राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने मंगलवार को वेदांता लिमिटेड को उसके तूतीकोरिन स्थित संयंत्र में प्रवेश को लेकर तीन-सदस्यीय विशेषज्ञ समिति के समक्ष अपना पक्ष रखने की अनुमति दे दी है।
अधिकरण ने कम्पनी के आवेदन पर यह फैसला लिया है। कंपनी ने अपने स्टरलाईट कॉपर संयंत्र में प्रवेश करने और उसके परिसर में मौजूद खतरनाक वस्तुओं को हटाने की अनुमति मांगी है।
वेदांता लिमिटेड के वकील रोहिणी मूसा ने कहा, “हम सीपीसीबी के सुझावों पर अमल करते हुए इस संयंत्र के परिसर में जाकर इसकी साफ़-सफाई करना चाहते हैं और विशेषज्ञ समिति की देखरेख में इस परिसर में रखी गई वस्तुओं को हटाना चाहते हैं जैसा कि एनजीटी ने अपनी पिछली सुनवाई में आदेश दिया था।”
“एनजीटी ने अपने 20 अगस्त के आदेश में विशेष रूप से कहा था कि इन वस्तुओं को हटाया जा सकता है पर ऐसा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा सीपीसीबी (केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड) के सदस्यों की देखरेख में किया जा सकता है और कोर्ट ने इसी की अनुमति दी है। पर, जैसा कि स्वाभाविक है, हम इस बारे में आधिकारिक आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं,” मूसा ने कहा।
वेदांता के वकील ने कोर्ट से कहा कि इस संयंत्र के परिसर में भारी मात्रा में कॉपर कंसन्ट्रेट, जिसमें 30 प्रतिशत गंधक है, यहाँ पड़ा हुआ है जिसको संभालना जरूरी है।
तमिलनाडु सरकार ने वेदांता के आवेदन का यह कहते हुए विरोध किया था कि कंपनी एक तरह से दुबारा उत्पादन शुरू करने की बात कह रही है और जहां तक की इसकी देखरेख की बात है, तो जिलाधिकारी के तहत एनजीटी द्वारा गठित समिति ऐसा कर ही रही है। इस समिति की अध्यक्षता अवकाशप्राप्त न्यायमूर्ति तरुण अग्रवाल कर रहे हैं। समिति में तकनीकी सदस्य भी शामिल हैं।
सरकार ने यह भी कहा की पिछली सुनवाई के दौरान एनजीटी ने इस तरह की अनुमति देने से मना कर दिया था और कहा था कि इस पर समिति ही गौर कर सकती है।
जब अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, एसपी वांगडी और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. नगिन नंदा ने कहा कि वेदांता विशेषज्ञ समिति के समक्ष अपनी बात रख सकती है, तमिलनाडु राज्य की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने इसका विरोध किया और पूछा कि कंपनी को इस समिति के समक्ष पेश होने की अनुमति क्यों दी जा रही है।
“हमें भी अनुमति दीजिये। आप अपने आदेश में यह दर्ज क्यों नहीं कर रहे हैं कि आपने हमारे आग्रह को अस्वीकार कर दिया है? मैं चाहता हूँ कि आप हमारे विरोध को दर्ज करें। मैंने किसी न्यायिक अधिकरण को इस तरह कार्य करते हुए नहीं देखा है,” वैद्यनाथन ने कहा।
एनजीटी ने 20 अगस्त को न्यायमूर्ति एसजे वाज़िफ्दार के नेतृत्व में एक समिति गठित की थी जिसमें पंजाब और हरियाणा और बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, सीपीसीबी और पर्यावरण और वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के एक-एक सदस्य शामिल थे। बाद में इस समिति में इनके बदले मेघालय हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश तरुण अग्रवाल को नियुक्त किया गया।
इस समिति से कहा गया है कि वह वेदांता द्वारा पर्यावरणीय मानकों के अनुपालन के बारे में विभिन्न पक्षों के दावों की जांच करे और इसके आसपास रहने वाले लोगों पर पड़ने वाले इसके प्रभावों पर गौर करे कि ये “अनुमानित हैं या वास्तविक” ।
इस पैनल से कहा गया कि वे इन दावों के बारे में छह सप्ताह के भीतर अपना निर्णय दें। हरित अधिकरण ने यह भी कहा था कि सीपीसीबी के सुझाव इस संयंत्र के परिसर में रखी गई वस्तुओं के सन्दर्भ में मानें जाएं और यही बात अपर रीवर के नजदीक कंपनी द्वारा जमा किये गए कॉपर स्लैग की जांच पर भी लागू होती है।
राज्य सरकार ने जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनयम, 1974 के तहत और अन्य पर्यावरणीय आधार पर इस संयंत्र की बिजली आपूर्ति उस समय काट दी थी जब यहाँ 22 मई को हिंसक प्रदर्शन के दौरान 13 लोग मारे गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 सितम्बर को एनजीटी की विशेषज्ञ समिति के आदेश में किसी भी तरह से हस्तक्षेप करने से मना कर दिया था और एनजीटी को आदेश दिया था कि वह इस मामले पर उसके मेरिट के आधार पर गौर करे।
(पीटीआई से प्राप्त जानकारी पर आधारित)