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सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ते के लिए दायर किए गए मुकदमे की प्रक्रिया के लिए शादी का पुख्ता सबूत जरूरी नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
25 Oct 2018 4:45 PM GMT
सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ते के लिए दायर किए गए मुकदमे की प्रक्रिया के लिए शादी का पुख्ता सबूत जरूरी नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
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उच्च न्यायालय ने यह ध्यान नहीं दिया कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही मेंविवाह का पुख्ता प्रमाण आवश्यक नहीं है

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के उस आदेश को निरस्त कर दिया जिसके तहत उसने गुजारा भत्ते से संबंधित एक मामले को शादी का पुख्ता सबूत नहीं होने के कारण निरस्त कर दिया था। कोर्ट ने दुहराया है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत पुख्ता प्रमाण आवश्यक नहीं है।

कमला बनाम एमआर मोहन कुमार मामले में फ़ैमिली कोर्ट ने इस मामले पर गौर करने के बाद पाया कि दोनों पक्षों में पति-पत्नी का संबंध है और इसी संबंधों से उनके बच्चों की पैदाइश हुई है। इसके बाद कोर्ट ने पति को गुजारा राशि चुकाने का आदेश दिया। पति द्वारा दायर समीक्षा याचिका में हाईकोर्ट ने कहा था कि याचिका दायर करने वाली महिला विधिवत शादी होने के बारे में कोई पुख्ता सबूत पेश नहीं कर पाई और कहा कि वैध रूप से शादीशुदा पत्नी नहीं होने के कारण उसे गुजारा भत्ता नहीं मिल सकता।

न्यायमूर्ति आर बनुमती  और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की पीठ ने कोर्ट के समक्ष पेश किए गए सबूतों पर गौर करते हुए कहा कि पत्नी’ ने जो मौखिक साक्ष्य दिये हैं और इसके समर्थन में जो दस्तावेज सौंपे हैं वह इनके बीच वैध विवाह की मजबूत धारणा तैयार करते हैं। अन्य गवाहों के बयानों का जिक्र करते हुए कोर्ट ने  कहा कि इससे यह तथ्य स्थापित होता है कि दोनों पति और पत्नी के रूप में रह रहे थे और उनके आसपास के लोगों ने उन्हें पति और पत्नी समझते थे ।

खंडपीठ ने कहा किवैवाहिक कार्यवाही में जहां सीआरपीसी की धारा 125 के तहत कार्यवाही के लिए विवाह का पुख्ता सबूत आवश्यक हैप्रमाण के ऐसे सख्त मानक आवश्यक नहीं हैं क्योंकि इसकी प्रकृति संक्षिप्त है और इसका उद्देश्य आवारगी को रोकना है।

पीठ ने फ़ैमिली कोर्ट के आदेश बहाल कर दिया और कहा कि जब फ़ैमिली कोर्ट ने कहा कि वैध विवाह हुआ हैतो उच्च न्यायालय के पास संशोधित अदालत होने के नातेसबूतों को देखने और तथ्यों के आधार पर दुबारा निष्कर्ष निकालने का अधिकार नहीं है।


 
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