पश्चिम बंगाल में 1993 के पंचायत चुनाव के बाद हुई हिंसा की समीक्षा पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कुछ अतिशयोक्ति, सुधार और साज सज्जा करने के कारण अभियोजन पक्ष की पूरी कहानी को नकारा नहीं जा सकता [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

31 Aug 2018 5:26 AM GMT

  • पश्चिम बंगाल में 1993 के पंचायत चुनाव के बाद हुई हिंसा की समीक्षा पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कुछ अतिशयोक्ति, सुधार और साज सज्जा करने के कारण अभियोजन पक्ष की पूरी कहानी को नकारा नहीं जा सकता [निर्णय पढ़ें]

    ऐसी जगह जहां कुछ थोड़े से लोगों को मारने-पीटने के लिए बहुत सारे लोग जमा हो गए हों और अगर इस घटना में पांच लोगों की मौत हो गई हो और 24 घायल हो गई हो तो इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के बयानों में थोड़ा अंतर होना लाजिमी है।”

    पश्चिम बंगाल में 1993 के पंचायत चुनावों के बाद हुई हिंसा के बारे में दायर आपराधिक मामले की समीक्षा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ इस वजह से कि अभियोजन ने कुछ मामलों को बढ़ा-चढ़ा कर कहा है, इसमें कुछ सुधार किया है और इसकी कुछ साज-सज्जा की है, उसकी पूरी कहानी को संदेह की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता।

    यह मामला जिसकी सुप्रीम कोर्ट समीक्षा कर रही है, बर्दवान जिले के करंडा गाँव का है जो 31 मई 1993 को हुआ। इस गाँव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी - मार्क्सवादी (सीपीआईएम) ने एक दिन पहले इंडियन पीपुल्स फ्रंट के और अन्य पार्टियों के उम्मीदवारों को हराकर पंचायत चुनाव जीता।

    इस चुनाव में हुई हिंसा में आईपीएफ के पांच सदस्यों की हत्या हो गई और 24 अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। निचली अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया था और ये सब के सब सीपीआईएम के सदस्य थे। राज्य ने इस बारे में कोई अपील नहीं की लेकिन आईपीएफ के कुछ सदस्यों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती दी। हाईकोर्ट को निचली अदालत के फैसले में कोई खोट नजर नहीं आया।

    सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति एनवी रमना और न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनागौदर की पीठ ने उपलब्ध साक्ष्यों का अध्ययन करने के बाद कहा, “हमें इन सभी गवाहियों के बयानों में कोई अंतर नहीं पाया। कोई बड़ा विरोधाभास या विचलन नहीं पाया गया है। घटनास्थल पर गवाहों की मौजूदगी पर बचाव पक्ष ने जिरह के दौरान कोई संदेह व्यक्त नहीं किया है। ऐसी जगह जहां कुछ थोड़े से लोगों को मारने-पीटने के लिए बहुत सारे लोग जमा हो गए हों और अगर इस घटना में पांच लोगों की मौत हो गई हो और 24 घायल हो गई हो तो इस घटना के प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के बयानों में थोड़ा अंतर होना लाजिमी है। इस तरह की स्थिति में हर आरोपी की गतिविधि को बहुत ही सलीके से गौर करना संभव नहीं है। कोर्ट को गवाही से यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वह तोते की तरह सब कुछ बता देगा। हालांकि, इन गवाहों की गवाही, कुल मिलाकर, प्रथम दृष्टया अकलुषित लगता है।”

    यह कहा जाता है कि हाईकोर्ट ने इस बात पर गौर नहीं किया कि निचली अदालत ने हत्या, हत्या के प्रयास या गंभीर रूप से घायल करने के बारे में और घरों को जलाने और गैर क़ानूनी रूप से जमा होने के बारे में उपलब्ध मटेरियल एविडेंस पर गौर नहीं किया।

    पीठ ने निचली अदालत की भगदड़ के बारे में कही गई बातों को भी अस्वीकार कर दिया। कोर्ट ने कहा, “...ये चोट भगदड़ के कारण लगी होगी। इस बात के कोई कारण नहीं है कि इस कथित भगदड़ में सिर्फ एक ही समूह के लोगों को ही चोटें क्यों आई...”

    इसके बाद पीठ ने इस मामले को वापस हाईकोर्ट को भेज दिया और मेरिट के आधार पर इस इस मामले में फैसला देने को कहा।


     
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