एसबीआई का 53.46 करोड़ रुपए बकाया रखने वाली याचिकाकर्ता कंपनी पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने क़ानून की प्रक्रिया का बेजा इस्तेमाल के लिए लगाया 50 हजार रुपए का जुर्माना [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

11 Sep 2018 2:37 PM GMT

  • एसबीआई का 53.46 करोड़ रुपए बकाया रखने वाली याचिकाकर्ता कंपनी पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने क़ानून की प्रक्रिया का बेजा इस्तेमाल के लिए लगाया 50 हजार रुपए का जुर्माना [निर्णय पढ़ें]

    विभिन्न मंचों पर एक ही आधार पर एक से अधिक मामले दायर करने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने विबग्योर टेक्सोटेक पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने कहा कि एक से अधिक मामले दायर करके उसने क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है। इस कंपनी पर सरकारी क्षेत्र के स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया का 53.46 करोड़ रुपए बकाया है।

    न्यायमूर्ति केके तातेड और एसके शिंदे की पीठ ने विबग्योर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्संरचना एवं सिक्योरिटीज इंटरेस्ट एक्ट, 2002 की धारा 132 को चुनौती दी गई थी। बैंक इस कम्पनी के वसई, पालघर जिला स्थित संपत्ति को अपने कब्जे में करने जा रही है।

    कोर्ट ने याचिकाकर्ता को चेतावनी दी कि अगर उसने जुर्माने की यह राशि एक महीने के भीतर जमा नहीं कराई तो महाराष्ट्र भूमि राजस्व संहिता, 1966 के तहत उससे यह राशि बकाये के रूप में वसूली जाएगी।

    मामले की पृष्ठभूमि

    विबग्योर ने यह याचिका इस घोषणा की अनुमति प्राप्त करने के लिए दायर की थी कि प्रतिवादी बैंक (एसबीआई) की कोई राशि उस पर बकाया नहीं है; यह कि बैंक को याचिकाकर्ता के खिलाफ कार्रवाई का कोई आधार नहीं है क्योंकि याचिकाकर्ता के खिलाफ करार तोड़ने, और उपभोक्ता के साथ दोस्ताना व्यवहार नहीं रखने जैसी बैंक की कार्रवाई के कारण याचिकाकर्ता कंपनी को भारी नुकसान उठाना पडा है।

    याचिकाकर्ता कंपनी ने कहा कि प्रतिवादी बैंक के साथ इस मामले को निपटाने के लिए किसी न्यायिक मंच तक पहुँचने का अधिकार है और इस तरह का फैसला होने तक उसे बैंक/सुरक्षित ऋणदाता के अधिकारों से बचाए जाने का अधिकार है।

    5 जून 2018 को याचिकाकर्ता कंपनी ने अंतरिम राहत की मांग की थी। पर जब याचिकाकर्ता के वकील मैथ्यू नेदुम्पारा से हाईकोर्ट ने पूछा कि क्या उनका मुवक्किल बैंक की कुल बकाया राशि का 50 फीसदी जमा करने को तैयार है, कंपनी के प्रतिनिधि जो नेदुम्पारा को निर्देश दे रहा था वहाँ से नदारद था। इस तरह कंपनी को अंतरिम राहत देने से कोर्ट में मना कर दिया।

    फैसला

    कोर्ट ने कहा कि कार्यपालक मजिस्ट्रेट ने एसएआरएफएईएसआई अधिनियम की धारा 14 के तहत 16 मार्च 2017 को आदेश जारी कर वसई के तहसीलदार को याचिकाकर्ता कंपनी के मकान को अपने कब्जे में लेने को कहा था। इसके बाद इस संपत्ति को कब्जे में लेने के लिए यह नोटिस जारी किया गया।

    “जो दलील दी गई है और दस्तावेजों का जो पुलिंदा (एक से अधिक मामलों का) कोर्ट के समक्ष पेश किया गया है उससे यह पता चलता है कि याचिकाकर्ता बैंक की रिकवरी रोकने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है और इसके लिए उसने कई मामले दायर किये हैं।

    कम्पनी ने सेक्यूरिटाइजेशन अपील (नंबर 4, 2012) और धारा 13(2) और 13(4) के तहत के जारी नोटिस को कई आधार पर चुनौती दी है। यह अपील डीआरटी के पास आज भी विचाराधीन है। यह बताना जरूरी है कि उक्त अपील में याचिकाकर्ता ने बैंक से करार तोड़ने और दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई के लिए100 करोड़ रुपए के हर्जाने का दावा किया है।

    एसबीआई के वकील रोहित गुप्ता ने कहा की कंपनी ने हाईकोर्ट में एसएआरएफएईएसआई अधिनियम के तहत जारी नोटिस के खिलाफ भी इसी तरह का मामला दायर कर रखा है। एक अन्य पीठ ने क़ानून की प्रक्रिया का बेजा इस्तेमाल के लिए इस कंपनी पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया था।

    कोर्ट ने कहा, “...हमारा मानना है कि याचिकाकर्ता ने खुद या अन्य लोगों के द्वारा कई तरह की कार्रवाई शुरू कर रखी है जो कि ऐसा करने का अधिकार नहीं रखते हैं। यद्यपि 2012 के प्रतिभूतिकरण अपील नंबर 4 दायर कर कंपनी ने विवाद सुलझाने के वैकल्पिक दरवाजे को बंद कर दिया है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत उसने कोर्ट के विशेषाधिकार के प्रयोग के लिए वर्तमान याचिका दायर की है। इसलिए हमारे विचार में, यह नवीनतम याचिका क़ानून की प्रक्रिया के दुरूपयोग के अलावा और कुछ नहीं है।”


     
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