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जब AG ने CJI गोगोई से कहा, याचिकाकर्ता को अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए

LiveLaw News Network
13 Nov 2018 6:22 AM GMT
जब AG ने CJI गोगोई से कहा, याचिकाकर्ता को अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए
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सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में उस वक्त सब को हैरानी हुई जब अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुनवाई के पर्याप्त अवसर ना देने पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के दृष्टिकोण पर असंतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि पीठ को याचिकाकर्ता को बात रखने का मौका देना चाहिए।

AG ने कहा, " मुव्वकिल हजारों मील दूर से आते हैं। वे पीछे खड़े होकर इस अदालत को देखते हैं .... उनके  वकील खड़े हैं और आप कहते हैं, खारिज,  यह रास्ता नहीं है .... आपको उनकी बात पूरी तरह सुननी चाहिए. कृपया अन्य पीठ को देखें। “

मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने अनुमति देते हुए कहा, "ठीक है .... हमें आपकी जो बात उचित लग रही है,  वो हम लेते हैं .... कृपया बहस करें। ”

मामले का तथ्य यह है कि साल 2015 की अपील सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है जहां याचिकाकर्ता ने प्रवेश कर अधिनियम की संवैधानिक वैधता और राजस्थान राज्य के वाणिज्यिक कर विभाग के प्रावधान के तहत की  गई मांग को चुनौती दी है।

सर्वोच्च न्यायालय ने जनवरी 2015 में इस शर्त पर कि मांग के 50%  देने पर  50% शेष राशि बैंक गारंटी के साथ जमा की जाने का  निर्देश दिया था। याचिकाकर्ता  भारती हेक्सैकॉम लिमिटेड ने इसका पालन भी किया था।

इसके बावजूद  वाणिज्यिक कर विभाग के सहायक आयुक्त ने सुप्रीम कोर्ट के रोक के आदेश की शर्त के अनुसार जमा राशि पर ब्याज लगाते हुए आदेश जारी किए जबकि मामला पहले से ही कोर्ट में लंबित है।

राजस्थान उच्च न्यायालय की पीठ ने 3 जुलाई को अपील की अनुमति दी थी और ध्यान दिया था कि उस अवधि  के दौरान जो ब्याज दिया गया था, उसे लागू नहीं किया जा सकता।

मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ इस आदेश के खिलाफ राजस्थान राज्य द्वारा दायर अपील सुन रही थी।

इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने आश्वासन दिया, "कृपया यह न मानें कि हम नहीं सुन रहे हैं .... हमने इसे पढ़ा है।”

AG ने जवाब दिया,"अगर आपने इसे  पढ़ लिया तो आप इसे सीधे स्वीकार कर लेते! इसमें सार्वजनिक धन शामिल है।“ उन्होंने ये भी कहा कि पीठ को इस मामले पर सुनवाई करनी चाहिए क्योंकि ये राज्य के राजस्व से जुड़ा मामला है।

हालांकि पीठ ने इस पर  नोटिस जारी नहीं किया लेकिन मामले को  लंबित रख लिया।

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