Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

कलकत्ता हाईकोर्ट ने सिपाही के ख़िलाफ़ सुनवाई को 8 सप्ताह के लिए स्थगित किया ताकि वह गिरफ़्तारी के डर के बिना सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सके [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
11 Nov 2018 2:38 PM GMT
कलकत्ता हाईकोर्ट ने सिपाही के ख़िलाफ़ सुनवाई को 8 सप्ताह के लिए स्थगित किया ताकि वह गिरफ़्तारी के डर के  बिना सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सके [आर्डर पढ़े]
x

कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति प्रोतिक प्रकाश बनर्जी की अवकाशकालीन पीठ को आज एक अजीबोग़रीब याचिका पर सुनवाई का मौक़ा मिला

यह याचिका भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे एक पुलिस अधिकारी ने दायर किया था जिसे इससे पहले हाईकोर्ट की पीठ ने ज़मानत देने से मना कर दिया गया था।

अक्टूबर 11 को सुजीत मंडल ने अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन दिया था जिसमें उसने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला दिया जिसमें उसके सह आरोपी को अंतरिम ज़मानत दी गई थीलेकिन कलकता हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अवकाश से पहले उसकी ज़मानत याचिका रद्द कर दी। अवकाशकालीनपीठ के समक्ष उसने दुबारा याचिका दायर की।

याचिककर्ता के वक़ील संजय बनर्जी ने पीठ से कहा कि उनका मुवक्किल सुप्रीम कोर्ट में भी अपील करना चाहता है पर जब कोई याचिककर्ता अनुच्छेद 32 के अधीन सुप्रीम कोर्ट में अपील करना चाहता है तो उसे पूर्व शर्त के रूप में यह दिखाना पड़ता है कि उसने समान पूर्वक काम किया है

चूँकि उसेअग्रिम ज़मानत देने से माना किया गया है, अब अगर वह सुप्रीम कोर्ट में अपील करता है, तो उसे ऐसा एक भगोड़े के रूप में ऐसा करना पड़ेगा

अगर वह सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री के पास जाता है तो और उसे यह आवेदन देने की अनुमति दी जाती है, और ऐसा उसको गिरफ़्तार किए बिना करने दिया जाताहै तो यह सार्वजनिक नीति के ख़िलाफ़ होगा।

वक़ील ने कोर्ट से अपील किया कि उनके मुवक्किल को सुप्रीम कोर्ट में गिरफ़्तारी के डर के बिना आवेदन का एक मौक़ा दिया जाना चाहिए।

इस दलील से प्रभावित पीठ ने कहा,“यह सच है की इस अदालत की एक खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को 10 अक्टूबर 2018 को अंतरिम ज़मानत देने से मना कर दिया…”

इसके बाद पीठ ने याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ सभी तरह की सुनवाई को आठ सप्ताह के लिए फ़िलहाल स्थगित करने का आदेश दिया।

हालाँकि, यह आदेश देने के कुछ देर बाद अभियोजन ने इस मामले को एक पीठ के समक्ष पेश किया और इस आदेश को वापस लिए जाने की माँग की क्योंकि इस मामले के बारे में कुछ संगत तथ्यों की जानकारी नहीं दी गई थी।

इस पर जज ने जो आदेश दिया था उसमें इसको जोड़ते हुए कहा, “…इस मामले को मेरे सामने “15 नवम्बर 2018 को (सही करने/वापस लेने के लिए) अदालत के प्रथम सत्र में प्रथम मामले के रूप में सूचिबद्ध किया जाए और भले ही इसकी आंशिक सुनवाई क्यों न हुई है, ताकि किसी भी मामले से पहलेइसकी सुनवाई हो सके”।

 

Next Story