[सबरीमाला] [दिन 5] अपनी पहचान से निकली धार्मिक आस्था में सुधार नहीं कर सकती अदालत, महिलाओं के प्रवेश पर रोक के समर्थन में के परासरन की दलील
LiveLaw News Network
26 July 2018 11:18 AM IST
वरिष्ठ वकील के परासरन ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि रिवाज और लंबी परंपरा के अनुसार सबरीमाला में अयप्पा मंदिर में भगवान के सामने 10 से 50 वर्ष के आयु वर्ग की महिलाओं को अनुमति नहीं दी जाती और देवता खुद इस आयु वर्ग में महिलाओं की उपस्थिति नहीं चाहते।
परासरन ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच के सामने ये दलीलें रखीं जो यंग लॉयर्स एसोसिएशन द्वारा दायर याचिकाओं और अन्य पांच अर्जियों पर सुनवाई कर रही है जिनमें प्रतिबंध को चुनौती देने और प्रतिबंधों को हटाने की मांग की है।
हस्तक्षेपकर्ता में से एक नायर सोसाइटी के लिए उपस्थि परासरन ने कहा कि सबरीमाला एक अनूठा मंदिर है जहां हिंदुओं के अलावा ईसाइयों, मुसलमानों और यहां तक कि विदेशियों को भी प्रवेश करने की अनुमति है। लेकिन रिवाज और लंबी परंपरा के अनुसार 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं को अनुमति नहीं है क्योंकि इस मंदिर में भगवान का प्रकटीकरण एक ब्रह्मांड है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि अगर अदालत इस रिवाज को समाप्त कर देगी तो धार्मिक संस्थान का विशिष्ट चरित्र अपरिवर्तनीय रूप से बदल जाएगा जो अनुच्छेद 25 (1) के तहत भक्तों के अधिकारों को प्रभावित करता है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि वर्तमान मामले में सामाजिक मुद्दा शामिल नहीं है बल्कि ये एक धार्मिक मुद्दा है। उन्होंने 25 (2) का उपयोग करके, " आपका आदेश एक धर्म को अपनी पहचान से बाहर कर देगा" उन्होंने अदालत से कहा।
उन्होंने कहा कि न केवल पूजा करने वालों की धारणा बल्कि पूजा की रीति भी महत्वपूर्ण है। अगर एक भक्त को लगता है कि वह ब्रह्मचारी की मूर्ति की पूजा नहीं कर रहा है तो वह उस मंदिर में नहीं जाएगा। केरल में अन्य सभी अयप्पा मंदिरों में महिलाओं को बिना किसी भेदभाव के प्रवेश की अनुमति है। उन्होंने कहा कि अवधारणा 10 से 50 वर्ष की आयु में महिलाओं की मौजूदगी भगवान अयप्पा की तपस्या को परेशान करेगी और इसलिए भगवान स्वयं उनकी उपस्थिति नहीं चाहते। परासरन ने कहा कि भगवान अयप्पा का नैयस्तिक ब्रह्मचारी के रूप में चरित्र संविधान द्वारा संरक्षित है और न्यायपालिका इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती। मंगलवार को न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ द्वारा किए गए अवलोकन का जिक्र करते हुए कि महिलाओं पर प्रतिबंध पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण है, परासरन ने प्रस्तुत किया कि केरल में 96 प्रतिशत महिलाएं शिक्षित हैं और यह एक मातृसत्तात्मक समाज है। इसलिए यह मानना कि सबरीमाला मंदिर का अभ्यास पितृसत्ता पर आधारित है मूल रूप से गलत है। परासरन ने प्रस्तुत किया कि इस अभ्यास का आधार देवता की ब्रह्मांड प्रकृति है। मंदिर में जाने वाले भक्तों से भी भावना के तहत ब्रह्मचर्य का पालन करने की उम्मीद है।
उन्होंने तर्क दिया कि हिंदू शास्त्रों द्वारा ये समर्थित नहीं है और न ही शुद्धता एकमात्र महिला का दायित्व है। वास्तव में शुद्धता मनुष्य पर अधिक दायित्व है और वह महिला को गर्व देने के लिए शास्त्रों के तहत कर्तव्य है।
परासरन ने प्रस्तुत किया कि लोकतंत्र को धर्म और परंपरा की रक्षा करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म उस योग्यता और ज्ञान का सम्मान करता है जहां से यह आता है। उनका मानना था कि अदालत को एक्विस्ट की आवाजों को सुनना चाहिए, लेकिन उसे समान रूप से उन आवाजों को भी सुनना चाहिए जो परंपरा की रक्षा करना चाहते हैं। परासरन ने प्रस्तुत किया कि विधायिका ब्रह्मा है, कार्यकारी विष्णु हैं और शिव न्यायपालिका हैं क्योंकि केवल शिव का 'अर्धनारीश्वर' रूप अनुच्छेद 14, दोनों लिंगों के बराबर उपचार को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि शिव कोई ब्रह्मचारी नहीं है लेकिन जब उनके ध्यान को कामदेव द्वारा तोड़ने की कोशिश की गई तो उन्होंने उन्हें राख कर दिया क्योंकि वह शिव की स्थिति का सम्मान करने में नाकाम रहे।
अदालतों को सावधानी बरतने की बात कहते हुए पूर्व अटॉर्नी जनरल ने कहा, "हमें इस धारणा के साथ आगे बढ़ना नहीं चाहिए कि पूर्वजों को कुछ भी नहीं पता था और हम जीवन के सभी पहलुओं को बेहतर जानते हैं।"
जस्टिस नरीमन और चंद्रचूड़ जानना चाहते थे कि राज्य संविधान के अनुच्छेद 25 (2) (बी) के तहत कानून बनाने के लिए बाध्य है कि वो बिना किसी आयु प्रतिबंध के महिलाओं सहित सभी वर्गों के लिए हिंदू मंदिरों को खोले। परासरन ने कहा कि राज्य का यह अधिकार केवल सामाजिक सुधार पर लागू होता है, यह अभी भी अनुच्छेद 26 (बी) के तहत धर्म के मामलों पर लागू नहीं होता।
जब सीजेआई ने वकील से पूछा कि महिलाओं को क्यों बाहर रखा गया है तो वकील ने कहा कि इस धार्मिक अभ्यास और परंपरा के अनुसार वर्षों से पालन किया जा रहा है। परासरन ने प्रस्तुत किया कि अनुच्छेद 25 (2) केवल धर्मनिरपेक्ष पहलुओं और वर्गों या वर्गों के प्रवेश के अधिकार से संबंधित है इसलिए ये लिंग के आधार पर धार्मिक पहलुओं या प्रवेश के अधिकार पर लागू नहीं होता।
उन्होंने कहा कि यदि अनुच्छेद 25 (2) महिलाओं पर लागू होता है तो यह केवल सामाजिक मुद्दों के संबंध में है, धार्मिक मुद्दों पर नहीं। उन्होंने आगे प्रस्तुत किया कि अनुच्छेद 25 (2) (बी) विधानमंडल के लिए सबसे अच्छा प्रावधान है, यह न्यायपालिका को उन पृथाओं में हस्तक्षेप करने में सक्षम नहीं करता, जो एक अभिन्न धार्मिक अभ्यास है।
जब न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि किसी विशेष आयु की महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करने वाली अधिसूचना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करेगी को परासरन ने कहा ये प्रावधान त्रानणकोर बोर्ड को इसके प्रशासन के तहत मंदिर की प्रथाओं का पालन और रखरखाव करने की जरूरत है। गुरुवार को सुनवाई जारी रहेगी।