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कोणार्क पर टिप्पणी करने वाले को सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत, कोर्ट ने कहा, खतरा है तो जेल से बेहतर जगह नहीं

LiveLaw News Network
4 Oct 2018 1:25 PM GMT
कोणार्क पर टिप्पणी करने वाले को सुप्रीम कोर्ट से नहीं मिली राहत, कोर्ट ने कहा, खतरा है तो जेल से बेहतर जगह नहीं
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एक अहम मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक टिप्पणीकार अभिजीत अय्यर मित्रा की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। मित्रा पर ओडिशा के कोणार्क मंदिर और जगन्नाथ मंदिर को लेकर सोशल मीडिया में आपत्तिजनक टिप्पणी करने पर विभिन्न धाराओं में आपराधिक मामला दर्ज किया गया है।

गुरुवार को चीफ जस्टिर रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच ने कहा कि यह जमानत का मामला नहीं है। सीजेआई ने कहा,  "आप देश के लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़का रहे हैं, आपको जमानत नहीं मिल सकती।”

जब आरोपी के वकील ने कहा कि उन्हें धमकियां मिल रही हैं तो सीजेआई ने कहा, "यदि आपको खतरे का सामना करना पड़ रहा है तो जेल की तुलना में कोई बेहतर जगह नहीं है।”

दरअसल मित्रा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिका दाखिल कर कहा गया था कि उड़ीसा हाईकोर्ट में हड़ताल की वजह से वो सुप्रीम कोर्ट आए हैं।

गौरतलब है कि 20 सितंबर को दिल्ली में ओडिशा पुलिस ने अभिजीत अय्यर मित्रा  को गिरफ़्तार किया था। मित्रा को हजरत निजामुद्दीन के पास से गिरफ्तार किया गया और उन्हें साकेत कोर्ट में मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट मनीष खुराना के सामने पेश किया गया।  ओडिशा पुलिस ने उन्हें ओडिशा ले जाने के लिए तीन दिन की ट्रांजिट रिमांड मांगी थी  हालांकि साकेत अदालत ने ट्रांजिट रिमांड देने से इनकार करते हुए मित्रा को एक लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि का एक जमानतदार देने पर राहत मंजूर की और उन्हें 28 सितंबर तक राज्य में जांच में शामिल होने का निर्देश दिया। वो पूर्व बीजद नेता बैजयंत पांडा के साथ इस मामले में आरोपी बनाए गए हैं।

ओडिशा पुलिस ने अदालत को बताया था कि मित्रा ने सोशल मीडिया पर अपना नजरिया साझा करके कोणार्क सूर्य मंदिर पर अशोभनीय एवं गैरजिम्मेदाराना टिप्पणियां कीं। पुलिस ने कहा था कि आरोपी ने कोणार्क सूर्य मंदिर के कुछ हिस्सों में अपने तस्वीरें लीं और उन्होंने उड़िया लोगों के खिलाफ ट्वीट किया।

उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की 153-ए (धर्म, जन्मस्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न गुटों के बीच वैमनस्यता फैलाना) और 295-ए (धर्म या धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाकर किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए द्वेषपूर्ण कृत्य) सहित विभिन्न धाराओं के तहत यह मामला दर्ज किया गया है।

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