Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

किसी अपराध का प्रत्यक्षदर्शी नहीं, भुक्तभोगी दे सकता है आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती और कर सकता है दुबारा सुनवाई की मांग : बॉम्बे हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
31 July 2018 7:43 AM GMT
किसी अपराध का प्रत्यक्षदर्शी नहीं, भुक्तभोगी दे सकता है आरोपियों को बरी करने के फैसले को चुनौती और कर सकता है दुबारा सुनवाई की मांग : बॉम्बे हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]
x

बॉम्बे हाईकोर्ट ने हत्या की घटना के प्रत्यक्ष गवाह रहे सिराज पठान की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कोई प्रत्यक्षदर्शी किसी मामले में आरोपी को बरी किये जाने के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 378 के तहत अपील नहीं दायर कर सकता और मामले की दुबारा सुनवाई की मांग नहीं कर सकता।

औरंगाबाद पीठ के न्यायमूर्ति मंगेश पाटिल ने इस याचिका पर सुनवाई की जिसमें कहा गया था कि इसके बावजूद कि वह अभियोजन पक्ष द्वारा नामित प्रत्यक्षदर्शी है, उससे कोई पूछताछ नहीं की गई। इसी आधार पर याचिकाकर्ता ने सभी आरोपियों को बरी किये जाने के खिलाफ याचिका दायर की।

पृष्ठभूमि

31 मार्च 2009 को अविनाश भराटे की अहमदनगर जिला के जामखेड, महाराष्ट्र में भाग्यलक्ष्मी कला केंद्र के पास मरा हुआ पाया गया। उसकी हत्या की गई थी। अभियोजन का कहना है कि मृतक और आठ अन्य लोग जो इस मामले में प्रतिवादी हैं, के बीच कहासुनी हुई। इसके बाद हुए हमले में भराटे की वहाँ हत्या हो गई और पाटिल इस वाकये का प्रत्यक्षदर्शी था।

पर, मामले की सुनवाई के दौरान सभी प्रत्यक्षदर्शी मुकर गए और इस आधार पर सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया।

फैसला

अतिरिक्त लोक अभियोजक जीओ वात्तम्वर ने कहा कि याचिकाकर्ता से पूछताछ की कई बार कोशिश की गई पर उसका कोई अतापता नहीं था। उसको सम्मन भेजा गया पर इसके बावजूद याचिकाकर्ता नमूदार नहीं हुआ।

आरोपियों के वकील एनबी खंडारे ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाया और कहा कि इस मामले की पूरी तरह सुनवाई हुई है और आरोपियों को बरी कर दिया गया इसलिए इस याचिका को रद्द कर दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि इस मामले में सिर्फ धारा 372 के तहत अपील की जा सकती है, पर इस धारा के तहत यह अधिकार सिर्फ मामले के भुक्तभोगी को उपलब्ध है। याचिकाकर्ता इस तरह की अपील नहीं कर सकता।

याचिकाकर्ता के ने इस अपील के लिए बेस्ट बेकरी मामले (ज़ाहिरा हबीबुल्ला एच शेख और अन्य बनाम गुजरात राज्य) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया था और इस आधार पर ही इस फैसले को निरस्त किये जाने की मांग की थी।

कोर्ट ने कहा, “...ऐसा नहीं लगता कि सुनवाई जल्दबाजी में की गई है ताकि अभियोजन के बारे में इतना संदेह पैदा हो जाए कि इसमें कोई निहित मंशा नजर आए।”

कोर्ट ने आगे कहा,

“...उसको (याचिकाकर्ता को) धारा 372 के तहत दुबारा सुनवाई की मांग का अधिकार नहीं है...क़ानून सिर्फ किसी अपराध के भुक्तभोगी को ही इस धारा के तहत यह अधिकार देता है...”

न्यायमूर्ति पाटिल ने कहा कि बेस्ट बेकरी मामले में आये फैसले को इस मामले में लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि दोनों की परिस्थितियाँ अलग हैं।

इस तरह, अदालत ने इस याचिका को ख़ारिज कर दिया।


 
Next Story