सबरीमाला- दिन 6 : सबरीमाला अयप्पा मंदिर में महिलाओं के एक वर्ग से भेदभाव नहीं हो सकता : CJI
LiveLaw News Network
31 July 2018 8:39 PM IST
मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने यह स्पष्ट कर दिया कि केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के एक वर्ग से भेदभाव कर मंदिर में प्रवेश करने से रोका नहीं जा सकता।
पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का नेतृत्व कर रहे सीजेआई ने भक्तों की तरफ से पेश वकील वीके बीजू से कहा कि मंदिर में अनुष्ठान हो सकते हैं लेकिन 41 दिनों के अनुष्ठान की असंभव स्थिति निर्धारित करके महिलाओं के एक वर्ग से भेदभाव किया जा रहा है और यह बहिष्कार के लिए है।
पीठ, जिसमें जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं, ने कहा कि अदालत इस तथ्य से अनजान नहीं हो सकती कि महिलाओं के एक वर्ग को शारीरिक आधार पर बाहर रखा गया है।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सीजेआई की टिप्पणी का समर्थन किया और कहा, "यदि संविधान सर्वोच्च है तो महिलाओं के एक वर्ग का कोई बहिष्कार नहीं हो सकता क्योंकि यह अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। हमारा संविधान प्रगतिशील है और यदि आवश्यक हो तो हमें इस तरह के मुद्दों से निपटना होगा । यदि यह एक घृणित अभ्यास है तो हमें इसके साथ हस्तक्षेप क्यों नहीं करना चाहिए ? "
बीजू ने तर्क दिया कि 10 से 50 वर्ष की उम्र की महिलाओं को प्रवेश ना देने की नीति मंदिर की परंपराओं और प्रथाओं में दिखाई देती है। यदि इन चीजों को बदल दिया गया तो ये मंदिर की पूरी प्रकृति को बदलने के समान होगा जो अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करेगा। उन्होंने कहा कि सबरीमाला अद्वितीय है क्योंकि यह भारत की बहुलवादी संस्कृति को भी कायम रखता है।
एक इस्लामी मस्जिद एरुमेली मस्जिद तीर्थयात्रा का हिस्सा है और तीर्थयात्री सबसे पहले देवता को देखने के लिए सबरीमाला पहुंचने से पहले इस मस्जिद में जाते हैं।
सबरीमाला में कभी जातिवाद या सांप्रदायिकता या धार्मिक बौद्धिकता नहीं रही और ये राष्ट्र में आध्यात्मिक बहुलवाद को कायम रखने में एक बड़ी भूमिका निभाता है।
इस आरोप को खारिज करते हुए कि महिलाओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है, उन्होंने कहा कि 2010 से 2017 तक, 10 से 50 आयु वर्ग की लगभग 15 लाख महिलाएं सबरीमाला का दौरा कर चुकी हैं। यह तथ्य है कि देश के सभी क्षेत्रों से और देश के बाहर से महिलाएं हर साल सबरीमाला दर्शन करती हैं। एक तथ्य ये भी है कि केवल आयु पर नियंत्रण नहीं बल्कि पुरुषों के प्रवेश के लिए भी नियम हैं जैसे अटुकल भगवती मंदिर।
उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि देवता नैस्टिक ब्रह्मचारी के रूप में है, ऐसा माना जाता है कि युवा महिलाओं को मंदिर में पूजा नहीं करनी चाहिए ताकि देवता का ब्रह्मचर्य और तपस्या महिलाओं की उपस्थिति के कारण थोड़ी सी भी विचलित ना हो।
बीजू ने अदालत से आग्रह किया कि वे परंपरा और रीतियों की सच्चाई का विश्लेषण करने के लिए एक उचित आयोग नियुक्त करें। उन्होंने कहा कि सबरीमाला तंत्री की राय लेना भी उचित रहेगा जिनकी बात अनुष्ठानों के संबंध में अंतिम होती है।
वकील गोपाल शंकरनारायणन ने प्रस्तुत किया कि नियम, जो विनियमन को लागू करता है, न केवल सबरीमाला के लिए बल्कि केरल के अन्य मंदिरों के लिए कई प्रथाओं को शामिल करता है। इसलिए नियम को रद्द करने से केरल में अन्य उप-नियम और अन्य मंदिर प्रभावित होंगे।
शंकरनारायणन ने कहा कि भक्त जो सबरीमाला मंदिर में विश्वास रखते हैं और अपनी परंपरा का पालन करते हैं, वे संविधान के अनुच्छेद 26 के प्रयोजनों के लिए धार्मिक संप्रदाय के रूप में योग्यता प्राप्त करते हैं। उन्होंने कहा कि धार्मिक संप्रदाय की एक संकीर्ण परिभाषा सबरीमाला मंदिर की अनूठी प्रकृति और इतिहास के लिए न्याय नहीं कर सकती।बुधवार को सुनवाई पूरी होने की उम्मीद है।