350 सेना अफसर पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, FIR से सरंक्षण की मांग, 20 अगस्त को सुनवाई
LiveLaw News Network
14 Aug 2018 6:06 PM IST
350 वरिष्ठ सेना अधिकारियों के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट ( AFSPA) के तहत सैनिकों की भरोसेमंद कार्रवाई में सरंक्षण के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है ताकि कोई भी सैनिक अपनी ड्यूटी के दौरान अच्छे विश्वास में किए गए कार्य के लिए आपराधिक कार्यवाही या गिरफ्तार किए जाने जैसी कार्रवाई का शिकार ना हो।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने वकील ऐश्वर्या भाटी की इस मामले की जल्द सुनवाई की अपील से सहमत होते हुए 20अगस्त को इस केस को सूचीबद्ध किया है।
याचिकाकर्ता कर्नल अमित कुमार और 350 अन्य ने अपनी याचिका में कहा है कि इस तरह के दिशानिर्देश देश की संप्रभुता, अखंडता और गरिमा की सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं। यह कहा गया है कि प्रॉक्सी दुश्मन और विद्रोहियों से लड़ रहे सैनिकों की सुरक्षा के लिए AFSPA के तहत अच्छे विश्वास में कार्रवाई करना जरूरी है।अपने कर्तव्य निभाने के दौरान किए गए कार्यों पर सेनाकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा है कि वर्तमान रिट याचिका भारतीय सेना के अधिकारियों व सैनिकों द्वारा सामूहिक रूप से दायर की गई है जो राष्ट्र की संप्रभुता, ईमानदारी, सुरक्षा और गौरव की रक्षा के लिए लड़ रहे हैं
और उन्हें संरक्षण देना भारतीय सेना के सैनिकों के आत्मविश्वास और मनोबल को बहाल करने के लिए जरूरी है।
यह कहा गया है कि सैनिकों को अपनी कार्रवाई में बाधाओं और मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है जबकि वो ध्वज की गरिमा को बनाए रखने के लिए कर्तव्य की पंक्ति में अपने जीवन को न्यौछावर करने में भी संकोच नहीं करते।
यह इंगित किया गया है कि किसी भी आपराधिक इरादे के बिना अच्छे विश्वास में किए गए कार्य के संबंध में भी उनके सहयोगियों को सताया जा रहा है और उन पर मुकदमा चलाया जा रहा है।
याचिका में कहा गया है कि यदि हमारे सशस्त्र बलों को सरंक्षण नहीं दिया जाता तो उन्हें सीमावर्ती इलाकों में दुश्मनों के साथ लड़ने के साथ- साथ देश के भीतर मुकदमा चलाने से भारी दिक्कत होगी और ये हमारी संप्रभुता के लिए गंभीर संकट का कारण बनेगा। साथ ही ये संवैधानिक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में हमारे अस्तित्व को खतरे में डालता है।
इससे AFSPA (असम और मणिपुर) और AFSPA (जे एंड के) की धारा 6 और 7 के तहत परिभाषित अभियोजन पक्ष से उनकी सुरक्षा के संबंध में भ्रम की असाधारण स्थिति उत्पन्न हुई है। ऐसे परिचालन कानून और व्यवस्था स्थितियों से भौतिक रूप से काफी अलग हैं। इस असाधारण स्थिति में सैनिकों के भरोसेमंद कार्यों के लिए पूर्ण सुरक्षा और सैनिक को अपने कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से और कुशलता से पूरा करने में सक्षम बनाना आवश्यक है जो बदले में राष्ट्र की संप्रभुता और गौरव की सुरक्षा के लिए अपना जीवन भी न्यौछावर कर देते हैं।
यह प्रस्तुत किया गया है कि तत्काल याचिका, अन्य बातों के साथ सार्वजनिक महत्व के कानून के बेहद गंभीर सवाल उठाती है, जिसके लिए इस अदालत द्वारा विचार की आवश्यकता है। इरादे से संबंधित तथ्यों का पता लगाने के लिए प्रारंभिक जांच के बिना या कर्मियों को उचित मौका दिए बिना एफआईआर दर्ज करना प्राकृतिक न्याय और AFSPA की धारा 4 के दायरे के खिलाफ है।याचिका में एफआईआर और गिरफ्तारी को लेकर दिशानिर्देशों के लिए भी प्रार्थना की गई है।