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आरोपी के अधिकार आज भी पीड़ित के अधिकारों से ज्यादा वजनदार हैं; दोनों के बीच संतुलन की जरूरत ताकि सुनवाई दोनों के लिए न्यायपूर्ण हो : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
15 Oct 2018 3:13 PM GMT
आरोपी के अधिकार आज भी पीड़ित के अधिकारों से ज्यादा वजनदार हैं; दोनों के बीच संतुलन की जरूरत ताकि सुनवाई दोनों के लिए न्यायपूर्ण हो : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
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यह कहते हुए कि ‘पीड़ित’ बिना अनुमति लिए अपील कर सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने पीड़ितों के अधिकारों के बारे में बहुत ही महत्त्वपूर्ण बातें कही हैं।

न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने अपने फैसले में कहा कि आज भी कई अर्थों में आरोपी के अधिकार पीड़ित के अधिकार से कहीं ज्यादा वजनदार हैं और उनके अधिकारों को संतुलित करने की जरूरत है ताकि आपराधिक सुनवाई दोनों के लिए न्यायोचित हो।

न्यायाधीश ने कहा कि यह बहुत जरूरी है कि हम आरोपी को सजा सुनाते हुए गंभीरता से पीड़ितों की बात सुनना शुरू करें। उन्होने कहा कि पीड़ित पर पड़ने वाले असर का आकलन हमें अवश्य ही करना चाहिए।

बहुतमत से दिये गए इस फैसले में कहा गया, “किसी अपराध के पीड़ित के अधिकारों की बात एक ऐसा विषय है जिस पर संसद, न्यायपालिका और नागरिक समाज का कभी कभार ही ध्यान खींचा गया है। इसके बावजूद पिछले कुछ वर्षों में इसमें काफी प्रगति हुई है। हमारे न्यायशास्त्र के उभार ने इसे संभव बनाया है। पर हमें अभी इस दिशा में काफी आगे जाना है ताकि हम अपराध-पीड़ितों के  अधिकारों को इसके केंद्र में ला सकें, उन्हें मानवाधिकार मान सकें और सामाजिक न्याय और कानून के शासन के लिए महत्त्वपूर्ण है”।

उन्होंने कहा कि पीड़ितों को सार्थक अधिकार दिये जाने चाहिए जिसमें आरोपी को सजा देने के समय पीड़ितों की बात को सुनना शामिल है। पीठ ने पीड़ितों के पुनर्वास पर भी जोर दिया और कहा कि पीड़ित को मनो-सामाजिक सहयोग और सलाह देना भी जरूरी हो सकता है और यह अपराध के प्रकृति पर निर्भर करेगा।

जज ने कहा, “यह संभव है कि दी गई स्थिति में किसी विवाहित युवती का पति किसी विदाद या हिंसक झड़प में मारा जाता है। इस परिस्थिति में यह विधवा कैसे अपना देखभाल करेगी और अगर उसका कोई छोटा बच्चा भी है तब तो उसके लिए और ज्यादा मुश्किल हो जाती है। यह सच है कि पीड़ित पर पड़ने वाले प्रभाव के आकलन से आरोपी को उचित सजा देने में मदद मिलेगी। पर जरूरी नहीं है कि इससे विधवा युवती को न्याय मिल जाएगा, उसके लिए पुनर्वास शायद ज्यादा महत्त्वपूर्ण है न कि आरोपी को अपराधी को आजीवन कारावास की सजा सुनिश्चित करना। अब यह जरूरत है कि सामाजिक न्याय के परिप्रेक्ष्य में इन मुद्दों पर बहस की जाए और जैसा कुछ रिपोर्टों में बताया गया है, इस मुद्दे को आगे ले जाने की जरूरत है...”।

पीठ ने यह भी कहा कि संसद ने इस बारे में सक्रिय कदम उठाया है जिसमें पीड़ित को मुआवजा देने की योजना और उनको अपील का अधिकार शामिल है। नायमूर्ति लोकुर ने कहा, “...इस दिशा में अभी और बहुत कुछ करना बाकी है,” न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा।

न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने अपने अलग विचार में कहा कि किसी आपराधिक मामले के पीड़ित को जो तकलीफ होती है, कोर्ट को उसे समझना चाहिए और कानून में जिस नई धारणा का उभार हो रहा है उसे देखते हुए पीड़ित के अधिकारों को कुचला नहीं जाना चाहिए। “पीड़ित के साथ संवेदनशीलता, करुणा और आदर का व्यवहार होना चाहिए। उन्हें न्याय प्राप्त की अनुमति होनी चाहिए क्योंकि कई बार जांच और अभियोजन एजेंसियां उस उत्साह से मामले पर कार्रवाई नहीं करते जिसकी जरूरत होती है,”उन्होंने कहा।


 
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