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कांवड़ियों द्वारा हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, कहा निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों की जवाबदेही तय करेंगे

LiveLaw News Network
11 Aug 2018 6:43 AM GMT
कांवड़ियों द्वारा हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता, कहा निजी और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों की जवाबदेही तय करेंगे
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शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने हिंसा की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए  निजी और सार्वजनिक संपत्तियों को नष्ट करने वालों पर जिम्मेदारी तय करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का फैसला किया है। ये कदम गुरुवार को कांवड़ियों द्वारा हुई हिंसा की घटनाओं को देखते हुए उठाया गया।

इससे पहले अटॉर्नी जनरल के के  वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम  खानविलकर  और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच को कहा कि विभिन्न समूहों द्वारा की जाने वाली हिंसा में निजी और सार्वजनिक संपत्तियों के नुकसान  की ज़िम्मेदारी तय करनी चाहिए क्योंकि ऐसी घटनाएं दिन-प्रतिदिन बढ़ रही हैं। पीठ ने याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

 जब एजी ने कहा कि सरकार इस तरह के विरोधों से निपटने के लिए मौजूदा कानून में एक संशोधन पर विचार कर रही है और अदालत को इसे उचित रूप से कानून बदलने की इजाजत देनी चाहिए तो सीजेआई ने कहा, "हम संशोधन की प्रतीक्षा नहीं करेंगे। यह एक गंभीर स्थिति है और इसे रोकना चाहिए। "

बेंच एजी के साथ सहमत हुई कि ऐसी घटनाओं को रोकना चाहिए। पद्मावत आंदोलन, अनुसूचित जाति /  जनजाति, मराठों की हड़ताल और दिल्ली और उत्तर प्रदेश में कांवड़ियों द्वारा हिंसा  जैसे मुद्दों को इंगित करते हुए एजी ने प्रस्तुत किया कि पुलिस भीड़ हिंसा को नियंत्रित करने में विफल रही है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन, एससी / एसटी के फैसले पर देश भर में भारी अशांति, 'पद्मावत' पर विवाद जहां अभिनेत्री की नाक को काटने की धमकी दी गई थी ... प्रदर्शनकारियों के साथ क्या हुआ? कुछ भी तो नहीं। इस तरह के दंगे देश आए दिन देख रहा है ? क्या हम इसे होने की इजाजत दे रहे हैं? "

 जब सीजेआई ने उनका सुझाव मांगा तो  एजी ने कहा, "किसी पर ज़िम्मेदारी तय करने की जरूरत है जैसे डीडीए ने अवैध निर्माण की जांच के लिए ऐसा किया है।”

 न्यायमूर्ति चंद्रचूड़  ने कहा  कि कांवड़ियों के कारण इलाहाबाद में राष्ट्रीय राजमार्ग के एक तरफ को बंद कर दिया गया।एजी ने यह भी बताया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए (भड़काऊ भाषण) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत अपराध को उन लोगों के खिलाफ पंजीकृत किया जाना चाहिए जिन्होंने विरोध प्रदर्शन के नाम पर सार्वजनिक आदेश को बाधित करने वाले हिंसक कृत्य किए और लोगों को उत्तेजित किया।

दरअसल कोर्ट  कोडंगल्लूर फिल्म सोसाइटी द्वारा दायर एक पीआईएल सुन रहा था जिसमें सार्वजनिक विरोध के नाम पर  संगठनों और अासामाजिक तत्वों द्वारा की गई हिंसा और तोड़फोड़ को रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की थी।

 याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील पीवी दिनेश ने 2009 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों की ओर अदालत का ध्यान खींचा कि किसी भी विरोध में आयोजकों को व्यक्तिगत रूप से हिंसा में निजी और सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान के लिए उत्तरदायी माना जाएगा। उन्होंने कहा कि अदालत ने पुलिस अधिकारियों को इस तरह के विरोधों को वीडियोग्राफी करने का भी आदेश दिया था ताकि जवाबदेही तय की जा सके लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है।

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