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उत्तराखंड में फतवा सुनाने वाले सभी धार्मिक संस्थाओं पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने लगाया प्रतिबन्ध [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
31 Aug 2018 2:45 PM GMT
उत्तराखंड में फतवा सुनाने वाले सभी धार्मिक संस्थाओं पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने लगाया प्रतिबन्ध [आर्डर पढ़े]
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रुड़की के ग्रामीणों ने बलात्कार की शिकार नाबालिग के परिवार को गाँव से निकल जाने का सुनाया है फतवा

हाईकोर्ट ने फतवा सुनाने वालों के खिलाफ आपराधिक अभियोजन का दिया आदेश

उत्तराखंड के रुड़की स्थित लस्कर गाँव में बलात्कार की शिकार एक नाबालिग के परिवार को गाँव से निकले जाने का फतवा सुनाने को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गैरकानूनी करार देते हुए राज्य में फतवा सुनाने वाले सभी धार्मिक संस्थाओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। कोर्ट ने पुलिस को निदेश दिया है कि वह यह सुनिश्चित करे कि लड़की के परिवार वालों को कोई गाँव से नहीं निकाले और उन्हें परिवार को चौबीसों घंटे सुरक्षा देने को कहा है। कोर्ट ने पुलिस से यह भी कहा है कि वह फतवा जारी करने वाले सभी लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करे।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा ने यह आदेश उस समय पास किया जब कोर्ट का ध्यान इस बारे में एक खबर की ओर दिलाया गया। बलात्कार की पीड़ित नाबालिग ने अपने पड़ोसी पर बलात्कार का आरोप लगाया और कहा कि इसकी वजह से वह गर्भवती हो गई।

 “फतवा और कुछ नहीं बल्कि गैर-संवैधानिक दुस्साहस है,” पीठ ने कहा।

 “फतवा संविधान की भावना के खिलाफ है। बलात्कार की पीड़ित युवती से दया दिखाने के बजाय पंचायत ने उसके परिवार को निकल जाने का आदेश सुनाने का दुस्साहस किया है,” कोर्ट ने कहा।

इसके बाद पीठ ने निम्नलिखित निदेश जारी किये :




  1. उत्तराखंड की सभी धार्मिक संस्थाओं/संगठनों, वैधानिक पंचायतों/स्थानीय पंचायतों/लोगों के समूहों पर फतवा जारी करने से प्रतिबन्ध लगाया जाता है।

  2.  हरिद्वार के बरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को निर्देश है कि वह किसी सीओ को गाँव में तत्काल पहुँचने को कहे और परिवार का पता लगाए और किसी भी कीमत पर यह सुनिश्चित करे कि परिवार को गाँव छोड़कर न जाना पड़े।

  3.  हरिद्वार के एसएसपी को निर्देश दिया जाता है कि वह पीड़ित और उसके परिवार के निकट सदस्यों को चौबीसों घंटे सुरक्षा मुहैया कराए। एसएसपी को यह निर्देश भी दिया जाता है कि वह फतवा जारी करने वाले लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करे।


 सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि फतवा एक गैर-संवैधानिक दुस्साहस है और संविधान में इसकी इजाजत नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 243 के तहत पंचायतों के गठन का प्रावधान किया गया है और पंजायती राज अधिनियम के तहत इनकी स्थापना की गई है। पंचायतों से उम्मीद की जाती है कि वे क़ानून के अनुरूप अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें।

 

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