पोस्टिंग को चुनौती वाली याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सभी सैनिक शपथ के तहत वहाँ अपनी सेवा देने के लिए बाध्य जहां उनको भेजा जाता है [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
8 Sept 2018 11:03 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने नॉन-ऑपरेशनल आर्मी सर्विसेज कोर (एएससी) के तीन सैनिकों की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें उन्होंने नॉन-ऑपरेशनल यूनिट से ऑपरेशनल यूनिट में अपने स्थानांतरण को चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा की उनको दिए गए आदेश में मौलिक अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। कोर्ट ने कहा की सभी सैनिक सेवा में आने से पहले जो शपथ लेते हैं उसके हिसाब से वह कहीं भी सेवा देने के लिए बाध्य हैं भले ही उनकी नियुक्ति किसी भी सेवा में क्यों न हुई हो।
न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा और न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन की पीठ ने एएससी के तीन अधिकारियों जिनमें एक मेजर, दूसरा लेफ्टिनेंट और तीसरा सिपाही हैं, की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने अपनी पोस्टिंग को चुनौती दी थी।
याचिकाकर्ताओं ने भारत संघ एवं अन्य बनाम ले. क. पीके चौधरी एवं अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा करते हुए याचिका दायर की थी। इस फैसले में कहा गया था कि केंद्र के अनुसार एसएससी, ईएमई और लघु कोर नॉन-ऑपरेशनल यूनिट हैं।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि पीके चौधरी के मामले में आए फैसले के अनुरूप, तैनाती और पोस्टिंग में भी इसी तरह के मानदंड को लागू किया जाना चाहिए।
केंद्र ने कहा कि अगर याचिकाकर्ताओं को कोई शिकायत थी, तो वे अपनी पोस्टिंग को शसस्त्र बल अधिकरण में चुनौती दे सकते थे। उसने यह भी कहा कि ट्रांसफर न केवल सेवा का आवश्यक अंग है बल्कि वह सेवा की एक आवश्यक शर्त भी है न कि कोई मौलिक अधिकार कि किसी की पोस्टिंग किसी विशेष जगह पर ही हो या किसी का ट्रान्सफर उसकी पसंद के किसी विशेष स्थान पर ही हो।
केंद्र ने यह भी कहा कि सेना में कोई व्यक्ति नहीं है जो “लड़ाई नहीं कर सकने वाला हो” या “नॉन-ऑपरेशनल” हो। इसमें अगर कोई अपवाद है तो वह है सेना का चिकित्सा संगठन।
पीठ ने सुनवाई के बाद कहा, “सिर्फ इस आधार पर याचिकाकर्ताओं की अपील को स्वीकार कर लेना कि एएससी को प्रोमोशन के सन्दर्भ में नॉन-ऑपरेशनल बताया गया है, सेना की पूरी संरचना और उसके ऑपरेशन को बाधित करना होगा।”
सेना में अधिकारीयों और सिपाहियों को दिलाये जाने वाले शपथ पर गौर करते हुए पीठ ने कहा, “यह शपथ सभी सैनिकों को दिलाया जाता है भले ही उनकी नियुक्ति वह किसी भी संगठन में हुई हो। इस शपथ के अनुसार, सैन्यकर्मी उस स्थान पर अपनी सेवाएं देने के लिए अपने कर्तव्य से बंधे हुए हैं जहां उन्हें ऐसा करने का आदेश दिया जाता है”
कोर्ट ने अपने ही एक फैसले (मे. ज. जेके बंसल बनाम भारत संघ) को उद्धृत करते हुए कहा की ट्रान्सफर के मामले को उचित प्राधिकरण के विवेक पर छोड़ देना चाहिए और इसमें कोई दखल नहीं देना चाहिए अगर कोई कानूनी नियम का उल्लंघन नहीं हुआ है या उचित अधिकारी ने दुर्भावना के तहत काम नहीं किया है।