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पीड़ित के सुसाइड नोट को मृत्यु से पहले का बयान मानते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को क़सूरवार ठहराया और सज़ा सुनाई [निर्णय पढ़ें]
![पीड़ित के सुसाइड नोट को मृत्यु से पहले का बयान मानते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को क़सूरवार ठहराया और सज़ा सुनाई [निर्णय पढ़ें] पीड़ित के सुसाइड नोट को मृत्यु से पहले का बयान मानते हुए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को क़सूरवार ठहराया और सज़ा सुनाई [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2017/11/23244007_2005417013075772_6514921900151073317_n-1.jpg)
'मृत्यु पूर्व बयान को पूरी तरह पढ़ने से पता चलता है कि यह आरोपी को पूरी तरह दोषमुक्त नहीं करता है हालाँकि उसने कहा कि उसे दंडित नहीं किया जाए’
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बलात्कार पीड़ित लड़की की आत्महत्या के नोट को उसका मृत्युपूर्व बयान मानते हुए बलात्कार के आरोपी को इस मामले में सज़ा सुनाई है।
दो व्यक्ति शाहिद और शमीम पर 18 वर्ष की एक लड़की से बलात्कार करने का आरोप थाइन लोगों ने उसे अपनी कार में लिफ़्ट दिया था और बाद में उन्होंने उसके साथ बलात्कार किया। इस लड़की ने ख़ुद पुलिस में शिकायत की और फिर कुछ दिन के बाद आत्महत्या कर ली। आत्महत्या के पूर्व लिखेअपने नोट में इस लड़की ने कहा कि उसकी मौत के लिए कोई भी ज़िम्मेदार नहीं है। अपने नोट में उसने आरोपी को रिहा करने को भी कहा था।
इस वाकये के बारे में उसने लिखा, “उनकी गाड़ी में बैठने की ग़लती मेरी थी और मैं उनके प्रति आकर्षित हो गई थी।यद्यपि वे शराब के नशे में थे पर मैं होशोहवाश में थी। यह कहा जाता है कि अगर भूखे व्यक्ति के सामने खाना रखा जाए तो वह उसे बिना खाए नहीं छोड़ेगा। मैं उनके कार में ग़लती से बैठीऔर उन्होंने मुझे ख़राब चरित्र का लड़की समझा। जो भी हुआ उससे मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो गई है। अब मैं उन लड़कों को सज़ा देकर उनकी ज़िंदगी बर्बाद नहीं करना चाहती।”
निचली अदालत ने आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि अगर इन लोगों ने उस लड़की के साथ सम्भोग भी किया तो वह उसकी सहमति से हुई था।
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और अतुल श्रीधरन की पीठ ने कहा कि मौत के कारण का प्रमाण सिर्फ़ बयान देने वाले व्यक्ति की मौत के कारण के संदर्भ में ही संगत नहीं है बल्कि उस परिस्थिति के लिए भी जिसकी वजह से यह मौत हुई।
पीठ ने कहा,“…इस आत्महत्या के नोट को उसके सम्पूर्ण रूप में देखा जाना चाहिए और इसकी एक भी पंक्ति को संदर्भ के बाहर उद्धृत नहीं किया जाना चाहिए। उसने आरोपियों की चर्चा की है एक ऐसी महिला के रूप में जिसने कार में लिफ़्ट लिया और यह कि वह अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकती। यहअपमान उसकी शख़्सियत पर हमला है।”
कोर्ट ने निचली अदालत के ‘सहमति’ वाले विचार से भी असहमति जताई और कहा कि अगर पीड़ित यौन संबंधों की अगर आदी थी तो भी इसका अर्थ यह नहीं है कि उसने आरोपियों के साथ यौन संबंध के लिए सहमति दी होगी और फिर उसके भाई और उसकी आत्महत्या के पूर्व नोट को देखते हुए सहमतिका प्रश्न ही नहीं उठता।
पीठ ने इसके बाद आरोपियों को आईपीसी की धारा 376(2)(g) के तहत क़सूरवार माना और उन्हें आजीवन कारावास के सज़ा सुनाई।