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डॉक्टर का विकलांगता प्रमाणपत्र पढ़ने लायक नहीं होने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दी संभल जाने की चेतावनी, स्पष्टीकरण माँगा [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
10 Sep 2018 10:42 AM GMT
डॉक्टर का विकलांगता प्रमाणपत्र पढ़ने लायक नहीं होने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दी संभल जाने की चेतावनी, स्पष्टीकरण माँगा [आर्डर पढ़े]
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डॉक्टरों के हाथ की लिखाई का स्पष्ट नहीं होना आम लोगों के लिए हमेशा ही एक समस्या रही है और लोग सोचते रहे हैं क्यों डॉक्टरों के हाथ की लिखावट इतनी खराब होती है।

 पर कोई अदालत इस पर गौर करेगा और डॉक्टर से इसके लिए स्पष्टीकरण मांगेगा ऐसा, बहुत कम होता है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नियमित रूप से विकलांगता प्रमाणपत्र जारी करने वाले डॉक्टर को इस बारे में सावधान रहने की चेतावनी दी है क्योंकि उसने जो विकलांगता के डायग्नोसिस में लिखा है वह हमेशा ही पढ़ने लायक नहीं होता और यह स्पष्ट नहीं होता की कामगार मुआवजा अधिनियम के तहत मुआवजा मांगने वाले व्यक्ति को काम करने के दौरान हुए हादसे में किस तरह की विकलांगता का शिकार होना पड़ा।

 इस बात पर गौर करते हुए कि संबंधित डॉक्टर कई मामलों में विकलांगता का प्रमाणपत्र जारी कर चुका है, कोर्ट ने उसे विकलांगता प्रमाणपत्र जारी करने के दौरान सावधान रहने की हिदायत दी है और उसे प्रमाणपत्र में संबंधित व्यक्ति की विकलांगता का कारण, तथ्य, बीमारी व किस तरह की चोटें आईं हैं इसका स्पष्ट उल्लेख करने को कहा है।

 वर्तमान मामले में, न्यायमूर्ति अशोक कुमार ने संबंधित डॉक्टर से हलफनामा दायर कर यह बताने को कहा है की “डायग्नोसिस” के तहत गुड्डू नामक एक कामगार को विकलांगता प्रमाणपत्र में उसने क्या लिखा है। कोर्ट ने कहा की अगर वह ऐसा नहीं करता है तो उसे अदालत में खुद उपस्थित होना पड़ेगा।

 कोर्ट ने न्यू इंडिया एस्स्योरेंश कंपनी लिमिटेड की एक अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। यह अपील गुड्डू कुमार को जुलाई में कामगार मुआवजा अधिनियम, 1923 के तहत कानपुर क्षेत्र, कानपुर के अतिरिक्त श्रम आयुक्त द्वारा दिए गए मुआवजा के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी।

गुड्डू कुमार को बब्बल भाटिया नामक व्यक्ति ने 8000 रुपए प्रतिमाह के वेतन पर ट्रक चालक के रूप में काम पर रखा। 23 अक्टूबर 2016 को जिस दिन दुर्घटना हुई उस रात को भाटिया के निर्देश के अनुसार वह ट्रक लेकर पटना जा रहा था। जब वह पटना पहुंचा, तो एक वाहन के साथ उसका आमने सामने का टक्कर हो गया।

22 साल के गुड्डू के पाँव की हड्डी टूट गई और उसे सर्जरी के लिए कानपुर लाना पड़ा। सर्जरी के बाद, वह विकलांग हो गया और वह किसी वाहन को चलाने लायक नहीं रह गया।

श्रम आयुक्त कार्यालय ने उसको 5.24 लाख रुपए का मुआवजा दिए जाने को कहा।

कामगार मुआवजा अधिनियम की धारा 4 के तहत डॉक्टर ने उसे 50 फीसदी विकलांगता का प्रमाणपत्र जारी किया और प्रमाणपत्र में “डायग्नोसिस” के तहत कुछ नोट लिखा।

 इस अपील पर सुनवाई के दौरान न्यू इंडिया एस्स्योरेंश के वकील प्रांजल मेहरोत्रा ने कहा कि डॉ. अवतार सिंह ने जो विकलांगता प्रमाणपत्र जारी किया उसमें यह स्पष्ट नहीं है कि प्रमाणपत्र में किस तरह की विकलांगता का जिक्र किया गया है और इस वजह से धनार्जन क्षमता की हानि का उचित आकलन अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नहीं हो पाया।

 इस दलील पर, न्यायमूर्ति कुमार ने स्थाई वकील अविनाश चन्द्र त्रिपाठी को आदेश दिया की वह अनुच्छेद 3 के साथ डॉ. अवतार सिंह द्वारा 27 सितम्बर 2017 को जारी प्रमाणपत्र की कॉपी इस आदेश की एक कॉपी के साथ भेज दें और उनसे पूछें कि विकलांगता प्रमाणपत्र में  डायग्नोसिस के तहत उन्होंने क्या लिखा है क्योंकि उन्होंने जो लिखा है उसे पढ़ा नहीं जा सकता और इस बात को उनके अलावा और कोई स्पष्ट नहीं कर सकता है।

 “इस कोर्ट ने पाया है की कई मामलों में इसी डॉक्टर (डॉ. अवतार सिंह) ने विकलांगता प्रमाणपत्र जारी किया है और जो डायग्नोसिस लिखा है उसे किसी भी पक्ष के वकील से पढ़ा नहीं जा रहा।

 “डॉ. अवतार सिंह को निर्देश दिया जाता है कि उन्होंने गुड्डू कुमार को 27 सितम्बर 2017 को जो विकलांगता प्रमाणपत्र (नंबर 3949) जारी किया है उसमें डायग्नोसिस में क्या लिखा है वह बताएं,” न्यायमूर्ति कुमार ने अपने आदेश में कहा।

 जज ने अपने आदेश में आगे लिखा, “डॉ. अवतार सिंह, जो नियमित रूप से विकलांगता प्रमाणपत्र जारी करते रहे हैं, उन्हें हिदायत दी जाती है कि वे प्रमाणपत्र में विकलांगता के कारण को स्पष्ट लिखें, इसके तथ्यों और पीड़ित को क्या हुआ है इसके बारे में लिखें।”

 “पूरे स्पष्टीकरण के साथ यह हलफनामा आज से दो सप्ताह के भीतर दायर किया जाना है और स्थाई वकील यह कोर्ट के समक्ष पेश करेंगे और अगर वह ऐसा नहीं कर पाते हैं तो उन्हें अगली सुनवाई के दिन (27 सितम्बर 2018 को) खुद कोर्ट में उपस्थित होना पड़ेगा,” न्यायमूर्ति कुमार ने अपने आदेश में कहा।


 
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