Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

वकीलों को दोष देने से पहले जज खुद आत्ममंथन करें : बीसीआई ने पास किया प्रस्ताव – सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के जज रिटायर होने के कम से कम दो साल तक कोई पद ग्रहण नहीं करें

LiveLaw News Network
1 Oct 2018 7:47 AM GMT
वकीलों को दोष देने से पहले जज खुद आत्ममंथन करें : बीसीआई ने पास किया प्रस्ताव – सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के जज रिटायर होने के कम से कम दो साल तक कोई पद ग्रहण नहीं करें
x

“बार पर दोष लगाने या नियंत्रित करने” से पहले आत्मनिरीक्षण करने का आह्वान करते हुए बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया (बीसीआई) ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों से कहा है की वे रिटायर होने के कम से कम दो साल बाद तक कोई पद ग्रहण नहीं करें।  यह प्रस्ताव बीसीआई की संयुक्त बैठक में पास किया गया जिसमें राज्य बार काउंसिलों और हाईकोर्ट बार एसोसिएशनों के सदस्य मौजूद थे।

एक प्रेस विज्ञप्ति में बीसीआई ने रिटायरमेंट के बाद न्यायमूर्ति पी सदाशिवम के केरल का राज्यपाल नियुक्त किये जाने पर उठे विवाद की चर्चा करते हुए कहा कि रिटायरमेंट के बाद इस तरह की नियुक्तियाँ कार्यकाल के अंतिम दिनों में संबंधित व्यक्ति के एक जज के रूप में उसेक कर्तव्यों पर प्रश्न उठाता है।

 इसके बाद इसका असर महिपाल सिंह राणा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले पर पड़ा जब सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता अधिनियम,1961 के प्रावधानों की समीक्षा की बात कही। तीन जजों की पीठ जिसमें न्यायमूर्ति अनिल आर दवे, कुरियन जोसफ और आदर्श कुमार गोयल ने भी भारतीय विधि आयोग से इस मामले को उठाने की मांग की थी।

 इस फैसले के बाद जारी आयोग की रिपोर्ट में अधिवक्ता अधिनियम में भारी बदलाव की मांग की थी और देश भर के वकील इससे आग बबूला हो गए थे। इस विज्ञप्ति में इस फैसले का संदर्भ देते हुए उस सुप्रीम कोर्ट के एक विशेष जज के इस आदेश का जिक्र करते हुए कहा गया है कि “जज ने बार का मुंह बंद करने के लिए ही यह आदेश दिया था”। विज्ञप्ति ने कहा कि यही जज उस पीठ का हिस्सा था जिसने यह फैसला दिया था कि हड़ताल इस अदालत द्वारा स्थापित कानून का उल्लंघन है और एसोसिएशन के पदाधिकारी जिन्होंने हड़ताल का आह्वान किया था, वे अवमानना के अपने दायित्व से बच नहीं सकते।

 बिना किसी का नाम लिए (लेकिन इशारा स्पष्टतः न्यायमूर्ति एएक गोयल की ओर था जिन्होंने रिटायर होने के तुरंत बाद एनजीटी के प्रमुख का कार्यभार संभाल लिया) इस विज्ञप्ति में इन फैसलों के बारे में इस आलोक में संदेह व्यक्त किया है कि जज को अवकाश लेने के बाद बहुत ही आकर्षक पद का प्रस्ताव दिया गया। इस विज्ञप्ति में कहा गया है -

बार का मानना है कि इस तरह के अव्यावहारिक और आदर्शवादी आदेश कुछ शक्तिशाली लोगों के इशारे पर दिया गया ताकि वे कुछ भी कर सकते हैं और जनविरोधी और वकील-विरोधी कानून तक बना सकते हैं; और बार को मूक दर्शक बने रहने के लिए बाध्य कर सकते हैं। बार के नेताओं के बीच बातचीत इस बात पर केन्द्रित रही कि उक्त जज को सुप्रीम कोर्ट से रिटायर होने के एक महिना के भीतर ही बहुत ही आकर्षक पद पर नियुक्ति दी गई। इस तरह के जजों पर इस देश के लोगों को कैसे विश्वास हो सकता है?”

 बार ने कहा, “…हम देश के कुछ जजों का बार उसकी संस्था के प्रति उनके गुस्सैल व्यवहारों की प्रशंसा नहीं कर सकते”

 विज्ञप्ति में कहा गया है कि न्यायपालिका का प्रयोग बार की आवाज को रोकने के लिए किया जा रहा है और इसके बाद जज आत्ममंथन की बात कहते हैं। बयान में कहा गया है, “बार को दोष देने या इसको नियंत्रित करने से पहले, हमारे जजों को खुद आत्ममंथन करना चाहिए। वे यह भूल जाते हैं कि पदोन्नति से पहले वे भी कभी इसके सदस्य थे और अवकाश ग्रहण करने के बाद वे दुबारा इसके सदस्य बनेंगे”।

 इस विज्ञप्ति में न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ की इस घोषणा का स्वागत किया कि रिटायर होने के बाद वे कोई भी पद स्वीकार नहीं करेंगे।


 
Next Story