Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

शराब पर हुए विवाद की वजह से क्या प्रशिक्षु न्यायिक अधिकारियों को निलंबित किया जा सकता है? इलाहबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने विभाजित निर्णय दिया [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
17 July 2018 12:33 PM GMT
शराब पर हुए विवाद की वजह से क्या प्रशिक्षु न्यायिक अधिकारियों को निलंबित किया जा सकता है? इलाहबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने विभाजित निर्णय दिया [निर्णय पढ़ें]
x

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 15 प्रशिक्षु न्यायिक अधिकारियों को एक स्थानीय रिसोर्ट में शराब पीकर हंगामा करने के आरोप में हटाने के मामले में विभाजित फैसला दिया है।

 न्यायमूर्ति एसएस चौहान ने कहा कि ये अधिकारी युवा और अनुभवी हैं और उनको एक और मौक़ा दिया जाना चाहिए जबकि न्यायमूर्ति रजनीश कुमार ने इनको हटाए जाने के आदेश को सही बताया। इसलिए अब इस मामले को मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया है कि वह इस मुद्दे पर पीठ का गठन करें।

 तथ्य क्या है

 मई 2013 को 15 याचिकाकर्ताओं को सिविल जज (कनिष्ठ प्रभाग) नियुक्त किया गया और ये लोग दो साल के लिए प्रशिक्षण पर थे। इन लोगों को उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में पदस्थापित किया गया था और 9 जून 2014 से 8 सितंबर 2014 तक की अवधि तक इनके लिए आरंभिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन लखनऊ के न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान में किया गया।

 उनका प्रशिक्षण जिस दिन पूरा होने वाला था उससे एक दिन पहले, सारे प्रशिक्षु रात्रि भोजन के लिए एक स्थानीय रिसोर्ट में गए। इसके बाद वहाँ हंगामा हुआ और इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले के बारे में रिपोर्ट तलब किया और फिर इस मामले को पूर्ण अदालत को सौंप दिया।

 पूर्ण अदालत ने फैसला किया कि इन लोगों को उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा नियम, 2001 के नियम 24(4) के तहत डिस्चार्ज कर दिया जाए।

याचिकाकर्ताओं ने अब इस आदेश को चुनौती दी है और कहा है उन लोगों को अपना पक्ष रखने का मौक़ा नहीं दिया गया और यह आदेश उनके लिए कलंक जैसा और दंडात्मक है क्योंकि यह उनको भविष्य में इस तरह की किसी सेवाओं में जाने से रोकता है।

 न्यायिक अधिकारियों का व्यवहार अदालत के दरवाजे के बाहर की दुनिया को भी प्रभावित करता है : न्यायमूर्ति कुमार

 न्यायमूर्ति कुमार ने इस मामले के बारे में कहा, “याचिकाकर्ता न्यायिक अधिकारियों का व्यवहार आचरण एक न्यायिक अधिकारी के सम्मान के विपरीत था।” उन्होंने कहा,

 जब किसी व्यक्ति को जज नियुक्त किया जाता है, तो उसे अपने व्यवहार पर पाबंदियों को अवश्य ही स्वीकार करना चाहिए जो आम आदमी के लिए नीरस और बोझ होता है। उसे आचरण के ऊंचे आदर्शों का पालन करना होता है। एक जज को हमेशा ही इस तरह से पेश आना होता है जो एक न्यायिक अधिकारी के न्यायिक प्रशासन, नेकनामी, गरिमा और प्रतिष्ठा को बनाए रखे...”

 न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि चूंकि न्यायिक अधिकारी प्रशिक्षण पर थे, इसलिए आदेश देने से पहले इसकी विभागीय जांच की जरूरत नहीं थी।

 उन्होंने अपने आदेश में कहा, “कथित व्यवहार और आचरण उनके काम और कर्तव्यों के निर्वहन से जुड़ा नहीं है और न ही यह विपक्ष की पार्टी से जुड़ा हुआ है। इसलिए किसी नियमित विभागीय जांच की जरूरत नहीं थी। हालांकि, ऊपर जिस तरह के क़ानून की चर्चा की गई है, याचिकाकर्ता एक न्यायिक अधिकारी के रूप में ऊंचे आदर्शों, सत्यनिष्ठा, नैतिकता, और औचित्य को कायम नहीं रख पाए।”

 न्यायमूर्ति कुमार ने इस दलील को भी खारिज कर दिया कि आदेश उनके लिए कलंक सदृश और दंडात्मक है।

इस तरह उन्होंने कहा कि इस याचिका में कोई दम नहीं है और उन्होंने इसे खारिज कर दिया।

इसके उलट, न्यायमूर्ति चौहान ने याचिका को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि याचिकाकर्ताओं को एक और मौक़ा दिया जाना चाहिए क्योंकि वे युवा और अनुभवहीन हैं। उन्होंने कहा, “याचिकाकर्ता युवा न्यायिक अधिकारी हैं और इनकी नई नई भर्ती हुई है और इनके पास अपने सेवा के बारे में ज्यादा अनुभव नहीं है और वे यह नहीं जानते हैं कि उनको कोर्ट के अंदर और कोर्ट के बाहर किस तरह का व्यवहार करना चाहिए और यह घटना दो पक्षों के बीच हुए विवाद का परिणाम थी जो कि एक सामान्य सी मानवीय घटना है। यहाँ तक कि बहुत सारे लोग आपस में बात करते हुए नशे की हालत में हुए बिना भी आपस में लड़ लेते हैं।”


 
Next Story