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सुप्रीम कोर्ट ने बताया, कब लागू हो सकता है सह-प्रतिवादियों के बीच Res Judicata का सिद्धान्त [निर्णय पढ़ें]
![सुप्रीम कोर्ट ने बताया, कब लागू हो सकता है सह-प्रतिवादियों के बीच Res Judicata का सिद्धान्त [निर्णय पढ़ें] सुप्रीम कोर्ट ने बताया, कब लागू हो सकता है सह-प्रतिवादियों के बीच Res Judicata का सिद्धान्त [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/08/NV-Ramanna-M-Shantanagoudar-1.jpg)
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया है कि सह-प्रतिवादियों के बीच Res Judicata (पूर्व न्याय) के सिद्धांत को लागू करने के पूर्व निम्नलिखित चार शर्तों को संतुष्ट करने की आवश्यकता है :
- संबंधित प्रतिवादियों के हित टकराते हों;
- अभियोगी को दावों राहत देने के लिए हितों के टकराव का निर्णय करना आवश्यक है;
- प्रतिवादियों के बीच सवालों को अंततः तय किया जाना चाहिए; तथा
- पूर्व में दायर मामले में दोनों ही सह-प्रतिवादियों का पक्षकार होना जरूरी है।
इस मामले में (गोविन्दम्मल बनाम वैद्यनाथन), अभियुक्त के पिता और प्रतिवादी के पिता पहले के मुकदमे में सह-प्रतिवादी थे और उन्होंने इसका सबूत दिया था कि अभियुक्त के पिता ने पूरी संपत्ति अदालती नीलामी से खरीदी थी। अभियोगी द्वारा दायर मुकदमे में, पूर्व न्याय के सिद्धान्त को उठाया गया था। हाईकोर्ट ने ने पूरवा न्याय के तर्क को खारिज कर दिया था।
इस संदर्भ में, न्यायमूर्ति एनवी रमना और न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनगौदर की पीठ ने पाया कि प्रतिवादी के पिता और अभियोगी के पिता के बीच उस प्रयोजन के लिए कोई विवाद नहीं था इस तरह के सह-प्रतिवादी के बीच न्याय पूर्व का सिद्धान्त लागू नहीं किया जा सकता है।
खंडपीठ ने कहा: "ऐसी कुछ स्थितियां हैं जिनमें सह-प्रतिवादी के बीच पूर्व न्याय का सिद्धांत लागू हो सकता है। यह अंग्रेजी न्यायालयों के साथ-साथ हमारे न्यायालयों में भी पिछले एक शताब्दी से अधिक समय से मान्य है। सह-प्रतिवादी के बीच न्याय पूर्व के सिद्धांत को लागू करने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें हैं जैसे (1) संबंधित प्रतिवादी के बीच हितों का टकराव हो, (2) अभियोगी को दावों राहत देने के लिए हितों के टकराव का निर्णय करना आवश्यक है और (3) पूर्व में दायर मामले में दोनों ही सह-प्रतिवादियों का पक्षकार होना जरूरी है। इस मामले में ये सभी तीनों आवश्यक स्थितियां अनुपस्थित हैं। "
अदालत ने इस बारे में प्रिवी काउंसिल के फैसले और महबूब साहब बनाम सैयद इस्माइल और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उद्धृत किया। कोर्ट ने कहा,“....यदि किसी वादी को सह-प्रतिवादियों के बीच मामला तय करने और निर्णय लेने के बिना वह राहत प्राप्त नहीं होता है जिसका दावा उसने किया है, तो अदालत सह-प्रतिवादियों और प्रतिवादियों के बीच हितों के टकराव सहित इस पूरे मामले पर समग्रता से विचार करने के बाद निर्णय लेगी और सह-प्रतिवादी और प्रतिवादी इस फैसले को मानने के लिए बाध्य होंगे…”।
कोर्ट ने कहा, “...इस मामले में, प्रतिवादी का पिता तथ्यों की सही स्थिति के बारे में जानता था और वह बहुत अच्छी तरह से जानता था कि वह केवल 50%संपत्ति का मालिक है, और क्योंकि उसने अपने नुकसान के लिए कोई कदम नहीं उठाया, इसलिए विबन्धन का सवाल ही न