केजरीवाल VS LG : दिल्ला सरकार ने कहा, प्रशासन लकवाग्रस्त, जल्द सुनवाई हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 26 जुलाई को सुनवाई तय की

LiveLaw News Network

18 July 2018 1:41 PM GMT

  • केजरीवाल VS LG : दिल्ला सरकार ने कहा, प्रशासन लकवाग्रस्त, जल्द सुनवाई हो लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 26 जुलाई को सुनवाई तय की

     "सरकार आज लकवाग्रस्त है। हम अधिकारियों की नियुक्ति या तबादला की स्थिति में नहीं हैं। हाल ही में संविधान बेंच के फैसले का उद्देश्य क्या है? कुछ तात्कालिकता है,” दिल्ली सरकार के लिए पेश वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने बेंच से कहा। 

    दिल्ली सरकार ने आज सुप्रीम कोर्ट से उपराज्यपाल  के साथ अपनी अधिकारों से संबंधित लड़ाई की लंबित याचिकाओं को जल्द सुनने के लिए आग्रह किया लेकिन न्यायमूर्ति एके सीकरी  की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह 25 जुलाई  से पहले इसे सुनाने की स्थिति में नहीं है और इसे 26 जुलाई के लिए तय किया गया है।

    दरअसल सर्विस से संबंधित और नौकरशाहों की नियुक्ति व तबादले समेत कई मुद्दे दो जजों की  पीठ के समक्ष लंबित हैं "सरकार आज लकवाग्रस्त है। हम अधिकारियों की नियुक्ति या तबादला की स्थिति में नहीं हैं। हाल ही में संविधान बेंच के फैसले का उद्देश्य क्या है? कुछ तात्कालिकता है,” दिल्ली सरकार के लिए पेश वरिष्ठ वकील पी चिदंबरम ने बेंच से कहा।

      वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने कहा, "दिल्ली सरकार के अधिकारी अदालत के दस्तावेजों पर भी हस्ताक्षर करने से इंकार कर रहे हैं। आखिर में एक मंत्री को इस मामले में दायर आवेदन से संबंधित हलफनामे पर हस्ताक्षर करना पड़ा।”   लेकिन न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा के साथ बैठे न्यायमूर्ति ए के सीकरी ने  कहा, "देखो, हम 25 जुलाई से पहले इसे सुनने की स्थिति में नहीं हैं। चलो इसे 26 जुलाई के समय तय करें। हम उस दिन देखेंगे।"

     4 जुलाई के महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भूमि, पुलिस और सार्वजनिक आदेश के मामलों में एलजी के अधिकार क्षेत्र को प्रतिबंधित कर दिया था। यह भी कहा गया कि वह कोई स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते और  मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्रियों की परिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं। इसके छह दिनों के भीतर 10 जुलाई को आप सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में फिर से लंबित याचिकाओं की सुनवाई की मांग की जिसमें सर्वोच्च न्यायालय को यह निष्कर्ष निकालना है कि सर्विस पर अधिकार क्षेत्र किसका है, भ्रष्टाचार निरोधक शाखा की शक्तियां और जांच कमीशन आदि नियुक्त करने का अधिकारक्षेत्र किसका है।

    ऐसा इसलिए है क्योंकि केंद्र का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले ने एलजी और मुख्यमंत्री दोनों की शक्तियों के संबंध में केवल एक पंक्ति तैयार की है और उच्च न्यायालय के किसी भी आदेश को रद्द नहीं किया या राज्यपाल के कार्यों में से किसी को रोका नहीं  था । सुप्रीम कोर्ट के  फैसले के तुरंत बाद  केजरीवाल ने बैजल को एक पत्र भेजा  जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को पूरी तरह कार्यान्वित करने का आग्रह किया गया, जिसमें दिल्ली सरकार को प्राथमिकता दी गई। लेकिन एलजी ने जवाब दिया कि अपीलों को शीर्ष अदालत में एक पीठ के समक्ष लंबित रखा गया है और ‘ समयपूर्व निष्कर्ष निकालने" का सरकार पर आरोप लगाया था।

     केजरीवाल का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने यह  स्पष्ट किया है कि केंद्र की कार्यकारी शक्तियां केवल तीन विषयों तक ही सीमित हैं (भूमि, पुलिस और सार्वजनिक आदेश) और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत सर्विस को केंद्र के अधिकारक्षेत्र में बताने वाली गृह मंत्रालय की 2015 की अधिसूचना एक औपचारिकता है।

    Next Story