आम लोगों और पर्यावरण के हित में प्लास्टिक के थैलों पर पूर्ण पाबंदी; मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस बारे में क़ानून में संशोधन को जायज ठहराया [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

17 Sep 2018 2:50 PM GMT

  • आम लोगों और पर्यावरण के हित में प्लास्टिक के थैलों पर पूर्ण पाबंदी; मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस बारे में क़ानून में संशोधन को जायज ठहराया [आर्डर पढ़े]

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में प्लास्टिक के कैरी बैबैग्स पर राज्य सरकार की पूर्ण पाबंदी को सही ठहराया है।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति विजय कुमार शुक्ला ने मध्य प्रदेश जैव अनाश्य अपशिष्ट (नियंत्रण) संशोधन अधिनियम, 2017 द्वारा प्लास्टिक के कैरी बैग्स पर लगाए गए पूर्ण प्रतिबन्ध के खिलाफ याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला दिया। हाईकोर्ट ने इस बात को भी खारिज कर दिया कि इस तरह का संशोधन करना राज्य सरकार के क्षेत्राधिकार के बाहर है।

    पीठ ने कहा कि राज्य सरकार का क़ानून केंद्र सरकार के इस बारे में नियमों के खिलाफ नहीं है।

    “राज्य के अन्दर, केन्द्रीय क़ानून और राज्य के क़ानून दोनों में सामंजस्य बैठाया जा सकता है क्योंकि राज्य का क़ानून प्लास्टिक बैग्स पर प्रतिबन्ध के बारे में केंद्रीय क़ानून से एक कदम आगे जाता है,” पीठ ने कहा।

    कोर्ट ने यहाँ भी कहा कि राज्य का क़ानून जनहित को देखता है जबकि केन्द्रीय क़ानून प्लास्टिक बैग्स बनाने वाली कंपनियों के हितों के बारे में है और जब दोनों में किसी एक को चुनना है तो जिसमें आम लोगों का हित होता है, उसको अपनाया जाना है।

    याचिका को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, “राज्य का क़ानून पर्यावरण के हित में कैरी बैग्स के उत्पादन, भंडारण, बिक्री और उसके प्रयोग पर प्रतिबन्ध लगाता है जबकि केन्द्रीय नियम विभिन्न तरह के प्लास्टिक और पॉलिथीन की वस्तुओं के उत्पादन,उसके भंडारण और उसकी बिक्री की अनुमति देता है। इसलिए राज्य सरकार का अधिनियम पॉलिथीन बैग्स के उत्पादन,भंडारण और उसकी बिक्री एवं प्रयोग पर रोक लगाता है जबकि केन्द्रीय नियम इसके उत्पादन, बिक्री, भंडारण आदि का विनियमन करता है। इस तरह दोनों ही क़ानून का उद्देश्य अलग है। फिर, केन्द्रीय नियम, 50 माइक्रोंस या उससे अधिक के कैरी बैग्स की अनुमति देता है  जबकि राज्य का क़ानून इस पर प्रतिबन्ध लगाता है ।केंद्रीय नियमों के तहत उत्पादकों को प्लास्टिक बैग्स बनाने के लिए अनुमति लेने के जरूरत पड़ेगी जबकि राज्य का क़ानून इस तरह की गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगाता है। राज्य का क़ानून पर्यावरण के हित में और आम लोगों के हित में है जबकि केन्द्रीय नियम प्लास्टिक के उत्पादकों के हितों को लेकर है और दोनों के बीच जिसमें आम जनता का हित ज्यादा है उसको वरीयता दी जानी है।”


     
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