सुप्रीम कोर्ट ने कहा, एनडीपीएस मामलों में सूचना देने वाला और जांचकर्ता दोनों एक ही व्यक्ति नहीं हो सकता [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

17 Aug 2018 10:47 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा, एनडीपीएस मामलों में सूचना देने वाला और जांचकर्ता दोनों एक ही व्यक्ति नहीं हो सकता [निर्णय पढ़ें]

    न्याय केवल होना चाहिए बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए। पक्षपात की किसी भी आशंका या पूर्वनिर्धारित निष्कर्ष का निषेध किया जाना चाहिए।

    एक महत्त्वपूर्ण फैसले में, तीन जजों की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने स्पष्ट किया है कि एनडीपीएस मामलों में सूचना देने वाला और जांच करने वाला दोनों ही एक ही व्यक्ति नहीं हो सकता है।

    मुद्दा  

    सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय  पीठ जिसमें न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति आर बनुमती और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा शामिल हैं, ने मोहनलाल बनाम पंजाब राज्य मामले में यह फैसला दिया ।

    परस्पर विरोधी बातें

    इसी तरह के मामले में पहले परस्पर विरोधी फैसले आ चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने  State by Inspector of Police, Narcotics Intelligence Bureau, Madurai, Tamilnadu vs। Rajangam, मामले में कहा था कि जिस जांचकर्ता अधिकारी ने आरोपी को पकड़ा था उसको इस मामले की जांच नहीं करनी चाहिए थी। हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य और सुरेंदर बनाम हरियाणा राज्य जैसे दो मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने जो विचार व्यक्त किया था वह राजनागम मामले से अलग था और इसका आधार यह था कि उस मामले की जांच अन्य अधिकारियों ने की थी।

    पीठ ने यह भी कहा कि विभिन्न हाईकोर्टों ने भी अलग-अलग फैसले दिए हैं। नौशाद बनाम केरल राज्य में केरल हाईकोर्ट के एकल पीठ ने जो फैसला दिया, कादर बनाम केरल राज्य मामले में इस फैसले के उलट फैसला दिया गया। कादर मामले में एकल पीठ ने नौशाद मामले को यह कहते हुए अस्वीकार किया कि सिर्फ इस वजह से कि खोजकर्ता अधिकारी ही जांचकर्ता भी है या उसी रैंक का अधिकारी है, पक्षपात के सबूत के अभाव में एनडीपीएस अधिनियम के तहत कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेगा। नौशाद के मामले में एकल पीठ के फैसले को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह (सुप्रीम कोर्ट) कादर मामले में हाईकोर्ट के फैसले से सहमत नहीं है। यह एफआईआर को सच मानने जैसा है जिससे जांच का कोई अर्थ नहीं रह जाता। ऐसा करने से निष्पक्ष जांच के आरोपी के अधिकार का हनन होता है...जांच तथ्यों का सिलसिलेवार संग्रहण है ताकि क्या हुआ और क्यों हुआ यह बताया जा सके...तथ्य महज एक सूचना है और यह सच का पर्यायवाची नहीं है। इसलिए कादर मामले में दिए गए फैसले को अस्वीकार किया जाता है।”

    पीठ ने इसके बाद निश्चितता से क़ानून का निर्धारण करते हुए कहा, “इसलिए यह कहा जा रहा है कि निष्पक्ष जांच जो कि निष्पक्ष सुनवाई का आधार है, आवश्यक रूप से यह निर्धारित करता है कि सूचना देनेवाला और जांचकरता दोनों अवश्य ही एक ही व्यक्ति को नहीं होना चाहिए। न्याय न केवल होना चाहिए बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए। पक्षपात की किसी भी आशंका या पूर्वनिर्धारित निष्कर्ष का निषेध किया जाना चाहिए...”

    अगर किसी आपराधिक अभियोजन में एक सूचना देने वाला पुलिस अधिकारी...जो कि आरोप लगाता है, और उसी को इस मामले की जांच के लिए कहा जाता है तो उसकी निष्पक्षता...के बारे में गंभीर संदेह का उठना स्वाभाविक है। यह जरूरी नहीं है कि इस तरह के पक्षपात को वास्तविक रूप से साबित ही किया जाए। यह मानना अतार्किक और सामान्य मानवीय व्यवहार के खिलाफ होगा कि जांच के अंत में वह खुद ही झूठे इस जांच को बंद करने का रिपोर्ट सौंपे...जिसका परिणाम खुद शिकायतकर्ता के लिए एक पूर्व निर्धारित निष्कर्ष होगा,” न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा ने पीठ के लिए लिखे फैसले में कहा।


     
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