एनडीपीएस मामले में सजा सिर्फ आरोपी के इकबालिया बयान के आधार पर ही नहीं हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
1 Aug 2018 10:55 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नशीली पदार्थ और मादक द्रव्य अधिनियम, 1985 के तहत किसी ठोस सबूत के अभाव में किसी को सिर्फ सह-आरोपी के इकबालिया बयान के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती।
न्यायमूर्ति अभय मनोहर सप्रे और न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की पीठ ने एनडीपीएस मामले (सुरिंदर कुमार खन्ना बनाम इंटेलिजेंस ऑफिसर डायरेक्टरेट ऑफ़ रेवेन्यू इंटेलिजेंस) में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।
सुरिंदर को एक अन्य आरोपी के बयान के आधार पर इस मामले में आरोपी बनाया गया था। सभी आरोपियों को निचली अदालत ने सजा सुनाई जिसे बाद में हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया।
सुरिंदर के वकील जयंत भूषण ने कहा कि सह-आरोपी के तथाकथित बयान के अलावा सुरिंदर के खिलाफ और कुछ नहीं है और न ही उसको उस स्थान से गिरफ्तार किया गया था और न ही नशीली पदार्थों से उसका कोई लेना-देना था।
कोर्ट ने कहा कि एनडीपीएस अधिनियम की धरा 67 के तहत रिकॉर्ड किये गए बयान को क्या इकबालिया बयान माना जाएगा इसके बावजूद कि इस बयान को रिकॉर्ड करने वाले अधिकारी को पुलिस अधिकारी माना जाए कि नहीं, यह मामला इस समय बड़ी पीठ के समक्ष विचाराधीन है।
पीठ ने कहा, “अगर हम यह मान भी लें कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 67 के तहत इस तरह का बयान कबूलनामा है,हमारे विचार में कुछ अतिरिक्त सबूत अवश्य ही होने चाहिएं ताकि इस इकबालिया बयान को विश्वसनीय माना जा सके...”
पीठ ने हरि चरण कुर्मी और जोगिया हजाम बनाम बिहार राज्य मामले का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया, “किसी आरोपी के खिलाफ दायर मामले के बारे में कोर्ट किसी सह-आरोपी के इकबालिया बयान से ही मामले को शुरू नहीं कर सकता; उसे अभियोजन पक्ष द्वारा रखे गए अन्य सबूतों पर पहले गौर करना चाहिए...”
पीठ ने इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए कहा, “वर्तमान मामले में यह स्वीकार्य तथ्य है कि उपरोक्त बयानों के अलावा कोई और साक्ष्य उपलब्ध नहीं है जो याचिकाकर्ता की इस अपराध में संलिप्तता की पुष्टि करे। इस तरह हमारे पास उसके खिलाफ सिर्फ एक ही साक्ष्य बच जाता है और वह है सह-आरोपी का इकबालिया बयान जिसकी ऊपर चर्चा की जा चुकी है...कोर्ट एक सह-आरोपी के इस तरह के इकबालिया बयान को दूसरे सह-आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत नहीं मान सकता...किसी भी तरह के अन्य ठोस सबूत के अभाव में याचिकाकर्ता को सिर्फ सह-आरोपी के बयान के आधार पर दोषी करार देना अनुचित होगा।”