दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, माँ-बाप कानूनी वारिस को पैतृक संपत्ति से बेदखल करने का अनुरोध कर सकते हैं; गाली गलौज करने वाले बच्चों को बेदखल करने के लिए गुजारे भत्ते का दावा जरूरी नहीं [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

6 Oct 2018 4:53 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, माँ-बाप कानूनी वारिस को पैतृक संपत्ति से बेदखल करने का अनुरोध कर सकते हैं; गाली गलौज करने वाले बच्चों को बेदखल करने के लिए गुजारे भत्ते का दावा जरूरी नहीं [निर्णय पढ़ें]

    दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष परेशान करने वाले कानूनी वारिसों को संपत्ति से बेदखल करने संबंधी कुछ याचिकाओं पर सुनवाई करणे वाली पीठ के समक्ष दो प्रश्न थे।

    पहला यह कि क्या कानून के तहत गाली गलौज करने वाले वयस्क बच्चों को बेदखल करने का प्रावधान है कि नहीं।

    दूसरा, 2007 के अधिनियम की धारा 23 के तहत मुआवजा अधिकरण के पास बेदखली के लिए अपील की जा सकती है या नहीं और वह भी गुजारा भत्ते के दावे के बिना।

     इन प्रश्नों के उत्तर में हाईकोर्ट ने कहा, “धारा 23 के तहत राहत पाने के लिए कोई पूर्व शर्त नहीं है। अगर किसी वरिष्ठ नागरिक ने अपनी देखभाल और सेवा-सुश्रुषा के लिए किसी को अपनी संपत्ति दी है तो इस शर्त के पूरा नहीं होने पर अधिकरण संपत्ति के इस ट्रांसफर को वापस लिया जा सकता है”।

     न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और वी कामेश्वर राव ने यह फैसला सुनाया।

     “राष्ट्रिय राजधानी क्षेत्र के सरकार की नीतियों पर गौर करने से स्पष्ट है कि वरिष्ठ नागरिकों को यह अधिकार दिया गया है कि बदसलूकी या गुजारे की ज़िम्मेदारी नहीं निभाने पर वे अपने कानूनी वारिसों या बेटे बेटियों को उस संपत्ति से बेदखल करने के लिए आवेदन दे सकते हैं जो उन्होंने खुद अर्जित की है या जो पैतृक है। कोर्ट ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों और माँ-बाप के कल्याण और उनके जीवन एवं संपत्ति की रक्षा के लिए अधिकरण को उनके बच्चों को आवास/कब्जे वाली किसी की संपत्ति से बेदखली का नोटिस जारी करने का अधिकार है,” पीठ ने कहा।

     वर्तमान मामले में एक बेटे ने 15 मार्च 2017 को एकल जज के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उसने 1 अक्तूबर 2015 को गुजारा अधिकरण के आदेश सही बताया था। अधिकरण ने उसे और उसके भाई को दिल्ली के संभ्रांत सिविल लाइंस क्षेत्र में उस संपत्ति को खाली कर देने का आदेश दिया था और इसे अपनी माँ को सौंप देने को कहा था।

     ये बेटे अपने माँ-बाप को परेशान कर रहे थे।

     एक अन्य मामले में, एक बहू ने एकल जज के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उसको अपने सास-श्वसुर के प्रथम तल के घर को खाली करने को कहा गया था।

     यह महिला अपने पति से अलग हो चुकी है और अब कई महीनों से वह पति के माँ-बाप के साथ रह रही है। इस बहू का कहना था कि जिस घर में वह रह रही है वह पैतृक संपत्ति है और इस अधिनियम के तहत वह उसे इससे बेदखल नहीं कर सकते।

     पीठ ने कहा, “...जब तक नियम 2017 की धारा 22(3)(1) का अस्तित्व है, अधिकरण का यह आदेश देना कहीं से भी गलत नहीं है”। दिल्ली सरकार ने माँ-बाप और वरिष्ठ नागरिकों के गुजारा और कल्याण से संबंधित संशोधित नियम 2017 में बनाया जिसके तहत कोई भी पीड़ित माँ-बाप या वरिष्ठ नागरिक उपायुक्त/जिला मजिस्ट्रेट को अपने बेटा, बेटी या कानूनी वारिस को बेदखली के लिए आवेदन कर सकता है।

     

    Next Story