महिला कैदियों के बच्चों के बारे में चिंतित सुप्रीम कोर्ट का इस बारे में व्यावहारिक नीति बनाने का विचार [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

6 Aug 2018 3:26 PM GMT

  • महिला कैदियों के बच्चों के बारे में चिंतित सुप्रीम कोर्ट का इस बारे में व्यावहारिक नीति बनाने का विचार [आर्डर पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने महिला कैदियों के बच्चों की स्थिति पर गहरी चिंता जाहिर की और कहा कि यह एक बहुत ही गंभीर मामला है।

    सुप्रीम कोर्ट की पीठ को अमिकस क्यूरी ने बताया कि उसने फ़रीदाबाद, हरियाणा के एक जेल का दौरा किया और उसे पता चला कि महिला कैदियों के ऐसे बच्चे जो कि छह साल से कम उम्र के हैं, उन्हें जेल छोड़ने की इजाजत नहीं है।

    “यह स्थिति उनके अच्छे स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है,” पीठ ने कहा।

    पीठ ने कहा, “छह साल की उम्र को पार करने वाले बच्चों की एक श्रेणी है और उन्हें जेल से रिहा कर दिया जाता है पर इस बात का कोई संकेत नहीं है कि रिहा किये जाने के बाद उनका देखभाल कैसे होता है। निश्चित रूप से इन्हें खुद के भरोसे छोड़ दिया जाता है क्योंकि ये छह साल के होते हैं जबकि उनकी माएं जेल में होती हैं। बच्चों की तीसरी श्रेणी में आते हैं ऐसे नाबालिग बच्चे आते हैं जो छह साल से ज्यादा उम्र के हैं जिनकी माताएं जेल में हैं। इस तरह के बच्चों की भी देखभाल की जरूरत है क्योंकि हो सकता है कि उनके पिता या अन्य अभिभावक उनकी देखभाल के लिए वहाँ नहीं हों।”

    पीठ ने सुझाव दिया कि एक समिति गठित की जाए जो मनोचिकित्सकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की मदद से इस मुद्दे की तह तक जाए ताकि इन बच्चों की देखभाल के लिए कोई व्यावहारिक नीति बनाई जा सके।

    सुप्रीम कोर्ट ने पिछली सुनवाई के समय कैदखानों में भीड़भाड़ और विचाराधीन कैदियों के बारे में कई तरह के निर्देश जारी किये थे।

    कार्यालयीय रिपोर्ट पर गौर करते हुए पीठ ने कहा कि सभी हाईकोर्टों ने स्वतः संज्ञान लेते हुए याचिका शुरू की है या फिर जेलों में भीड़भाड़ के बारे में याचिकाओं पर सुनवाई भी शुरू कर दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि विचाराधीन कैदी समीक्षा समिति की स्थापना देश के सभी जिलों में या तो हो गई है या हो जाने की उम्मीद है।

    पीठ ने अमिकस क्यूरी की इस बात पर भी गौर किया कि ऐसे कई राज्य हैं जहां विजिटर बोर्ड की नियुक्ति नहीं हुई है।

    इस संबंध में उसने कहा है, “हमें बताया गया है कि दिल्ली के तिहाड़ जेल में भी विजिटर बोर्ड की नियुक्ति नहीं हुई है।।।गैर-आधिकारिक सदस्य को इस बोर्ड में शामिल नहीं किया जाता। यही कारण है कि शायद जेलों के अंदर की स्थिति दयनीय है जिसकी वजह से एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश को इस बारे में सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी लिखनी पड़ी।।।”

    इस मामले की अगली सुनवाई अब 8 अगस्त को होगी।


     
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