IPC धारा 497 : व्याभिचार मामले में महिला को बाहर रखना समानता के अधिकार का उल्लंघन : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

2 Aug 2018 5:19 AM GMT

  • IPC धारा 497 : व्याभिचार मामले में महिला को बाहर रखना समानता के अधिकार का उल्लंघन : सुप्रीम कोर्ट

    मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने बुधवार को संकेत दिया कि 157 साल पुराने व्यभिचार कानून भारतीय दंड संहिता की धारा 497 की वैधता पर सात जजों की संविधान पीठ पुनर्विचार करेगी। हालांकि सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस कानून के तहत सिर्फ पुरुष को सजा देना और विवाहित महिला को इसमें शामिल ना करना समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

    मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा ​​ने आईपीसी धारा 497 की वैधता को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका की सुनवाई के दौरान इस ये कहा।

    अदालत ने महसूस किया कि चूंकि एक और पांच जजों की संविधान पीठ ने पहले से ही इस प्रावधान को बरकरार रखा है इसलिए सात जजों की पीठ को प्रावधान की वैधता का परीक्षण करना चाहिए ।

    इस दौरान याचिकाकर्ता के लिए उपस्थित वरिष्ठ वकील कलीश्वरम राज ने कहा कि जब एक  पुरुष और विवाहित महिला के बीच यौन संबंध होता है तो सिर्फ पुरुष को दंडित किया जाता है न कि महिला को और इस भेदभाव को हटा दिया जाना चाहिए। ये भेदभाव अनुच्छेद 14 के वास्तविक दायरे और प्रकृति के खिलाफ है। सीजेआई ने वकील से सहमति व्यक्त की और कहा कि एक समान अपराध जो आम सहमति से जुड़ा हुआ है और इसका परिणाम सिविल तौर पर भी निकलता है क्योंकि यह तलाक के लिए आधार है। गुरुवार को भी सुनवाई जारी रहेगी।

    इससे पहले व्याभिचार के मामलों में महिला को IPC की धारा 497 के तहत कानूनी कार्रवाई से मिले हुए सरंक्षण को चुनौती देने वाली याचिका को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की बेंच ने पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था।  सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि वो

    1954 और 1985 के सुप्रीम कोर्ट के फैसलों  से सहमत नहीं है जिसमें कहा गया कि IPC 497 महिलाओं से भेदभाव नहीं करता। बेंच ने कहा कि सामाजिक प्रगति, लैंगिक समानता और लैंगिक संवेदनशीलता को देखते हुए पहले के सुप्रीम कोर्ट के फैंसलों पर फिर से विचार करना होगा।8 दिसंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को मंजूर कर लिया था और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।

    11 जुलाई 2018 को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित करते हुए कि भारतीय दंड संहिता की धारा 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करने की मांग की और कहा कि इस मुद्दे पर भारत के कानून आयोग द्वारा विचार-विमर्श किया जा रहा है।

    केंद्र के हलफनामे में कहा गया है, “  धारा 497 "विवाह संस्था की रक्षा, सुरक्षा और सरंक्षण करती है। 497 को रद्द करना अंतर्निहित भारतीय आचारों के लिए हानिकारक साबित होगा जो विवाह संस्था की पवित्रता को सर्वोच्च महत्व देता है। हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि  विधायिका द्वारा कानून का प्रावधान विशेष रूप से अपने विवेक से विवाह की पवित्रता की रक्षा और सुरक्षा के लिए और भारतीय समाज की अद्वितीय संरचना और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

    हलफनामे में न्यायमूर्ति मालिमथ कमेटी की रिपोर्ट के बारे में अदालत को बताया गया है  जिसने मार्च, 2003 में धारा 497 को लिंग तटस्थ तरीके से  करने  सुझाव दिया था।ये  सिफारिश आपराधिक न्याय प्रणाली के सुधार पर समिति की रिपोर्ट में की गई थी। केंद्र ने कहा है कि आईपीसी की धारा 497 के संशोधन के संबंध में कानून आयोग की अंतिम रिपोर्ट का इंतजार है।  मालिमथ कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस खंड का उद्देश्य विवाह की पवित्रता को संरक्षित करना है। व्यभिचार के विलुप्त होने से वैवाहिक बंधन की पवित्रता कमजोर हो जाएगी और इसके परिणामस्वरूप वैवाहिक बंधन में लापरवाही होगी।

    दरअसल IPC की धारा  497 एक विवाहित महिला को सरंक्षण देती है भले ही उसके दूसरे पुरुष से संबंध हों। ये धारा महिला को ही पीडित मानती है भले ही महिला और पुरुष दोनों ने सहमति से संबंध बनाए हों।

    केरल के एक्टिविस्ट जोसफ साइन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर IPC 497 की वैधता को चुनौती दी है। उनका कहना है कि पहले के तीन फैसलों में इसे बरकरार रखा गया और संसद को कानून में संशोधन करने की छूट दी गई।

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