण छोड़ना पड़ता है तो इसे पत्नी की उपेक्षा माना जाएगा : बॉम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
x

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में पुणे की सत्र अदालत के एक फ़ैसले को सही ठहराते हुए चंद्रभागा बोरहाडे की याचिका को स्वीकार कर लिया जिसमें उन्होंने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुज़ारे की राशि की माँग की है।

न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर ने बाबनराव की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका निरस्त कर दी जिसमें उन्होंने सत्र अदालत के फ़ैसले को चुनौती दी थी।

पृष्ठभूमि

प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने गुज़ारा संबंधी आवेदन को 20 मार्च 2001 को जारी आदेश में ख़ारिज कर दिया था पर सत्र अदालत ने इसे स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने पति को आदेश दिया था कि वह पत्नी चंद्रभागा को 8 जुलाई 1994 से हर महीने  500 रुपए चुकाए। पर पति ने इस आदेश को चुनौती दी और यह मामला पिछले 17 सालों से लटका हुआ था।

प्रतिवादी पत्नी के अनुसार, उनकी शादी 1994 से 30 साल पहले हुई। शादी के दो साल के भीतर पत्नी को अपने पति का घर छोड़ना पड़ा क्योंकि उसका पति उसको मारता-पीटता था। उसने अपने पति के पास लौटने की कोशिश की पर ऐसा नहीं हो सका। इसके तुरंत बाद याचिकाकर्ता पति ने 1980 में उषा जगन्नाथ जाधव से दूसरी शादी कर ली और चंद्रभागा उपेक्षित ही रही। इसके बाद उसने धारा 125 के तहत गुज़ारा राशि के लिए आवेदन दिया।

आवेदक पति ने चंद्रभागा से शादी होने की बात से ही इंकार करता रहा। उसने कहा कि चंद्रभागा के पिता उसके खेत में काम करते थे और इसी वजह से उसकी चंद्रभागा से पहचान हुई और अब वह इस पहचान का नाजायज़ फ़ायदा उठा रही है।

Submissions

सुनवाई के दौरान आवेदक पति के वकील की दलील थी कि शादी में फेरों की संख्या में कुछ कमी थी इसलिए इसे शादी नहीं माना जा सकता जबकि चंद्रभागा के वक़ील ने गवाहियों से हुई पूछताछ के आधार पर दलील दी कि दोनों के बीच शादी हुई है।

निर्णय

कोर्ट ने दलील सुनने के बाद कहा,“सीआरपीसी की धारा 125 के तहत सुनवाई संक्षिप्त होती है जिसमें तथ्यों के सटीक सबूत की ज़रूरत नहीं होती। कोर्ट को सिर्फ़ पत्नी की ओर से यह पुख़्ता आश्वासन चाहिए कि शादी हुई है और वह उस व्यक्ति की पहली शादीशुदा पत्नी है जिससे उसने गुज़ारे की राशि की माँग की है।

कोर्ट ने प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट के उस फ़ैसले की आलोचना की जिसमें उन्होंने उसके आवेदन को निरस्त कर दिया था।

कोर्ट ने निष्कर्षतः कहा कि सभी गवाहों ने इस बात की पुष्टि की कि दोनों के बीच शादी हुई है। फिर, पत्नी को अपने पति का घर इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि उसके साथ मार-पिटाई होती थी और उसने सिर्फ़ गुज़ारे की राशि का दावा किया है क्योंकि उसके पास आमदनी का कोई स्रोत नहीं है।

इस तरह कोर्ट ने पुनरीक्षण की याचिका जो पति ने डाली थी उसे निरस्त कर दिया और गुज़ारे की राशि के भुगतान के आदेश को सही क़रार दिया।


 
Next Story