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विवाद को रोकने और समझौते को आसानी से लागू करने वाले क्लॉज़ को मध्यस्थता का समझौता नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
27 July 2018 4:15 PM GMT
विवाद को रोकने और समझौते को आसानी से लागू करने वाले क्लॉज़ को मध्यस्थता का समझौता नहीं माना जा सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
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सुप्रीम कोर्ट ने श्याम सुन्दर अगव्राल बनाम पी नरोथम राव मामले में कहा है कि विवादों को रोकने के लिए और समझौते को आसानी से लागू कराने के लिए समझौते में डाली गई धाराओं को मध्यस्था का समझौता नहीं माना जा सकता।

इस मामले में जिस समझौते की चर्चा हो रही है उसमें नारोथम राव के नाम से नौ चेक सुधाकर राव और गोने प्रकाश राव को सौंपा गया। इन लोगों को मध्यस्थ/पंच बताया गया। समझौते में कहा गया कि यह तब उनके पास रहेगा जबतक कि पूरी लेन-देन संतोषप्रद रूप से पूरी नहीं हो जाती। इसमें यह कहा गया है कि अगर दोनों में से किसी पक्ष ने इस करार को पूरा नहीं किया तो मध्यस्थ/पंच द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय दोनों ही पक्षों के लिए बाध्यकारी होगा।

न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पीठ को यह निर्णय करना था कि इन धाराओं के तहत ‘निर्णय’ और‘मध्यस्थ/पंच’ इस धारा को पंचाट का समझौता बनाता है कि नहीं।

पीठ ने कहा, “इन धाराओं पर गौर करने के बाद यह पता चलता है कि सुधाकर राव और गोने प्रकाश राव जिनको मध्यस्थ/पंच बताया गया है, निस्संदेह एस्क्रौ एजेंट हैं जिन्हें कुछ दस्तावेजों को एस्क्रौ में रखने के लिए नियुक्त किया गया है और यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि समझौता सफलतापूर्वक पूरा हो। पूरा मामला यह है कि मध्यस्थ/पंच यह सुनिश्चित करेंगे कि लेन-देन पूरी तरह पूरी हो जाए...”।

कोर्ट ने आगे कहा कि ये दो एस्क्रौ एजेंट ऐसे लोग नहीं हैं जो दोनों पक्षों के बीच होने वाले विवादों का निपटारा करेंगे। “समझौते पर गौर करने से स्पष्ट है कि इन दोनों व्यक्तियों पर सिर्फ एस्क्रौ एजेंट के रूप में समझौते में बताए गए लेन-देन को पूरा करने की जिम्मेदारी है और वे दोनों पक्षों के बीच विवादों के निपटारे से दूर-दूर तक नहीं जुड़े हैं,” कोर्ट ने कहा।

कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता यह जानते थे कि धारा 12 को पंचाट का क्लॉज़ नहीं माना जा सकता, इसके बावजूद उन्होंने प्रक्रिया में विलंब करने की मांग की अगर अपने द्वारा दायर मामले में शामिल नहीं होते हैं।”


 
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