क़ानून के एक छात्र ने दिखाया रास्ता, एक बुजर्गवार से एक रुपया फीस लेकर की उनकी पैरवी [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

27 Aug 2018 4:49 AM GMT

  • क़ानून के एक छात्र ने दिखाया रास्ता, एक बुजर्गवार से एक रुपया फीस लेकर की उनकी पैरवी [आर्डर पढ़े]

    छात्र ने 2014 के उपभोक्ता संरक्षण विनियमन के उस दिशानिर्देश का लाभ उठाया जिसमें कहा गया है कि गैर-अधिवक्ता भी उपभोक्ता अदालत में पेश हो सकते हैं

     सभी को न्याय सुनिश्चित करने में क़ानूनी मदद की ताकत का उदाहरण पेश करते हुए लखनऊ में क़ानून के पांचवें वर्ष के एक छात्र ने एक बुजर्गवार की क़ानूनी मदद के बदले उनसे फीस के रूप में सिर्फ एक रुपया लेकर रास्ता दिखाया है। इस बुजुर्ग व्यक्ति की उसने जयपुर, राजस्थान के उपभोक्ता अदालत में पैरवी की। यह मामला दो साल से चल रहा था और वह इस व्यक्ति को अदालत से मुआवजा दिलाने में सफल भी रहा।

     चाणक्य शर्मा डॉ. राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, लखनऊ में पांचवें वर्ष का छात्र है। शर्मा ने एक अवकाशप्राप्त सरकारी कर्मचारी राधेश्याम गुप्ता की मदद की जिन्होंने यूनिट ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के खिलाफ शिकायत की थी। उन्होंने यूटीआई में यह सोचकर निवेश किया था कि जब उनकी पोती शादी लायक होगी तब तक उन्हें इस निवेश से अच्छी आय होगी। पर ऐसा नहीं हुआ पर जब वे इस बात की आश लगाए बैठे थे, इस योजना को बंद कर दिया गया।

    चाणक्य जयपुर का रहनेवाला है जबकि राधेश्याम उनके पड़ोसी हैं।

    दो साल पहले, चाणक्य अपने पिता से मिलने अपने घर गए थे जब उन्हें अपने पड़ोसी से उनकी व्यथा सुनने को मिली और यह भी कि कैसे वकील पैरवी के लिए उनसे मोटी रकम की मांग कर रहे हैं।

    राधेश्याम ने बताया कि उन्होंने 1996 में राज लक्ष्मी यूनिट योजना (आरयूपी) में 5000 रुपए का निवेश किया था और उन्हें बताया गया था कि 2015 में 70 हजार मिलेंगे और यह भी कि यह निवेश जोखिमों से भरा है।

    वर्ष 2000 में यूटीआई ने इस योजना को समय से पहले ही बंद कर दिया। उसके इस कदम को कई लोगों ने कई हाईकोर्टों में चुनौती दी पर इसे निवेशकों के हित में सही बताया गया।

    राधेश्याम को इस यूनिट के बंद होने के बारे में कोई जानकारे नहीं दी गई थी और जब वह 2015 में पैसे निकालने गए तो उन्हें बताया गया कि यह योजना 2000 में ही बंद हो चुकी है और उसे सिर्फ 13100 रुपए ही मिलेंगे और ब्याज के 4323 रुपए मिलेंगे।

    चाणक्य उस समय क़ानून के तीसरे वर्ष का छात्र था और उसने जयपुर के उपभोक्ता अदालत में अर्जी दी और उपभोक्ता संरक्षण विनियमन, 2014 के तहत गैर-अधिवक्ता के उपभोक्ता अदालत में पेश होने के प्रावधान की दुहाई दी।

    यूटीआई ने कहा कि राधेश्याम ने इस योजना को बंद करने के समय जो विकल्प दिए गए थे उसका प्रयोग नहीं किया और इसलिए उनकी राशि को एआरएस बांड में परिवर्तित कर दिया गया जो कि 2009 में परिपक्व हो गया।

    यूटीआई ने कहा कि उसने 2009 में राधेश्याम से संपर्क करने की कोशिश की क्योंकि योजना के परिपक्व हो जाने के बाद यह पैसा उन्हें ले जाना था पर उनको भेजा गया सारा पत्र बिना उनको मिले वापस हो गए।

    चाणक्य ने अदालत से कहा कि 2009 में परिपक्व होने के बाद चूंकि यह पैसा 2015 तक उनके पास ही रहा इसलिए यूटीआई को इस पर ब्याज देना चाहिए।

    इसके बाद यह मामला दो वर्षों तक खिंचा।

    चाणक्य की मेहनत रंग लाई और उपभोक्ता अदालत ने यूटीआई को 17436.72 की राशि पर 2009 से 9 प्रतिशत की दर से ब्याज सहित यह राशि चुकाने का आदेश दिया। अदालत ने साथ ही यूटीआई से कहा कि वह राधेश्याम को मानसिक कष्ट पहुंचाने के लिए 5000 रुपए और क़ानूनी फीस के रूप में 2500 रुपए दे।

    चाणक्य इस फैसले से उनको काफी संतोष हुआ है और यह घटना इस बात को साबित करता है कि कैसे सभी जरूरतमंदों को क़ानूनी मदद उपलब्ध कराई जा सकती है।

     “बहुत लोग इस बारे में नहीं जानते हैं कि उपभोक्ता संरक्षण विनियमन, 2014 गैर-अधिवक्ताओं को उपभोक्ता अदालत में पैरवी करने और जरूरतमंदों को क़ानूनी सेवा उपलब्ध कराने का पर्याप्त अधिकार देता है।”

    पर यह पहला मौक़ा नहीं है जब चाणक्य ने इस प्रावधान का लाभ उठाते हुए किसी की मदद की है। इससे पहले 2017 में उसने गोवा के रेस्तरां में कार्ड से भुगतान पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट वसूलने के खिलाफ मामले को भी सफलतापूर्वक चुनौती दी थी। उस मामले में चूंकि उनके लिए गोवा बार-बार जाना संभव नहीं था सो उन्होंने गोवा में विधिक सेवा उपलब्ध कराने वाले एक समूह को पॉवर ऑफ़ अटॉर्नी देकर अपना प्रतिनिधित्व कराया।


     
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