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बलात्कार के समय अभियुक्त के नाबालिग होने के कारण बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसकी 20 वर्ष की कैद की सजा को खारिज किया [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
31 July 2018 3:26 PM GMT
बलात्कार के समय अभियुक्त के नाबालिग होने के कारण बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसकी 20 वर्ष की कैद की सजा को खारिज किया [निर्णय पढ़ें]
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हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने  विशेष  पॉक्सो न्यायालय के उस निर्णय को खारिज़ किया जिसमें नाबालिग लड़की से बलात्कार के अपराध में अभियुक्त को दोषी करार दिया गया था। नाबालिग लड़की मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं थी। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के  इस फैसले को इस तर्क पर खारिज़  किया कि अभियुक्त जो कि अब 22 वर्ष का है घटना के समय किशोर था।

न्यायामूर्ति एएम बदर ने ये फैसला अभियुक्त की अपील याचिका की सुनवाई के बाद दिया। यह याचिका अभियुक्त ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2)(G) एवं 506 तथा लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 4 के अंतर्गत दायर की थी।

 मामला क्या था ?

 अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता उसी बिल्डिंग में रहती थी जिसमें अपीलकर्ता/अभियुक्त-1 रहता था और साथ में उसका तथाकथित किशोर साथी भी साथ रहता था।

अभियोजन पक्ष की यह दलील भी है कि पीड़िता नाबालिग लड़की का पहले अभियुक्त नंबर-1 के रूम मेट ने बलात्कार किया उसके उपरांत  दूसरे व्यक्ति ने जो उस मकान के पास  रहता था। उसके बाद,अपीलकर्ता अभियुक्त ने पीड़िता का  भयादोहन (ब्लैकमेल) करना शुरू कर दिया और उसे धमकाया और कहा कि वह (अभियुक्त) पूरी घटना का विवरण पीड़िता के माता पिता को बता देगा। उसके बाद अपीलकर्ता ने पुनः 15 मार्च 2013 को पीड़िता का बलात्कार किया।

अभियुक्त के वकील एसआर फँसे ने यह दलील दी कि उनका मुवक्किल 25 अप्रैल 1995 को पैदा हुआ है जिसका मतलब ये हुआ कि अपराध के घटित होने के वक़्त अभियुक्त 18 वर्ष से कम आयु का था । इसलिए उच्च न्यायालय ने विशेष  पॉक्सो न्यायालय को आदेश दिया कि वह पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 (अ) के तहत जाँच करे कि अभियुक्त की उम्र क्या है?

जांच रिपोर्ट के अनुसार, अभियुक्त के जन्म प्रमाणपत्र में उसका जन्म तिथि 25 अप्रैल 1995 है  जिसके अनुसार अपराध के वक़्त अभियुक्त की आयु 16 वर्ष 10 महीने 18 दिन थी।

 निर्णय

 न्यायमूर्ति बदर ने सर्वोच्च न्यायालय के फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा कि हरि राम बनाम राजस्थान राज्य के मामले में यह निर्णय दिया गया है कि जब एक बार यह स्थापित हो जाए कि अभियुक्त अपराध के वक़्त 18 वर्ष से कम आयु का था, तो वह किशोर न्याय अधिनियम के अन्तर्गत लाभ पाने का अधिकारी होगा।

  न्यायालय ने कहा, “इस प्रकार, अपीलकर्ता/अभियुक्त  को अपराध घटित होने के वक़्त किशोर होना पाया गया है इसलिए अभियुक्त को किशोर न्याय बोर्ड  के समक्ष भेजा जाए  ताकि वह उचित आदेश पारित कर सके और निचली अदालत ने यदि कोई सजा इस मामले में दी है तो वह प्रभावी नहीं होगा। अपीलकर्ता/अभियुक्त अपराध घटित होने के समय अपनी उम्र 18 वर्ष से कम साबित करने में पूर्णतः सफल हुआ है और वह 5 साल की सजा पहले ही काट चुका है ।

 कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार, पॉक्सो विशेष मामला न. 512 /2013 में निचली अदालत ने जो सजा दी है उसे खारिज़ किया जाना आवश्यक है और मामले से संबंधित रिकॉर्ड किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया जाए ताकि किशोर न्याय (बालकों की देखरेख) और संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उचित आदेश पारित किया जा सके।

अतः कोर्ट ने याचिकाकर्ता की अपील स्वीकार कर ली।

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