क्या चुनाव आयोग को निर्देश जारी किया जा सकता है कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को पार्टी का चुनाव चिन्ह देने से इनकार करे ? : सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा
LiveLaw News Network
22 Aug 2018 8:32 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह चुनाव आयोग को राजनीतिक पार्टियों से यह कहने के आदेश देने पर विचार कर सकता है कि उनके सदस्य अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों का खुलासा करें ताकि मतदाता जान सकें कि पार्टियों में कितने ‘कथित बदमाश’हैं। पीठ ने राजनीति में अपराधीकरण को’ सड़न’ करार दिया।
पांच जजों की संविधान पीठ ने केंद्र से ये भी पूछा है कि क्या चुनाव आयोग को ये शक्ति दी जा सकती है कि वो आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार को चुनाव में उतारें तो उसे चुनाव चिन्ह देने से इनकार कर दे?
ये टिप्पणी चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने उस वक्त की जब केंद्र की ओर से पेश AG के के वेणुगोपाल ने इसका विरोध करते हुए कहा कि ये चुने हुए प्रतिनिधि ही तय कर सकते हैं, कोर्ट नहीं।पीठ ने कहा कि हम संसद को कोई कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकते। सवाल यह है कि हम इस सड़न को रोकने के लिए क्या कर सकते हैं।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने केंद्र से कहा कि हम अपने आदेश में ये जोड़ सकते हैं कि अगर अपराधियों को चुनाव में प्रत्याशी बनाया गया तो पार्टी का चुनाव चिन्ह जारी ना करे।
पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कृष्णन वेणुगोपाल के सुझाव पर गौर किया।
वहीं AG ने कहा कि अगर ऐसा किया गया तो राजनीतिक दलों में विरोधी एक- दूसरे पर केस करेंगे। कोर्ट को देश की वास्तविकता देखनी चाहिए। वहीं जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने कहा कि कोर्ट संसद के क्षेत्राधिकार में नहीं जा रहा। जब तक संसद कानून नहीं बनाती तब तक चुनाव आयोग को आदेश दिया जाएगा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को चुनाव चिन्ह ना दे।
तो वहीं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनाव आयोग खुद ही शर्त लगा सकता है कि आपराधिक छवि वाले दलों के प्रत्याशी ना बनाए जाएं। ऐसा व्यक्ति किसी राजनीतिक पार्टी से चुनाव नहीं लड़ सकता। हालांकि वो खुद चुनाव लड़ सकता है। इस तरह वो चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित नहीं होगा।ये सुनवाई 28 अगस्त को जारी रहेगी।
पिछली सुनवाई में राजनीति में अपराधीकरण पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उसे गंभीर स्थिति के बारे में संसद को याद दिलाना है और आपराधिक आरोपों का सामना करने वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए संविधान में संशोधन करना संसद का संवैधानिक दायित्व है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ ने पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन, पूर्व चुनाव आयुक्त जेसी लिंगदोह और बीजेपी नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान ये प्रारंभिक टिप्पणी की जिसमें कानून का एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया गया है कि गंभीर आपराधिक मामले का सामना कर रहे व्यक्ति को विधानसभा या संसदीय चुनाव लड़ने से अयोग्य करार कब किया जाए, आरोपपत्र दाखिल करने या आरोप तय हो या फिर सजा सुनाए जाने के बाद। ये पीठ जिसमें जस्टिस रोहिंटन नरीमन,जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं, इस सवाल की जांच कर रही है कि क्या संविधान के अनुच्छेद 102 (ए) से (डी) से परे अनुच्छेद 102 (ई) के तहत अदालत द्वारा सदस्यता के लिए अयोग्यता निर्धारित की जा सकती है ?