फर्जी हलफनामा दायर करने वाले अधिवक्ता पर दो लाख जुर्माना लगाने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित किया [आर्डर पढ़े]
LiveLaw News Network
1 Sept 2018 8:19 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के उस फैसले को स्थगित कर दिया है जिसके तहत उसने एक अधिवक्ता पर फर्जी हलफनामा दायर करने के लिए दो लाख का जुर्माना किया था।
न्यायमूर्ति एके सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने अधिवक्ता चन्द्र शेखर करगेती की याचिका पर यह फैसला दिया। इस मामले पर अब छह सप्ताह के बाद सुनवाई होगी।
करगेती ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस फैसले को निरस्त करने की मांग की थी और यह भी कहा था कि उसके खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज मामले को समाप्त किया जाए।
करगेती पर उत्तराखंड अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के सचिव गीता राम नौटियाल के खिलाफ कुछ लोगों के साथ मिलकर झूठे आरोप लगाने की वजह से मामला दायर किया गया है। आरोप यह है कि करगेती फेसबुक पर नौटियाल को भ्रष्ट अधिकारी बताते हुए उसके खिलाफ पोस्ट डाल रहा था।
आरोप पत्र के आधार पर देहरादून के विशेष जज (एससी/एसटी अधिनियम) ने मामले का संज्ञान लिया था और करगेती के खिलाफ सम्मन जारी किया था।
विशेष जज की इस कार्रवाई को करगेती ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि नौटियाल ब्राह्मण है और वह अनुसूचित जनजाति में नहीं आता। नौटियाल ने अपने बचाव में देहरादून जिले के चकराता के तहसीलदार द्वारा 1998 में जारी जाति प्रमाणपत्र पेश किया जिसमें उसको जौनसारी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया था।
कोर्ट ने उपलब्ध दस्तावेजों की जांच के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि करगेती ने अदालत में फर्जी बयान दायर कर कोर्ट से अपने पक्ष में मनोनुकूल फैसला प्राप्त करने में सफल रहा था। कोर्ट ने कहा कि अपने दावे को साबित करने में वह विफल रहा था।
इस निष्कर्ष के बाद कोर्ट ने कहा कि करगेती किसी राहत का हक़दार नहीं है। फिर चूंकि वह एक प्रैक्टिस करने वाला अधिवक्ता है और उसे मामले की नजाकत को समझना चाहिए था। कोर्ट ने कहा, “...कोर्ट की राय में आवेदक पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए। आवेदक कोई आम आदमी नहीं है, वह एक अधिवक्ता है, उसे कोर्ट में कोई हलफनामा दायर करते हुए ज्यादा सतर्क और सावधान रहना चाहिए पर उसने इस कोर्ट के समक्ष शपथ के तहत फर्जी बयान दर्ज किया”।
कोर्ट ने इस तरह की गतिविधियों की नींदा की और कहा, “आज के दिन में मुकदमादारों को शपथ के तहत फर्जी बयान दर्ज कर कोर्ट को दिग्भ्रमित करने में कोई डर नहीं होता है...अगर अपने मनोनुकूल फैसला प्राप्त करने के लिए इस तरह के फर्जीवाड़े को चलने दिया गया तो यह कोर्ट की प्रतिष्ठा को नष्ट कर देगा। इसलिए इस तरह के मुकदमादारों से सख्ती से निपटने की जरूरत है।
इसीलिए कोर्ट ने आवेदक पर दो लाख रुपए का जुर्माना लगाया था और कहा था कि हलफनामे की पवित्रता को बनाए रखने की जरूरत है। कोर्ट ने आवेदक को यह राशि एक माह के भीतर रजिस्ट्री में जमा कराने का आदेश दिया था।