- Home
- /
- मुख्य सुर्खियां
- /
- बैंक को 38 हजार का...
बैंक को 38 हजार का चूना लगाने वाले चपरासी को सुप्रीम कोर्ट ने दोषी माना; फैसले आने में लग गए 24 साल [निर्णय पढ़ें]
![बैंक को 38 हजार का चूना लगाने वाले चपरासी को सुप्रीम कोर्ट ने दोषी माना; फैसले आने में लग गए 24 साल [निर्णय पढ़ें] बैंक को 38 हजार का चूना लगाने वाले चपरासी को सुप्रीम कोर्ट ने दोषी माना; फैसले आने में लग गए 24 साल [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/03/supreme-court-of-india-1.jpg)
न्यायमूर्ति आर बानुमती और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने बुधवार को उस चपरासी की सजा को जायज ठहराया है जिसने बैंक को 38500 रुपए का चूना लगाया था। पर इस फैसले के आने में 24 अदद साल लग गए। पर सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सजा को पाँच साल से घटाकर तीन साल कर दिया।
पीठ ने कहा कि इस दलील में दम नहीं है कि चूंकि उसको क्लर्क का काम करने के लिए आधिकारिक रूप से अधिकृत नहीं किया गया था फिर उसको इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
पीठ ने कहा कि उसको क्लर्क का काम करने के लिए कोई कार्यालयीय आदेश जारी नहीं किया गया था पर प्रबन्धक ने मुख्यालय को सूचित किया था कि स्टाफ कम होने की वजह से अपीलकर्ता से कैश क्लर्क का कम लिया जा रहा है। उप मुख्य अधिकारी ने भी कोर्ट में कहा था कि एक चपरासी को कैश क्लर्क का काम सौंपकर बैंक ने लापरवाही बरती है। पर राम लाल ने जो फर्जीवाड़ा किया है उसके लिए वे जिम्मेदार नहीं हो सकते।
हिमाचल प्रदेश के नेरवा में, राम लाल यूनाइटेड कमर्शियल बैंक में जनवरी 1987 में चपरासी नियुक्त था। स्टाफ कम होने की वजह से उसे बचत खाते के काउंटर पर बैठा दिया गया था। उसका कार्य खाताधारकों से जमा के पैसे लेना और उसे उनके खाते में जमा करना था। वह उनके पासबुक में खुद पाने हाथ से एंट्री करता था पर पैसे उनके खाते में जमा नहीं करता था। वह ये पैसे बैंक के कैशियर को भी नहीं देता था बल्कि अपने पास ही रख लेता था।
जब कोई अपना पैसा निकालने के लिए आता था तो वह खाते में फर्जी निकासी दिखाकर निकासी फॉर्म भरकर भुगतान के लिए दे देता था। इस तरह राम लाल की करतूत से बैंक को 1994 में 38500 रुपए का चूना लगा।
उसको निचली अदालत ने दोषी मानते हुए उसे पीसी अधिनियम की धारा 13(1) के तहत दो साल की सश्रम जेल की सजा सुनाई। आईपीसी की धारा 477A के तहत उसे दो साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। और आएपीसी की धारा 409 के तहत दोषी पाए जाने के कारण उसे पाँच साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई गई। इसके अलावा उस पर 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने 2008 में उसकी सजा को सही माना।
सुप्रीम कोर्ट में अपनी अपील में उसने कहा कि उससे दबाव में अपराध कबूल कराया गया था जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने उसकी सजा को सही ठहराया पर आईपीसी की धारा 409 के तहत उसकी पाँच साल की सजा को घटाकर तीन साल कर दिया।