सुप्रीम कोर्ट ने शहरी बेघरों की चिंता नहीं करने के लिए सरकार की खिंचाई की; कहा, बेघरों को उनके भाग्य पर नहीं छोड़ा जा सकता [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
10 Sept 2018 4:01 PM IST
‘आवास हर व्यक्ति की आवश्यक जरूरत है और जब भारत सरकार ने इसके बारे में नीति और योजना बनाई है, तो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इसे पूर्णतया लागू करना चाहिए”
शहरी बेघरों की समस्याओं पर गौर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत एक कमिटी गठित करने का मामला जिस गति से चल रहा है उस पर सुप्रीम कोर्ट ने दुःख प्रकट किया है।
शहरी बेघरों के बारे में एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने कहा की 11 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में याचिकाकर्ताओं के सुझावों के अनुरूप नागरिक समाज के सदस्यों के बारे में कोई अधिसूचना जारी नहीं किया गया है। चंडीगढ़, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, ओडिशा,त्रिपुरा और उत्तराखंड इसके तहत आते हैं।
पीठ ने उत्तराखंड को छोड़कर शेष सभी राज्यों पर एक लाख का जुर्माना किया। इस समय राज्य को जिस विचित्र स्थिति का सामना अकरना पड़ रहा है उसकी वजह से इस राज्य को दंडित नहीं किया गया है।
पीठ ने कहा, “राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को आज से दो सप्ताह के भीतर इस बारे में अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया जता है। हम उम्मीद करते हैं कि जिन राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों ने ऐसा नहीं किया है वे शहरी बेघरों की कुछ चिंता करें।”
यह भी कहा गया कि कुछ राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश जैसे कर्नाटक, पुदुचेरी और दिल्ली ने तीन बैठकें की हैं; बिहार और बंगाल ने दो बैठकें की हैं; 23 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों ने ने सिर्फ एक बैठक की है; चार राज्य जैसे केरल, नगालैंड, सिक्किम और उत्तराखंड ने एक भी बैठक नहीं की है। पीठ ने यह भी कहा कि कुछ ऐसे मामले भी हैं जहां बैठकें हुई हैं पर संबंधित अधिकारियों ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया।
“हम चाहते हैं की अगर ऐसा अभी तक नहीं किया गया है तो सभी राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश शहरी बेघरों के लिए 31 अक्टूबर 2018 तक कार्य योजना बनाएं। इस कार्य योजना में बेघरों के पहचान का तरीका, उनके आश्रय की प्रकृति, जमीन की पहचान आदि शामिल होनी चाहिए,” कोर्ट ने कहा।
पीठ ने आगे कहा, “हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि अगर राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा जरूरी कदम नहीं उठाए जाते हैं,हमारे पास उन पर कठोर जुर्माना लगाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचेगा विशेषकर यह ध्यान में रखते हुए कि बेघरों को उनके भाग्य के भरोसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इसके अलावा, आवास हर व्यक्ति की आधारभूत जरूरत है और जब भारत सरकार ने इसके लिए एक नीति और योजना बना रखी है तो इसको सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को पूरी तरह लागू करना चाहिए।”