राज्यसभा चुनाव में NOTA को अनुमति नहीं : सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
21 Aug 2018 11:10 AM IST
एक बड़ा फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा है कि राज्यसभा चुनाव में NOTA ( उपरोक्त में से कोई नहीं ) को अनुमति नहीं दी जा सकती।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने ये फैसला गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप शैलेश मनुभाई परमार द्वारा दाखिल याचिका पर सुनाया है। 30 जुलाई को इस मामले में सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। कांग्रेस के साथ NDA सरकार ने भी राज्यसभा चुनाव मे NOTA का विरोध किया था।
पीठ ने राज्यसभा चुनावों में नोटा को प्रतिबंधित करने की मांग वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखते हुए मौखिक रूप से कहा था कि राज्यसभा चुनाव में NOTA का प्रावधान नहीं होना चाहिए।
इस दौरान सीजेआई ने कहा, "राज्यसभा चुनाव पहले से ही जटिल हैं, चुनाव आयोग क्यों इसे और जटिल बनाना चाहता है ? कानून एक विधायक को नोटा के लिए मतदान करने की अनुमति नहीं देता। इस अधिसूचना से चुनाव आयोग विधायकों को वोट ना देने के लिए सशक्त बना रहा है। जबकि चुनने के लिए उनका संवैधानिक दायित्व है तो वो नोटा का सहारा नहीं ले सकते। हमें संदेह है कि विधायक नोटा को चिह्नित करके उम्मीदवार को मतदान करने से बच सकता है। "
जबकि न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने वकील से पूछा, "एक विधायक मतपत्र मतपेटी में डालने से पहले क्यों दिखाएगा ? आप कह रहे हैं कि ऐसा करकेआपने अपनी पार्टी के हितों का पालन किया है। लेकिन जब आप NOTA के लिए वोट देते हैं तो आपके वोट को अमान्य माना जाता है। क्या आप यह कर सकते हैं ?”
वहीं केंद्र के लिए पेश अटॉर्नी जनरल के के. वेणुगोपाल चुनाव आयोग के रुख से भिन्न थे और उन्होंने अदालत को सूचित किया कि नोटा प्रत्यक्ष चुनावों पर लागू है और राज्यसभा के अप्रत्यक्ष चुनावों पर लागू नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि कोई व्यक्ति पार्टी के हित के खिलाफ मतदान कर रहा है तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
अदालत ने गुजरात विधानसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप शैलेश मनुभाई परमार द्वारा अगस्त 2017 में दायर याचिका पर सुनवाई की जिसमें गुजरात में राज्यसभा चुनावों से पहले EC द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती दी थी। हालांकि पिछले साल उच्चतम न्यायालय ने RS चुनाव को रोकने से इनकार कर दिया जो नोटा के साथ ही कराए गए थे। पार्टी को आशंका थी कि कुछ विधायक कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के चुनाव को रोकने के लिए नोटा विकल्प का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन उन्होंने सीट जीत ली थी।
चुनाव आयोग के वकील ने इस तथ्य पर अदालत का ध्यान आकर्षित किया कि अधिसूचना के बाद विभिन्न राज्यों में 14 RS चुनाव हुए थे लेकिन कांग्रेस पार्टी ने चुनौती यहीं पर दी। चुनाव आयोग ने कहा, "मतपत्र पत्रों में नोटा का उपयोग पहली बार चुनाव आयोग ने जनवरी 2014 में अपने परिपत्र में घोषित किया था और इसके बाद नवंबर 2015 में एक और परिपत्र जारी किया गया था। 2014 के परिपत्र के बाद कोई भी इसे चुनौती दे सकता था।"
चुनाव आयोग ने कहा कि ये कदम आयोग ने संज्ञान लेकर नहीं किया बल्कि उसे सुप्रीम के ही आदेश के तहत किया है। चुनाव आयोग ने इस संबंध मे सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले का पालन करते हुए राज्यसभा चुनाव में NOTA का इस्तेमाल करना शुरु किया था।अगर वो राज्यसभा चुनाव में NOTA का इस्तेमाल शुरु करता तो ये अदालती आदेश की अवहेलना और अदालत की अवमानना का मामला बनता। 2013 के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह हर मतदाता को वोट डालने का अधिकार है उसी तरह उसे किसी को भी वोट ना देने का अधिकार भी है। सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी चुनाव को लेकर है और ये प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों तरह के चुनाव पर लागू होगा। वकील अमित शर्मा के माध्यम से दाखिल इस जवाब में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश जनप्रतिनिधि अधिनियम के तहत राज्यों की काउंसिल के चुनाव पर भी लागू होगा।
याचिकाकर्ता के लिए पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने तर्क दिया था कि चुनाव आयोग परिपत्र जारी नहीं कर सकता क्योंकि जन प्रतिनिधि अधिनियम के तहत वैधानिक नियम नोटा के लिए उपलब्ध नहीं कराए गए थे।
उन्होंने तर्क दिया कि 2014 का नोटा का परिपत्र ( नोटिफिकेशन ) गैरकानूनी, मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है क्योंकि कार्यपालिका वैधानिक प्रावधानों को ओवरराइड करने के निर्देश जारी नहीं कर सकती।
उन्होंने कहा कि 1961 के नियमों में जिक्र है कि एक उम्मीदवार को मतपत्र सूची में सबसे पहली सूची में आना चाहिए लेकिन यहां NOTA को पहली वरीयता के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।