घर का कब्जा लेने में खुद देरी करने वालों को लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

24 Oct 2018 2:54 PM GMT

  • घर का कब्जा लेने में खुद देरी करने वालों को लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए: सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि “खरीदार को कब्जा लेने में खुद देरी करने का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए”।

     घर खरीदने वाले एक असंतुष्ट व्यक्ति को मुआवजा दिये जाने का फैसला देते हुए न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पीठ ने यह कहते हुए दावे की राशि की गणना के लिए समय की अवधि को कम कर दिया कि खरीदार ने घर का कब्जा लेने में खुद देरी की।

     अदालत ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 23 के तहत दायर अपील की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। इस अपील में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के इस साल मार्च में दिये गए एक निर्णय को चुनौती दी गई थी।

     यह विवाद नोएडा में 'कैपटाउन' नामक एक परियोजना से संबंधित है। भवन निर्माता ने मई, 2012 में इस परियोजना के तहत रजनी गोयल नामक एक ग्राहक को मकानआवंटन आवंटित किया। आवंटन संबंधी पत्र में कहा गया था कि मकान का कब्जा अक्टूबर 2013 में दिया जाएगा। इस पत्र में अप्रत्याशित परिस्तिथियों में अधिकतम छह महीने तक के विस्तार की अनुमति दी गई थी।

     हालांकि, बिल्डर ने औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए अक्टूबर, 2015 में गोयल को प्री-पजेशन पत्र सौंपा था। इस पत्र के साथ, गोयल को ₹12,35,656 फ्लैट की शेष लागत और कई अन्य शुल्कों सहित चुकाने को कहा गया था। पर वह इस राशि का भुगतान नहीं कर पाई।

    गोयल ने, इसके बाद, पंद्रह महीने बीतने पर मार्च, 2017 में, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग अधिनियम की धारा 21 (ए) (i) के तहत शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने जमीन पर प्री-पोजेशन लेटर को चुनौती दी थी कि पत्र जारी करने की तारीख को, निर्माता ने Occupancy Certificate प्राप्त नहीं किया था। उन्होंने पत्र में निर्माता द्वारा मांगी गई विभिन्न राशियों को भी चुनौती दी थी।

     आंशिक रूप से शिकायत की इजाजत देकर, आयोग ने कुछ शुल्कों के भुगतान का आदेश दिया था लेकिन फ्लैट के कब्जे को सौंपने में देरी के मद्देनजर गोयल को मुआवजे का भुगतान करने का आदेश बिल्डर को दिया था। आयोग ने बिल्डर को नवंबर, 2013 (मकान सौंपने की निर्धारित तारीख की समाप्ति तिथि तक) प्रति वर्ष 8% ब्याज के साथ उस अवधि तक के लिए मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया था, जब गोयल को मकान का वास्तविक कब्जा सौंपा गया था।

     सुप्रीम कोर्ट ने अब नोट किया कि अप्रैल 2016 में बिल्डर ने Occupancy Certificate प्राप्त कर लिया था, और गोयल को उसके बाद कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए थी। इसलिए, सुप्रीम  कोर्ट ने मई, 2014 से अप्रैल, 2016 तक की अवधि के लिए ही मुआवजा चुकाने का आदेश दिया।

     “इसके अलावा, ब्याज की गणना की अवधि अप्रैल 2016 तक ही होनी चाहिए जब बिल्डर ने पूर्ण रूप से Occupancy Certificate प्राप्त कर लिया था...खरीददार ने खुद अपनी शिकायत में माना है कि बिल्डर ने अप्रैल 2016 के अंत तक Occupancy Certificate प्राप्त कर लिया था। खरीददार को अप्रैल 2016 के बाद मकान का कब्जा देने के बारे में देरी की कोई और शिकायत नहीं होनी चाहिए थी...खरीदार को कब्जा लेने में अपनी देरी का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए,” कोर्ट ने कहा।


     
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