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अगर पक्षकारों के बीच समझौता हो गया है तो बेदखली का आदेश नहीं दिया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
16 Aug 2018 7:05 AM GMT
अगर पक्षकारों के बीच समझौता हो गया है तो बेदखली का आदेश नहीं दिया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जहां किराया क़ानून के तहत संरक्षण उपलब्ध है, वहाँ जब तक बेदखली का पर्याप्त आधार नहीं है, तो बेदखली का आदेश नहीं दिया जा सकता भले ही पक्षकारों के बीच समझौता क्यों न हो गया हो।

 पृष्ठभूमि

 बेदखली के लिए आवेदन दिया गया था पर मकान मालिक और किरायेदार के बीच समझौते का करार किराया नियंत्रण अदालत के समक्ष दायर किया गया। अपीली अदालत के समक्ष किरायेदारों ने कहा कि उन पर इस समझौते के करार पर हस्ताक्षर के लिए दबाव डाला गया और कहा कि यह समझौता इसलिए किया गया क्योंकि पुलिस ने इसके लिए दबाव डाला था। अपीली अदालत ने याचिका स्वीकार कर ली जिसमें विलंब के लिए माफी की मांग की गई थी।

 हाईकोट ने अपीली अदालत के आदेश को इस आधार पर बदल दिया कि किरायेदारों को समझौता कराने वाले कोर्ट के समक्ष कहना चाहिए था कि इस समझौते के लिए उन पर दबाव डाला गया है। पर उन्होंने ऐसा नहीं कहा।

 सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने अलगू फार्मेसी बनाम एन मगुदेश्वरी मामले में तमिलनाडु भवन (पट्टा एवं किराया नियंत्रण) अधिनियम, 1960 के सन्दर्भ में कहा कि बेदखली का आदेश तभी दिया जा सकता है जब संबंधित किराया नियंत्रक या अदालत इस बात को लेकर आश्वस्त है कि बेदखली का पर्याप्त आधार है और जब तक ऐसा नहीं हो जाता है तब तक किसी किरायेदार के खिलाफ बेदखली का आदेश नहीं दिया जा सकता।

 हाईकोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपीली अदालत के आदेश को बहाल कर दिया और उसको मामले के मेरिट के आधार पर इसका फैसला करने को निर्देश दिया। चूंकि इस मामले में किरायेदारों की ओर से अपील करने में 600 दिनों की देरी हुई इसलिए उस पर 50 हजार रुपए का जुर्माना भी कोर्ट ने लगाया।


 
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