क़ानूनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ता के बिक्री करार को चुनौती देने का अधिकार सह-सहदायिक को नहीं;सुप्रीम कोर्ट ने पिता के खिलाफ दायर बेटे के मामले को खारिज किया [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

24 Aug 2018 9:43 AM GMT

  • क़ानूनी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ता के बिक्री करार को चुनौती देने का अधिकार सह-सहदायिक को नहीं;सुप्रीम कोर्ट ने पिता के खिलाफ दायर बेटे के मामले को खारिज किया [निर्णय पढ़ें]

    एक बार जब क़ानूनी जरूरतों के होने की बात साबित हो जाती है, तब हमारे विचार में किसी सह-सहदायिक (बेटे) को परिवार के कर्ता द्वारा किये गए बिक्री के कारार को चुनौती देने का अधिकार नहीं है”

    सुप्रीम कोर्ट ने 1964 में एक बेटे द्वारा अपने बाप के खिलाफ दायर मामले को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि एक बार जब क़ानूनी जरूरत होने की बात की पुष्टि हो जाती है तो किसी भी सह-सहदायिक को परिवार के कर्ता द्वारा क़ानूनी जरूरतों को पूरा करने के लिए की गई बिक्री के किसी करार को चुनौती देने का अधिकार नहीं है।

    बेटे ने 1964 में यह मामला दायर किया था जो बाप द्वारा पैतृक संपत्ति को बेचने के खिलाफ था। पर इस मामले के सुप्रीम कोर्ट में पहुँचने से पहले ही बाप और बेटे दोनों की मौत हो गई। दोनों के क़ानूनी प्रतिनिधियों ने वर्ष 2006 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश के खिलाफ इस मामले को ज़िंदा रखा जिसने इस मामले को ख़ारिज कर दिया था।

    निचली अदालत ने जो फैसला दिया था, अपीली अदालत ने उसमें संशोधन किया। हाईकोर्ट ने दूसरी अपील में इस मामले को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को हाईकोर्ट को भेजकर उसे इस मामले पर हिंदू क़ानून के सिद्धांतों के आधार पर दुबारा गौर करने को कहा। चूंकि दोनों पक्षों ने कहा कि वे इस मामले में कोई अतिरिक्त साक्ष्य कोर्ट में पेश नहीं करने जा रहे हैं,हाईकोर्ट ने इस मामले को दुबारा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि प्रीतम सिंह कर्ता होने के कारण विवादित जमीन को बेचने का अधिकारी है; परिवार में क़ानूनी जरूरत है जिसकी वजह से इस जमीन को कर्ता को बेचनी पड़ी। कोर्ट ने यह भी कहा कि बिक्री के करार में कहा गया है कि यह जमीन ऋण चुकाने और कृषि भूमि में सुधार लाने के लिए उस पर होने वाले खर्च को पूरा करने के लिए बेची जा रही है।

    न्यायमूर्ति एएम सप्रे और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने केहर सिंह बनाम नाचित्तर कौर मामले की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया।

    हाईकोर्ट के फैसले को सही बताते हुए पीठ ने कहा, “यह स्पष्ट है कि परिवार पर दो ऋण थे और दूसरा यह कि परिवार को अपने कृषि जमीन में सुधार लाने के लिए (होने वाले खर्च के) पैसे चाहिए थे। प्रीतम सिंह को परिवार का कर्ता होने के कारण परिवार की इस जमीन को बेचने का पूरा अधिकार था ताकि वह परिवार का ऋण चुका सके और अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए कृषि जमीन में सुधार पर आवश्यक राशि खर्च कर सके। इन सभी तथ्यों का जिक्र बिक्री के करार में किया गया है।”

    यह भी कहा गया कि प्रतिवादी हिंदू क़ानून के तहत अनुच्छेद 254(2), 241(a) और (g) के तहत, मुल्ला के अनुसार, जरूरी शर्तों को पूरी करता है।

    अनुच्छेद 254(2) में कहा गया है कि बाप कर्ता के रूप में अपने बेटों, पौत्रों आदि की हितों वाली चल अचल पैतृक संपत्ति को अपना ऋण चुकाने के लिए बेच सकता है या उसे गिरवी रख सकता है बशर्ते कि वह ऋण पुराना हो और यह किसी अनैतिक या गैरकानूनी कार्यों के कारण नहीं पैदा हुआ हो। अनुच्छेद 241 के अनुसार, परिवार को व्यवसाय में हुई हानि या अन्य जरूरी मामलों को क़ानूनी जरूरत के तहत रखा गया है।

    इस तरह कोर्ट ने 54 साल पुराने इस मामले को खारिज कर दिया।

     

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