दिल्ली हाईकोर्ट के एक निर्णय के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका को निपटाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “हम यह निर्देश देना उचित समझते हैं कि हाईकोर्ट ने जो दंड लगाया है और मध्यस्थ ने जो दंड लगाया है उसे आसान किया जाए...।”
ऐसा हुआ कि मध्यस्थ ने ‘दंड को आसान बनाया जाए’ (costs made easy) का अर्थ यह समझा कि इसे कम करने को कहा गया है। इसके बाद पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में दुबारा अपील की और मामले को स्पष्ट करने का अनुरोध किया।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा, “जब हमने यह कहा कि ‘दंड को आसान बनाया जाए’ तो इसका अर्थ यह हुआ कि किसी भी तरह की दंड नहीं वसूला जाए और हम समझते हैं कि इस आदेश को इसी तरह समझा जाना चाहिए। इसके अनुरूप, मध्यस्थ द्वारा दंड को कम करने के निर्णय को निरस्त किया जाता है”।
पीठ ने आगे कहा कि “...हम यह भी कहना चाहेंगे कि मध्यस्थ के समक्ष अपनी दलील पेश करने वाले पक्षकारों के वकील इस आदेश के उचित प्रकृति के बारे में बताएँगे और मुक़दमेबाज़ी का रास्ता नहीं अपनाएँगे जिसे कि टाला जा सकता है”।
दंड को आसान करना
इस वाक्य का प्रयोग अदालतों द्वारा पहली बार नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए 2003 में एक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने इस वाक्य का प्रयोग किया था। इसी तरह सैकड़ों ऐसे फैसले हैं जिनमें इस वाक्य का प्रयोग किया गया है।
पर ऐसा लगता है कि इस तरह का वाक्य आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग नहीं होता है। व्याकरण पर बातचीत के एक मंच पर एक सदस्य ने ‘आसान बनाना’ (मेक ईज़ी) के अर्थ को “किसी के साथ दुबारा निबाहना” या “किसी मामले को सुलझाना” के रूप में समझाया।