डिग्री के बिना लोग कर रहे हैं सर्जरी; उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उन सभी अस्पतालों को सील करने को कहा जो क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट को नहीं मान रहे हैं [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

25 Aug 2018 2:24 PM GMT

  • डिग्री के बिना लोग कर रहे हैं सर्जरी; उत्तराखंड हाईकोर्ट ने उन सभी अस्पतालों को सील करने को कहा जो क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट को नहीं मान रहे हैं [निर्णय पढ़ें]

    उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य और उसके अस्पतालों/चिकित्सालयों को निर्देश जारी कर क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट (रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन) एक्ट, 2010 को कठोरता से लागू करने को कहा है।

    हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति मनोज तिवारी ने अहमद नबी की याचिका पर गौर करते हुए कई निर्देश जारी किये। याचिका में इस बात का आरोप लगाया गया था कि राज्य के अस्पतालों और चिकित्सालयों में इस अधिनियम का पालन नहीं किया जा रहा है बल्कि वे उसका उल्लंघन कर रहे हैं।

    पृष्ठभूमि

    याचिकाकर्ता ने दो अस्पतालों बीडी हॉस्पिटल दोराहा बाजपुर और पब्लिक हॉस्पिटल सरकारी रोड केला खेरा, ऊधमसिंह नगर के खिलाफ याचिका दायर की थी। अपनी शिकायत में उन्होंने कहा था कि इन दोनों अस्पतालों को ऐसा व्यक्ति चला रहा है जिसके पास कोई मेडिकल डिग्री नहीं है और न ही उनके अस्पताल अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं। नबी ने कहा कि इन अस्पतालों में ऐसे लोगों द्वारा मरीजों का ऑपरेशन किया जा रहा है जिसके पास सर्जरी की डिग्री नहीं है।

    इसके बाद मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने इन दोनों अस्पतालों को मार्च 2016 में नोटिस जारी किया। जांच की गई और इसकी रिपोर्ट दे दी गई। जांच में पाया गया कि बीडी अस्पताल में 10 लोगों को ऑपरेशन के लिए भर्ती किया गया पर पता चला कि इस अस्पताल में कोई भी डॉक्टर ऐसा नहीं है जिसके पास एमबीबीएस की डिग्री हो।

    इसके बाद दोनों अस्पतालों को सील कर दिया गया। कोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि इन दोनों अस्पतालों को राज्य ने अस्थाई पंजीकरण दी थी क्योंकि इनके दो डॉक्टरों के पास एमबीबीएस की डिग्री थी। इनके पास एक डॉक्टर ऐसा था जिसके पास बीएचएमएस और दूसरे के पास बीयूएमएस की डिग्री थी।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्य उत्तराखंड क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट (पंजीकरण और विनियमन) नियम, 2013 और अन्य अधिनियमों का पालन नहीं कर रहा है।

    राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने इस बारे में संबंधित क्षेत्रों के चिकित्सा अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिया है और नियमों को नहीं मानने के बारे में उन्हें बताने को कहा है।

    कोर्ट को बताया गया कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने संबंधित अथॉरिटीज से आग्रह किया है कि वे क्लीनिकल रि-एस्टेब्लिशमेंट के प्रावधानों को अभी स्थगित रखें क्योंकि इससे मरीजों का खर्च पांच गुना बढ़ जाएगा। इस तरह जिला मजिस्ट्रेट, नैनीताल ने राज्य के चिकित्सा सचिव से आग्रह किया कि वे इस मामले की समीक्षा होने तक पंजीकरण को लंबित रखें।

    फैसला

    एक बार जब क़ानून बन जाता है तो उसका पूरी तरह पालन होना चाहिए,” कोर्ट ने कहा।

    कोर्ट ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि अस्पतालों में सर्जरी ऐसे व्यक्ति करते हैं जिनके पास डिग्री नहीं है।

    कोर्ट ने मामले का निस्तारण करते हुए निम्नलिखित निर्देश जारी किये -

    1)     उत्तराखंड राज्य को निर्देश दिया जाता है कि ऐसे अस्पताल या चिकित्सालय जो 2010 के अधिनियम के तहत पंजीकृत नहीं हैं उनको सील कर दिया जाए।

    2)      राज्य सरकार यह सुनिश्चित करे कि इस अधिनियम के तहत पंजीकृत सभी अस्पताल और चिकित्सालय निर्धारित नियमों का पालन करें।

    3)     राज्य भर के चिकित्सालयों को निर्देश है कि वे मरीजों पर अनावश्यक सर्जरी न करें। सिर्फ जरूरी जांच करें ताकि मरीजों की स्थिति का जायजा लिया जा सके।

    4)      सभी सरकारी और निजी डॉक्टरों को निर्देश है कि वे मरीजों को सिर्फ जेनेरिक औषधि ही लिखें जो आसानी से उपलब्ध हैं। किसी भी मरीज को किसी विशेष कंपनी की दवा खरीदने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

    5)      राज्य सरकार विभिन्न जांचों के लिए क्या शुल्क हैं इसका खुलासा करेगी और यह भी कि विभिन्न इलाजों और जांचों या फिर ऑपरेशन की प्रक्रिया क्या है इस बारे में आज से एक महीने के भीतर बताएगी।

    6)      आईसीयू की बाहरी दीवाल पर आरपार दिखाई देने वाले शीशे लगाए जाएंगे जो कि नौ कपड़ों के परदे से बंद होंगे ताकि मरीज के परिजन उनको देख सकें। मरीज के परिजनों को मरीज की स्थिति के बारे में हर 12 घंटे पर बताया जाएगा और इसकी वीडियोग्राफी की जाएगी।


     
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