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यह कोई सुशासन नहीं है : सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार से सिर्फ नियमित नियुक्तियां करने को कहा [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
2 Aug 2018 10:39 AM GMT
यह कोई सुशासन नहीं है : सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड सरकार से सिर्फ नियमित नियुक्तियां करने को कहा [निर्णय पढ़ें]
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झारखंड सरकार ने अभी तक जो किया है वह नियमित नियुक्ति से बचने का रास्ता अपनाया है और उसने अनियमित आधार पर नियुक्तियां की हैं। इसे सुशासन नहीं कह सकते।’

 सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने कहा कि झारखंड सरकार उमादेवी फैसले के आने के बाद से पिछले एक दशक से अनियमित नियुक्तियां कर रही है और इसे कतई सुशासन नहीं कहा जा सकता।

 न्यायमूर्ति लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने झारखंड राज्य को निर्देश दिया कि वह सिर्फ नियमित नियुक्तियां करने पर ही गौर करे और अनियमित नियुक्तियां नहीं करे।

“झारखंड सरकार के अधीनस्थ अनियमित रूप से नियुक्त एवं कार्यरत कर्मियों की सेवा नियमितीकरण नियमावली” लेकर सरकार 2015 में आई। चूंकि राज्य के कुछ अनियमित रूप से नियुक्त कर्मचारियों को नियमित नहीं किया गया था, उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा कि सचिव, कर्नाटक राज्य एवं अन्य बनाम उमादेवी मामले में आया फैसला उनके नियमितीकरण की अनुमति नहीं देता है, क्योंकि उन्होंने निर्धारित तिथि 10 अप्रैल 2006 से पिछले 10 साल से काम ही नहीं किया है जब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया।

 कर्मचारियों का कहना था कि राज्य का निर्माण 15 नवंबर 2000 को हुआ और इस वजह से किसी व्यक्ति की झारखंड सरकार में 10 साल की सेवा नहीं हो सकती और इस तरह किसी को भी नियमितीकरण का लाभ मिलना चाहिए। इन लोगों ने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने कुछ कर्मचारियों को नियमित किया लेकिन इन लोगों ने भी राज्य में 10 साल की सेवा पूरी नहीं की है।

 पीठ ने कहा कि उमादेवी मामले में आए फैसले का उद्देश्य भविष्य में अनियमित या गैरकानूनी नियुक्ति को रोकना था और उन लोगों को लाभ पहुंचाने से वंचित करना था जिन्हें विगत में गलत तरीके से नियुक्ति दी गई है।

 हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए पीठ ने कहा, “हाईकोर्ट और झारखंड राज्य को पूरे मामले के सन्दर्भ को देखना चाहिए था और सिर्फ राज्य के वित्तीय या अन्य हितों की दृष्टि से ही इसे नहीं देखना चाहिए था – कर्मचारियों के हितों को भी ध्यान में रखने की जरूरत होती है। राज्य नियमित नियुक्ति को धता बताने में सफल रहा है और नियमित की जगह अनियमित नियुक्तियां की जा रही है। इसे कहीं से सुशासन नहीं कहा जा सकता।”

 कोर्ट ने इसके बाद कहा कि नियमितीकरण के नियम की प्रगतिगामी व्याख्या होनी चाहिए और अगर कर्मचारियों ने नियमितीकरण नियम की घोषणा की तिथि से 10 साल की सेवा पूरी कर ली है तो उन्हें उनकी सेवा का लाभ मिलना चाहिए। पीठ ने राज्य को इस बारे में चार माह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया।

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