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मोटर वाहन अधिनियम के तहत नो क्लेम पेटीशन की अनुमति तभी जब दुर्घटना उससे होती है जो वाहन का मालिक और ड्राईवर दोनों है और दुर्घटना में कोई और वाहन शामिल नहीं है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
![मोटर वाहन अधिनियम के तहत नो क्लेम पेटीशन की अनुमति तभी जब दुर्घटना उससे होती है जो वाहन का मालिक और ड्राईवर दोनों है और दुर्घटना में कोई और वाहन शामिल नहीं है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें] मोटर वाहन अधिनियम के तहत नो क्लेम पेटीशन की अनुमति तभी जब दुर्घटना उससे होती है जो वाहन का मालिक और ड्राईवर दोनों है और दुर्घटना में कोई और वाहन शामिल नहीं है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/09/nv-ramana-abdul-nazeer.jpg)
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को दुहराया है कि जब किसी वाहन का मालिक-सह-चालक खुद दुर्घटना के लिए जिम्मेदार है जिसमें कोई अन्य वाहन शामिल नहीं हैं तो उस स्थिति में मोटर वाहन अधिनियम के तहत नो क्लेम आवेदन को स्वीकार किया जाएगा।
वर्तमान मामले (नेशनल इंस्योरेंश कंपनी लिमिटेड बनाम आशालता भौमिक) में त्रिपुरा हाई कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण, पश्चिम त्रिपुरा द्वारा दिए गए फैसले को सही ठहराया था। अधिकरण ने 10,57,800 रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया था और कहा था कि यह मुआवजा इस तथ्य के बावजूद दिया जा रहा है कि मृतक तीसरा पक्ष नहीं है और दुर्घटना लापरवाहीपूर्ण ड्राइविंग के कारण हुई है। हालांकि, अधिकरण ने आदेश दिया कि मुआवजा इस शर्त के साथ चुकाया जाएगा कि इस फैसले को परंपरा न माना जाए।
बीमाकर्ता ने हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ अपील की।
न्यायमूर्ति एनवी रमना और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर ने कहा कि मृतक के क़ानूनी प्रतिनिधि का यह मुआवजा दावा मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत नहीं टिकता है।
ओरिएण्टल इंस्योरेंश कंपनी लिमिटेड बनाम झुमा साहा मामले में आए फैसले का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति अब्दुल नज़ीर ने कहा, “...यह तयशुदा बात है मृतक उस वाहन का मालिक और चालक दोनों था। यह दुर्घटना मृतक द्वारा असावधानी से गाड़ी चलाने के कारण हुई। इस दुर्घटना में कोई और वाहन शामिल नहीं था। मृतक खुद इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार था। मृतक अधिनियम दुर्घटना में शामिल वाहन का मालिक होने के कारण अधिनियम के अनुसार तीसरा पक्ष भी नहीं है। हमारे विचार में दावेदार अपनी ही गलती के आधार पर कोई दावा नहीं कर सकता है और यह नहीं कह सकता है कि इसके बावजूद कि दुर्घटना उसकी ही गलती से हुई, बीमा कंपनी को उसको भुगतान करना पड़ेगा।”
मुआवजा देने के फैसले को निरस्त करते हुए कोर्ट ने कहा कि चूंकि मृतक का निजी दुर्घटना के तहत मिलने वाले मुआवजे की सीमा बीमा करार के तहत दो लाख है, इसलिए क़ानूनी प्रतिनिधि को सिर्फ यही राशि मिल सकती है।