बिक्री के करार के तहत जारी किए गए चेक पर भी परक्राम्य लिखित अधिनियम की धारा 138 लागू होगी अगर इस चेक की चर्चा बिक्री करार में नहीं है : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
11 July 2018 3:34 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि चेक के लौटने का अपराध पराक्रम्य लिखित अधिनियम की धारा 138 के तहत आएगा। कोर्ट ने कहा कि इसके बावजूद कि यह चेक बिक्री की करार के तहत जारी किया गया था पर अगर इस चेक के बारे में अगर बिक्री के करार में नहीं बताया गया है तो इस पर इस धारा के प्रावधान लागू होंगे। यह फैसला न्यायमूर्ति विपिन संघी ने भविष चंद्र शर्मा बनाम बावा सिंह मामले में दिया। निचली अदालत ने इस मामले में आरोपी को बरी करने का आदेश दिया था जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
शिकायतकर्ता का मामला यह है कि उसने आरोपी को एक संपत्ति 20 लाख में की बिक्री की। आरोपी ने 15 लाख रुपए नकद जमा कराए थे और शेष राशि के भुगतान के लिए चेक जारी किया। पर जारी किया गया चेक वापस हो गया जिसकी आड़ में शिकायत दर्ज कराई गई।
आरोपी ने सब बातें स्वीकार कीं लेकिन कहा कि उसने नकद 16 लाख दिए थे और चार लाख का चेक जारी किया था। यह चेक शिकायतकर्ता ने यह कहते हुए लौटा दी थी कि उसके पास कोई बैंक खाता नहीं है। आरोपी ने आगे कहा कि शेष राशि उसने नकद में चुका दी थी और उसने पानेवाले का नाम लिखे बिना पांच लाख का एक चेक ब्रोकर को सौंपा था जो कि सिक्यूरिटी डिपाजिट और अन्य बिलों के भुगतान के लिए था। आरोपी ने आरोप लगाया कि शिकायतकर्ता ने उस चेक का दुरुपयोग किया जिसकी वजह से चेक वापस हो गया।
निचली अदालत ने गौर करते हुए कहा कि इसके बावजूद कि शिकायतकर्ता ने कहा कि बिक्री की राशि 20 लाख रुपए थी,बिक्री के करार में यह राशि सिर्फ चार लाख रुपए थी। इस आधार पर निचली अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया।
हाई कोर्ट ने कहा, “...संपत्ति को बेचने की क़ानून में मनाही नहीं है। करार के सिर्फ कुछ ही हिस्से के बारे में बताने का परिणाम दोनों ही पक्ष के लिए होगा। हालांकि, लेकिन इससे इस करार के तहत होने वाला लेनदेन गैरकानूनी नहीं हो जाता...यह दावा नहीं किया गया है कि किसी उचित समय के दौरान नकद भुगतान की मनाही थी और इस वजह से लेनदेन अमान्य हो गया।”
यह कहते हुए कोर्ट ने इस दलील को खारिज कर दिया कि यह चेक किसी गैरकानूनी समझौते के लिए जारी किया गया था।
कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने आरोपी की दलील मानकर गलती की है जो को असंभव है। कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि जब बिजली आदि का बिल शिकायतकर्ता को देना था तो आरोपी ने पांच लाख का चेक क्यों दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने खुद को एक गवाह के रूप में पेश नहीं किया था और अपनी दलील उसने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दर्ज कराई थी। इन बयानों को साक्ष्य नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने इस बारे में वीएस यादव बनाम रीना , 2010 (4) JCC (NI)323 मामले में आए फैसले का हवाला दिया और कहा, “...सीआरपीसी की धारा 281 या 313 के तहत उसके बयान को आरोपी का साक्ष्य नहीं माना जा सकता बल्कि इसको सिर्फ परिस्थिति के बारे में बयान कहा जा सकता है। क़ानून में इस तरह के अनुमान की कोई जगह नहीं है कि आरोपी जो कह रहा है वह सच है।”
कोर्ट ने अपील स्वीकार कर लिया और आरोपी को बरी करने के फैसले को निरस्त कर दिया।