राज्य सरकार मेडिकल कॉलेज को मिला जरूरी प्रमाणपत्र इसलिए वापस नहीं ले सकता क्योंकि वह ठीक से काम नहीं कर रहा है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
5 July 2018 12:25 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने चिंतपूर्णी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल बनाम पंजाब राज्य के मामले में कहा कि मेडिकल कॉलेज को मिले जरूरी प्रमाणपत्र को राज्य सरकार वापस नहीं ले सकती बशर्ते कि ये प्रमाणपत्र फर्जी तरीके से न प्राप्त किए गए हों।
न्यायमूर्ति एसए बोबडे और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की पीठ ने चिंतपूर्णी मेडिकल कॉलेज की याचिका पर गौर करते हुए उक्त बात कही। इस मेडिकल कॉलेज ने पंजाब सरकार द्वारा दिए गए जरूरी प्रमाणपत्र को वापस लेने को चुनौती दी है।
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कॉलेज की पैरवी करते हुए कहा कि जरूरी प्रमाणपत्र एक विशेष वजह से दी जाती है ताकि नए कॉलेज की स्थापना की जरूरत को प्रमाणित किया जा सके और एक बार जब यह हो जाता है तो इंडियन मेडिकल काउंसिल के अधिनियम को ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह इस तरह के प्रमाणपत्र को वापस ले ले बशर्ते कि फर्जीवाड़े का मामला न हो।
पीठ ने कहा, “ महत्त्वपूर्ण यह है कि क़ानून के तहत यह जरूरी है कि आवेदक को राज्य सरकार की ओर से जरूरी प्रमाणपत्र मिला हो जिसमें यह यह लिखा हो कि जैसा कि प्रस्ताव दिया गया है, एक मेडिकल कॉलेज की स्थापना की जरूरत है। ऐसा इसलिए जरूरी है ताकि अगर जरूरी नहीं है तो मेडिकल कॉलेज की स्थापना को रोका जा सके और इस तरह जरूरत से अधिक मेडिकल कॉलेजों के बीच अनावश्यक प्रतिस्पर्धा को रोका जा सके।”
कोर्ट ने कहा, “जरूरी प्रमाणपत्र का उद्देश्य केंद्र सरकार को यह बताना है कि मेडिकल कॉलेज की स्थापना जरूरी है। इससे आगे इसकी कोई जरूरत नहीं है। दूसरे शब्दों में, एक बार जब राज्य सरकार यह प्रमाणित कर देती है कि मेडिकल कॉलेज स्थापित किये जाने की जरूरत है तो बाद में वह यह नहीं कह सकती कि किसी मेडिकल कॉलेज की स्थापना की जरूरत नहीं है...फिर,ऐसा लगता है कि अगर एक बार इस प्रमाणपत्र का प्रयोग हो जाता है तो फिर इस प्रमाणपत्र की कोई जरूरत नहीं रह जाती है बशर्ते कि कोई इसमें कोई फर्जीवाड़ा नहीं हुआ हो...”
‘कमी’ की वजह से कोई जरूरी प्रमाणपत्र वापस नहीं लिए जा सकते
राज्य सरकार ने एक निश्चित अवधि के दौरान मेडिकल कॉलेज के कार्यकलाप में कमी की चर्चा की है। इस बारे में कोर्ट ने कहा,“कमी को दूर किया जा सकता है...किसी कॉलेज की न्यायोचित उपस्थिति और गैरकानूनी ढंग से चलाए जा रहे किसी कॉलेज दोनों ही दो तरह की स्थितियां है और इनको मिलाया नहीं जा सकता...”
कोर्ट ने कहा कि राज्य का यह दावा कि उसके पास किसी कॉलेज की स्थापना के बाद उसकी जांच का अधिकार होना चाहिए यह देखने के लिए कि उसमें पर्याप्त संख्या में डॉक्टर, मरीज हैं कि नहीं ताकि उसके अस्तित्व को उचित ठहराया जा सके,खोखला और निराधार है।