अगर कोर्ट की टिप्पणी से भारतीय सेना और अर्ध सैनिक बलों का मनोबल टूटा है तो यह उनकी कमज़ोरी को दर्शाता है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
15 Nov 2018 8:21 AM IST
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति मदन बी लोकर और न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की पीठ ने मणिपुर फ़र्ज़ी मुठभेड़ मामले की सुनवाई से उनके अलग होने के बारे में एक याचिका को रद्द कर दिया।
इस संबंध में याचिकाएँ कुछ पुलिसवालों की ओर से दायर की गई थीं। याचिका में कहा गया था कि एक्स्ट्रा-जूडिशल एक्सेक्यूशन विक्टिम्ज़ फ़ैमिलीज़ असोसीएशन वर्सेस यूनीयन ऑफ़ इंडिया मामले में पीठ ने जो कुछ मौखिक विचार व्यक्त किए थे उसे निकल दिए जाएँ। यह भी माँग की गई थी कि इस पीठ को इस मामले की सुनवाई से ख़ुद को अलग कर लेना चाहिए और इसे किसी अन्य पीठ को सुनवाई के लिए दिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में एक विशेष जाँच दल का गठन किया था इसमें सीबीआई के अधिकारी भी शामिल हैं। इन्हें प्राथमिकी दर्ज करने और ग़ैर क़ानूनी हत्याओं की जाँच करने का आदेश दिया गया है। अभी इस मामले की जाँच विशेष जाँच दल (एसआईटी) कर रही है।
ऐसा समझा जाता है कि पीठ ने कुछ पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ काफ़ी सख़्त टिप्पणी की है।
अटर्नी जेनरल ने भी इस मामले के सुनवाई से अलग कर लेने की बात का समर्थन किया और कहा कि भारतीय सेना, अर्ध सैनिक बलों और मणिपुर पुलिस का इन टिप्पणियों से मनोबल कमज़ोर हुआ है।
पीठ ने इस दलील पर कहा, “…हम समझते हैं कि यह सबको मालूम होना चाहिए भारतीय सेना, अर्ध सैनिक बलों और राज्य पुलिस के कर्मी बहुत ही कठिन परिस्थितियों के लिए बने हुए हैं और इस तरह की टिप्पणियों से उनका मनोबल नीचे नहीं गिर सकता। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनका मनोबल टूटने जैसी बातें कुछ लोगों द्वारा उठाई जा रही है। यह कहना कि इस कोर्ट ने कुछ टिप्पणियाँ की हैं जिसकी वजह से भारतीय सेना, अर्ध सैनिक बलों और मणिपुर पुलिस का मनोबल गिरा है, उनकी कमज़ोरी को दर्शाता है…”
पीठ ने कहा कि यह कहना कि इस वर्ष 30 जुलाई को की गई टिप्पणी से एसआईटी की जाँच पर असर पड़ेगा, ग़लत है। पीठ ने अपने टिप्पणी में कहा, “हमें इस टेक्स्ट के सही या ग़लत होने के विवाद में नहीं जाना चाहिए…तथ्य यह है कि इस मामले में जो टिप्पणियाँ की गई थीं उसे प्रेस में व्यापक रूप से काफ़ी सही-सही छापा गया था।”
इस याचिका पर अब 26 नवम्बर को 2 बजे सुनवाई होनी है।