Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

2001 में दाखिल आपराधिक शिकायत अब तक लंबित, सुप्रीम कोर्ट ने ‘ तकनीकी याचिका’ को खारिज करने में लगाया एक दशक से ज्यादा [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
23 July 2018 10:25 AM GMT
2001 में दाखिल आपराधिक शिकायत अब तक लंबित, सुप्रीम कोर्ट ने ‘ तकनीकी याचिका’ को खारिज करने में लगाया एक दशक से ज्यादा [निर्णय पढ़ें]
x

न्याय में देरी न्याय को ख़ारिज करना है, पर इस पर अमल शायद ही कभी होता है। यह मामला इसका ज्वलंत उदाहरण है।

एक महिला ने 2001 में बिहार में मजिस्ट्रेट की अदालत में एक आपराधिक शिकायत दर्ज की जिसमें उसने अपने ससुराल वालों के खिलाफ क्रूरता की शिकायत की थी। यह कथित अपराध आईपीसी की धारा 498A, 323,406, 379 और 504 के तहत दर्ज किये गए थे। मजिस्ट्रेट ने 2004 में बरी किये जाने की अर्जी खारिज कर दी थी और मामले में चार्जशीट दाखिल करने को कहा।

महिला के ससुराल वालों ने हाईकोर्ट में अपील कर शिकायत को खारिज करने की अपील की और अदालत को इस अपील को खारिज करने में एक-दो साल लग गए। अपील ख़ारिज नहीं करने का एक आधार यह बताया गया कि संबंधित कोर्ट को इस शिकायत पर सुनवाई का अधिकार नहीं है क्योंकि यह उसकी भौगोलिक सीमाक्षेत्र के बाहर है। कोर्ट ने कहा कि गोपालगंज की अदालत ही इस मामले की सुनवाई कर सकती है। यह 2006 की बात है।

उसी वर्ष विशेष अनुमति याचिका दायर की गई जो सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष आई जिसमें न्यायमूर्ति एसबी सिन्हा और न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू थे। उन्होंने अगले आदेश तक हाईकोर्ट के आदेश की तामील पर रोक लगा दी।

वर्ष 2009 में अनुमति दी गई और इसे ‘आपराधिक अपील’ बताया गया। वर्ष 2012 में रजिस्ट्रार का एक आदेश भी आया जिसमें इस मामले पर अंतिम सुनवाई की बात कही गई थी।

उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार, यह मामला इसके बाद अक्टूबर 2017 में ही सुनवाई के लिए आ सका और अंततः इसकी सुनवाई न्यायमूर्ति एएम सप्रे और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर की पीठ ने गत सप्ताह की।

रिपोर्ट नहीं किये जाने वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे इस अपील में कोई दम नज़र नहीं आता है।

कोर्ट ने कहा, “यह निश्चित ही दुर्भाग्य की बात है कि वर्ष 2001 में प्रतिवादी नंबर 2 (पत्नी) द्वारा दर्ज शिकायत की मेरिट पर अभी तक कोई निर्णय नहीं हुआ और तकनीकी अपील के आधार पर यह अभी तक लंबित है।”

पर इसमें गलती किसकी है?

इस मामले में आरोपी को निर्देश भी है कि वह शिकायत का विरोध कर सकता है और मजिस्ट्रेट को निदेश दिया गया है कि वह इस मामले को छह माह के भीतर तय करे।

अगर इस देश की शीर्ष अदालत इस तरह के मामले के बारे में ‘तकनीकी अर्जी’ को डिस्पोज करने के लिए खुद पर कोई समय-सीमा लगाएगी तो बहुतों के लिए न्याय शीघ्र मिल सकता है।


 
Next Story