सभी नौ सुनवाइयों पर स्थगन लेने के बाद अपील वापस लेने के फैसले से नाराज दिल्ली हाईकोर्ट ने यूट्यूब को प्रति सुनवाई 50 हजार जमा कराने को कहा [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

11 July 2018 4:55 AM GMT

  • सभी नौ सुनवाइयों पर स्थगन लेने के बाद अपील वापस लेने के फैसले से नाराज दिल्ली हाईकोर्ट ने यूट्यूब को प्रति सुनवाई 50 हजार जमा कराने को कहा [निर्णय पढ़ें]

    यूट्यूब पर दिल्ली के एक डॉक्टर के खिलाफ एक अपमानजनक पोस्ट को हटाने के निचली अदालत के आदेश के खिलाफ उसकी अपील पर सुनवाई के बाद अपील वापस लेने से गुस्साए कोर्ट ने उसे प्रति सुनवाई 50 हजार रुपए जमा करने को कहा है। यूट्यूब के आग्रह पर 64 दिनों के भीतर नौ बार सुनवाई को स्थगित किया गया था।

    यह मामला साकेत कोर्ट से संबद्ध है जिसने जून 2015 में अमरीका स्थित कंपनी यूट्यूब और इसकी मातृ कंपनी गूगल को दिल्ली के एक डॉक्टर के खिलाफ अपमानजनक पोस्ट को हटाने का आदेश दिया था।

    कंपनी ने इस आदेश को चुनौती नहीं दी और इसलिए यह आदेश अंतिम था।

    इसके बाद कंपनी ने इसके खिलाफ अपील किया पर नौ सुनवाइयों के बाद 64 दिनों के भीतर ही उसने अपील वापस लेने की अपील की। इससे पहले सभी नौ सुनवाइयों के दिन उसने सुनवाई को स्थगित किये जाने की मांग की थी और उसकी अपील मान ली गई थी।

    “…मामले को 64 दिनों के भीतर नौ बार सुनवाई के लिए लिस्ट में शामिल किया गया और हर बार गूगल के आग्रह पर इसको स्थगित कर दिया गया...इस सुनवाई पर न्यायालय ने जो समय जाया किया उसको शून्य करने की कोशिश हो रही है और इसके अलावा प्रतिवादी को भी इस दौरान खर्च करने पड़े होंगे। यह आग्रह तभी मना जाएगा जब याचिकाकर्ता आदेश में जिन बातों का जिक्र किया गया है उसके बारे में कोई प्रश्न नहीं पूछेगा और वह प्रति सुनवाई 50 हजार रुपए की राशि जमा कराएगा। इनमें से एक लाख रुपया दिल्ली हाईकोर्ट की मध्यस्थता और सुलह केंद्र को चुकाया जाएगा। शेष राशि प्रतिवादी को दिया जाएगा,” न्यायमूर्ति नाजमी वजीरी ने कहा।

    अपील की सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट को कहा गया कि सिर्फ अपमानजनक टैगलाइन ही हटाया गया है और अपमानजनक पोस्ट को यूट्यूब से दुनियाभर में नहीं हटाया गया है।

    निचली अदालत को यह बताये बिना, यूट्यूब ने कहा कि अदालत का यह फैसला सिर्फ भारतीय भूभाग पर लागू होगा या फिर भारतीय भूभाग से होने वाली गतिविधियों पर लागू होगा क्योंकि वह अमेरिका के स्पीच एक्ट से बंधा हुआ है। यूट्यूब ने उस व्यक्ति के बारे में कोई भी सूचना देने से इनकार कर दिया जिसने यह पोस्ट अपलोड किया था बशर्ते कि उसे अमरीकी अदालत ऐसा करने को कहे। उसका यह भी कहना था कि इस कथित वीडियो को भारत से अपलोड नहीं किया गया।

    हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले के बारे में कहा कि अगर कोई कंटेंट भारत से अपलोड होता है और वह देश की सीमा के बाहर तक जाता है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि वह भारत के न्यायिक अधिकार क्षेत्र के बाहर है। और इसे ब्लाक किया जा सकता है या हटाया जा सकता है।

    न्यायमूर्ति वजीरी ने कहा कि गूगल ने जो हलफनामा दिया है उसका कोई साक्ष्यात्मक मूल्य नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर अपीलकर्ता ने यह कहा होता कि अपमानजनक पोस्ट भारत के बाहर अपलोड किया गया, तो उसे ऐसा निचली अदालत को बताना चाहिए था। अभी की स्थिति में, याचिकाकर्ता ने जिस हलफनामे पर भरोसा किया वह स्पष्ट रूप से आदेश को धता बताने का प्रयास है और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती।”

     

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