गोरखपुर हेट स्पीच : सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को कहा, योगी आदित्यनाथ के खिलाफ शिकायत पर फिर करें जांच [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
12 Sept 2018 11:18 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गोरखपुर के न्यायिक मजिस्ट्रेट को कहा है कि वो ये जांच करें कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य के खिलाफ "हेट स्पीच” मामले की शिकायत पर फिर से सुनवाई शुरू हो सकती है या नहीं। ये शिकायत रशीद खान ने दर्ज कराई थी कि बीजेपी नेता ने 27 जनवरी, 2007 को
भड़काऊ भाषण दिया था जिसकी वजह से गोरखपुर में दंगे हुए। आदित्यनाथ उस समय, हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री नहीं थे बल्कि सांसद थे।
उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि मजिस्ट्रेट को जांच करते समय सर्वोच्च अदालत के पहले के फैसले को ध्यान में रखना चाहिए। 2015 में "सुनील भारती मित्तल बनाम सीबीआई" मामले में कहा गया था कि किसी मामले में संज्ञान लेने से पहले आगे बढ़ने के लिए मजिस्ट्रेट को अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए और उसके कारण बताने चाहिएं।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने रशीद खान द्वारा दायर अपील को निपटाने के दौरान ये आदेश जारी किए। इस मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा पारित समवर्ती आदेश सत्र अदालत और बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था। गोरखपुर न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा योगी आदित्यनाथ के खिलाफ संज्ञान लिया गया था।
इस आदेश की दो तरीकों से व्याख्या की जा रही है। एक विचार यह है कि अगर मजिस्ट्रेट पहली नजर में केस समझते हैं तो आदित्यनाथ को अब मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है। एक और बात ये है कि ये आदेश आदित्यनाथ के लिए राहत है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। दरअसल उच्च न्यायालय ने शिकायत को रद्द करने में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था।
सत्र न्यायालय ने संज्ञान को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि निर्णय लेने के दौरान शिकायत पर संज्ञान और योगी आदित्यनाथ को समन जारी करने में न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने रशीद खान द्वारा 1 फरवरी, 2018 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली
याचिका पर ये निर्देश दिए जिसमें 28 जनवरी को सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया गया था। सत्र न्यायालय ने 2017 में गोरखपुर न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित संज्ञान आदेश को रद्द कर दिया था।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि 27 जनवरी 2007 की सुबह योगी आदित्यनाथ द्वारा बुलाने पर एक भीड़ जिसमें हिंदू युवा वाहिनी और अन्य हिंदू संगठनों के हिंसक सदस्य एकत्र हुए और उसमें उन्होंने स्थानीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ उत्तेजक भाषण दिया। उस समय योगी आदित्यनाथ को जिला मजिस्ट्रेट ने आदेश दिया था कि वो उस जगह पर ना जाएं। उन्होंने निषिद्ध आदेश का उल्लंघन किया और इसी कारण अन्य आरोपी लोगों ने पवित्र मकबरे को घेर लिया और आग लगा दी।
शिकायतकर्ता ने आगे आरोप लगाया कि भीड़ ने धार्मिक स्थान से नकदी और चांदी के गहने भी लूट लिए। शिकायत के बाद मजिस्ट्रेट ने आईपीसी धारा 153 ए (हेट स्पीच),506 (आपराधिक धमकी ), 438 (विस्फोटक सामग्री) आदि के तहत समन जारी किए थे लेकिन योगी आदित्यनाथ और अन्य लोगों द्वारा अपील पर सत्र न्यायालय ने मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया था। उच्च न्यायालय ने आदेश में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया था और कहा था कि शिकायत पर फिर से विचार करें और नया आदेश पास करें।
भड़काऊ भाषण दिया था जिसकी वजह से गोरखपुर में दंगे हुए। आदित्यनाथ उस समय, हालांकि राज्य के मुख्यमंत्री नहीं थे बल्कि सांसद थे।
उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि मजिस्ट्रेट को जांच करते समय सर्वोच्च अदालत के पहले के फैसले को ध्यान में रखना चाहिए। 2015 में "सुनील भारती मित्तल बनाम सीबीआई" मामले में कहा गया था कि किसी मामले में संज्ञान लेने से पहले आगे बढ़ने के लिए मजिस्ट्रेट को अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए और उसके कारण बताने चाहिएं।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने रशीद खान द्वारा दायर अपील को निपटाने के दौरान ये आदेश जारी किए। इस मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा पारित समवर्ती आदेश सत्र अदालत और बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था। गोरखपुर न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा योगी आदित्यनाथ के खिलाफ संज्ञान लिया गया था।
इस आदेश की दो तरीकों से व्याख्या की जा रही है। एक विचार यह है कि अगर मजिस्ट्रेट पहली नजर में केस समझते हैं तो आदित्यनाथ को अब मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है। एक और बात ये है कि ये आदेश आदित्यनाथ के लिए राहत है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया। दरअसल उच्च न्यायालय ने शिकायत को रद्द करने में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था।
सत्र न्यायालय ने संज्ञान को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि निर्णय लेने के दौरान शिकायत पर संज्ञान और योगी आदित्यनाथ को समन जारी करने में न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने रशीद खान द्वारा 1 फरवरी, 2018 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को चुनौती देने वाली
याचिका पर ये निर्देश दिए जिसमें 28 जनवरी को सत्र न्यायालय द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया गया था। सत्र न्यायालय ने 2017 में गोरखपुर न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित संज्ञान आदेश को रद्द कर दिया था।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि 27 जनवरी 2007 की सुबह योगी आदित्यनाथ द्वारा बुलाने पर एक भीड़ जिसमें हिंदू युवा वाहिनी और अन्य हिंदू संगठनों के हिंसक सदस्य एकत्र हुए और उसमें उन्होंने स्थानीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ उत्तेजक भाषण दिया। उस समय योगी आदित्यनाथ को जिला मजिस्ट्रेट ने आदेश दिया था कि वो उस जगह पर ना जाएं। उन्होंने निषिद्ध आदेश का उल्लंघन किया और इसी कारण अन्य आरोपी लोगों ने पवित्र मकबरे को घेर लिया और आग लगा दी।
शिकायतकर्ता ने आगे आरोप लगाया कि भीड़ ने धार्मिक स्थान से नकदी और चांदी के गहने भी लूट लिए। शिकायत के बाद मजिस्ट्रेट ने आईपीसी धारा 153 ए (हेट स्पीच),506 (आपराधिक धमकी ), 438 (विस्फोटक सामग्री) आदि के तहत समन जारी किए थे लेकिन योगी आदित्यनाथ और अन्य लोगों द्वारा अपील पर सत्र न्यायालय ने मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया था। उच्च न्यायालय ने आदेश में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया था और कहा था कि शिकायत पर फिर से विचार करें और नया आदेश पास करें।
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